धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र के आरोप में पत्नी और नगर निगम कर्मियों के खिलाफ मुकदमे का आदेश

MD Khan
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उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में एक बड़ी धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र का मामला सामने आया है, जिसमें सीजेएम अचल प्रताप सिंह ने पत्नी और नगर निगम के कर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है। इस मामले में आरोप है कि वादी की पत्नी ने अपने पुत्र का फर्जी जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए नगर निगम के कर्मियों से मिलकर एक आपराधिक षड्यंत्र रचा। इतना ही नहीं, वादी के पुत्र का नाम भी बदलकर उसे दूसरे प्रमाण पत्र के जरिए पहचान दी गई।

क्या है मामला?

मामले के अनुसार, वादी इंद्रजीत सिंह धालीवाल ने अपनी पत्नी श्रीमती मिनी मनचंदा से 10 दिसम्बर 2017 को शादी की थी, और इस शादी से 2 जनवरी 2020 को एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम उन्होंने प्रभजीत सिंह धालीवाल रखा। बाद में 12 मार्च 2022 को नगर निगम से इस बेटे का जन्म प्रमाण पत्र बनवाया गया।

लेकिन पारिवारिक विवाद के चलते, वादी की पत्नी अपने पुत्र को लेकर मायके चली गईं, और वादी को अपने बेटे की कस्टडी प्राप्त करने के लिए अदालत में मुकदमा दायर करना पड़ा। इसी दौरान वादी को पता चला कि उनकी पत्नी ने डॉक्टर के फर्जी पेड और हस्ताक्षर का इस्तेमाल करते हुए नगर निगम से अपने पुत्र का दूसरा जन्म प्रमाण पत्र बनवा लिया। इसके साथ ही बेटे का नाम भी बदलकर “सहज सिंह” करवा लिया। इस पूरी प्रक्रिया में नगर निगम के कुछ कर्मियों की मिलीभगत भी सामने आई है, जिन्होंने इस धोखाधड़ी में मदद की।

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सीजेएम का आदेश और विवेचना

सीजेएम अचल प्रताप सिंह ने इस मामले में गंभीरता से संज्ञान लिया और आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर विवेचना के आदेश दिए। अदालत ने थानाध्यक्ष हरीपर्वत को मामले की जांच करने का निर्देश दिया है। अदालत का कहना था कि यह एक गंभीर धोखाधड़ी का मामला है, जिसमें आपराधिक षड्यंत्र की भी गहरी साजिश की गई है।

धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र के आरोप

विवाद की जड़ में एक ओर चौंकाने वाली बात सामने आई है। वादी का आरोप है कि उसकी पत्नी ने नगर निगम के कर्मियों की मदद से न सिर्फ बेटे का नाम बदलवाया, बल्कि उसका जन्म प्रमाण पत्र भी फर्जी तरीके से बनवाया। इससे भी गंभीर बात यह है कि यह पूरी प्रक्रिया न केवल धोखाधड़ी को दर्शाती है, बल्कि यह एक आपराधिक षड्यंत्र का हिस्सा है, जिसमें सरकारी अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध है।

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नगर निगम कर्मियों की मिलीभगत

यह मामला न केवल पारिवारिक विवाद का प्रतीक है, बल्कि इसमें नगर निगम के कर्मचारियों की मिलीभगत भी सामने आई है। आरोप है कि इन कर्मचारियों ने जानबूझकर नियमों की अनदेखी की और फर्जी दस्तावेज़ तैयार करने में मदद की। इस मामले में नगर निगम के कर्मियों की भूमिका की गहराई से जांच की जा रही है, और यदि उनके खिलाफ आरोप सही पाए जाते हैं तो उन्हें भी कड़ी सजा मिल सकती है।

आगे की कार्यवाही

अब यह देखना बाकी है कि पुलिस और संबंधित अधिकारी इस मामले में किस तरह की कार्रवाई करते हैं। यदि आरोप साबित होते हैं, तो आरोपियों को कठोर सजा मिल सकती है, जिससे भविष्य में इस तरह की धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र की घटनाओं को रोका जा सके।

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यह मामला न केवल एक पारिवारिक विवाद से जुड़ा हुआ है, बल्कि इसमें सरकारी अधिकारियों की भूमिका और फर्जी दस्तावेजों की साजिश भी उजागर हुई है। सीजेएम के आदेश से यह साफ है कि ऐसे मामलों में अदालत और पुलिस की निगरानी बेहद जरूरी है, ताकि न्याय सुनिश्चित किया जा सके। वादी को न्याय मिलने तक यह मामला महत्वपूर्ण रहेगा, और यह साबित होगा कि कानून के हाथ लंबे हैं, चाहे अपराधी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो।

धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र के मामलों में ऐसे कड़े कदम उठाने से यह संदेश जाएगा कि कानून सबके लिए समान है, और कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली हो, कानूनी दायरे से बाहर नहीं रह सकता।

 

 

 

 

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