आगरा। धनौली से लेकर खेरिया मोड़ और अर्जुन नगर तक फैले प्राइवेट अस्पतालों की वास्तविक में कुछ प्राइवेट हॉस्पिटलों की तस्वीर चिंताजनक है। जिन अस्पतालों को मरीजों की जान बचाने के लिए बनाया गया था, वही आज गरीब और मध्यम वर्ग के मरीजों की जेब काटने का जरिया बन चुके हैं। अधिकांश हॉस्पिटल में इलाज की कीमतें आसमान छू रही हैं, लेकिन सुविधाओं की कमी और अव्यवस्था आम मरीजों की परेशानी बढ़ा रही है। अगर आपका मरीज गंभीर बीमार है तो शायद 15 दिन में एक मध्यम वर्ग के लोगों की जिंदगी भर की कमाई यह चूस जायेंगे। लेकिन सवाल यह है कि वह इसके बदले उन्हें सुविधा क्या देते है।
अयोग्य स्टाफ क्या दे सकता है सही इलाज
रिपोर्ट में सामने आया कि कई प्राइवेट अस्पतालों में काम कर रहे डॉक्टर, नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ न तो पूरी तरह प्रशिक्षित हैं, न ही आवश्यक लाइसेंस रखते हैं। कई जगह नर्स और स्टाफ बिना डिप्लोमा या ट्रेनिंग के मरीजों की देखभाल कर रहे हैं। अगर प्रशासन अपनी ओर से गुप्त जांच करे तो काफी ऐसे हॉस्पिटल है जिनकी सच्चाई सामने आ जाएंगी।
पैसों की होड़ में मरीजों पर अत्याचार
अगर जब मरीजों के परिजनों से बात करे तो वह बताते है, कि अस्पताल गरीबों का खून चूस रहे हैं। इलाज के नाम पर मनमानी शुल्क, महंगी दवाइयां और अनावश्यक टेस्ट आम प्रवृत्ति बन गए हैं।
अस्पतालों के बाहर पार्किंग न होने से अव्यवस्था और जाम की समस्या
प्राइवेट अस्पतालों के बाहर वाहन अधिकांश हॉस्पिट में पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं है। गाड़ियां और एम्बुलेंस रोड पर खड़ी की जाती हैं, जिससे धनौली, खेरिया मोड़ और अर्जुन नगर रोड पर जाम लगना आम बात है। यह पूरी तरह से अवैध और नियमों के खिलाफ है।
क्या प्रशासनिक अनदेखी से भी उनके हौसले बुलंद है?
इस पूरे मामले में नगर निगम, ट्रैफिक पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही साफ नजर आती है। अस्पतालों को रजिस्ट्रेशन, योग्य स्टाफ, पार्किंग और सुरक्षा मानकों का पालन करना अनिवार्य है, लेकिन अधिकांश जगह नियमों की अवहेलना हो रही है। निरीक्षण तो होता है, लेकिन कार्रवाई देर से या बिल्कुल नहीं होती।
अगर विभाग सक्रिय नहीं होगा, तो ये अस्पताल गरीबों का शोषण करते रहेंगे। मरीज इलाज के लिए मजबूर हैं, लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग की आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर हो रही है, जो कि एक गंभीर समस्या है। आगरा के प्राइवेट अस्पताल अब इलाज के बजाय व्यापार का साधन बन चुके हैं। गरीब और मध्यम वर्गीय मरीज इनकी मनमानी का सबसे अधिक शिकार हो रहे हैं।
यह है अस्पताल संचालन के नियम
1.हर अस्पताल को स्वास्थ्य विभाग से रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य।
2.अस्पताल में सभी डॉक्टर और नर्सों को योग्यता और प्रशिक्षण प्रमाणपत्र रखना जरूरी।
3.मरीजों को इलाज से पहले विस्तृत बिल और शुल्क संरचना बताना अनिवार्य।
4.अस्पताल के बाहर प्रॉपर पार्किंग और एम्बुलेंस के लिए आपातकालीन मार्ग सुनिश्चित करना।
5.स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम और पुलिस को नियमित निरीक्षण और कार्रवाई करना अनिवार्य।
6.मरीजों से अनावश्यक टेस्ट, दवाइयां या चार्ज वसूलने पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।
इसके अलावा कई अन्य नियम है जो सबके हित के लिए जरूरी है। यदि ये नियम कढ़ाई से लागू करवाए जाए और कड़े तरीके से पालन कराया जाए, तो प्राइवेट अस्पताल मरीजों के लिए राहत का साधन बन सकते हैं, न कि सिर्फ आर्थिक बोझ।
