चौ. उदयभान सिंह का तीखा वार; वीर गोकुला का बलिदान उपेक्षा का शिकार, आगरा की राजनीति को धिक्कार

राजनीति के घेरे में वीर गोकुला का बलिदान

Dharmender Singh Malik
3 Min Read
चौ. उदयभान सिंह का तीखा वार; वीर गोकुला का बलिदान उपेक्षा का शिकार, आगरा की राजनीति को धिक्कार

आगरा: पूर्व मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता चौधरी उदयभान सिंह ने वीर गोकुला जाट के बलिदान दिवस पर आगरा की राजनीति को जमकर लताड़ा। उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से उन नेताओं पर निशाना साधा जो आगरा-जयपुर मार्ग पर तेरह मोरी बांध, फतेहपुर सीकरी में वीर गोकुला पार्क के नाम से आवंटित 50 एकड़ भूमि का सौंदर्यीकरण कराने में विफल रहे हैं।

पूर्व मंत्री के मुख्य बिंदु

  • उन्होंने मंत्री रहते सीकरी में तेरह मोरी बांध पर 50 एकड़ जमीन आवंटित कराई थी।
  • सौ करोड़ रुपये का प्रस्ताव भी आगे बढ़वाया, पर अब यह फाइल आगे नहीं बढ़ रही।
  • वीर गोकुला के बलिदान वाली जगह महाराजा अग्रसेन की मूर्ति लग गई, जाट संगठन सोते रहे।
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चौधरी उदयभान सिंह ने कहा कि उन्हें गर्व है कि उन्होंने अपने राजनीतिक कार्यकाल में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री के रूप में वीर गोकुला के नाम को चिरस्थायी बनाने के लिए सार्थक पहल की और पुरजोर आवाज उठाई। इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार के स्तर से उत्तर प्रदेश उद्यान विभाग की लगभग 50 एकड़ जमीन आवंटित कराई।

उन्होंने बताया कि इस जगह के सौंदर्यीकरण के लिए लगभग 100 करोड़ रुपये का प्रस्ताव भी शासन को भेजा गया था। लेकिन अब जब वे मंत्री नहीं हैं, पिछले दो वर्षों से यह फाइल अटकी पड़ी है और आगरा की राजनीति को धिक्कार रही है।

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पूर्व मंत्री ने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि आज ही के दिन, यानि 1 जनवरी 1670 को आगरा शहर में हींग की मंडी में कोतवाली के सामने तत्कालीन मुगल शासक औरंगजेब ने वीर गोकुला जाट के शरीर के एक-एक अंग को निर्ममता से कटवाकर उनकी जघन्यतम तरीके से हत्या कराई थी। उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे। उनके शरीर से जो रक्त के फुब्बारे निकले थे, उसी के नाम पर ही इस स्थान का नाम फुव्वारा पड़ा था। आज भी आगरा कोतवाली के सामने की इस जगह को फुव्वारा के नाम से ही जाना जाता है।

चौधरी उदयभान सिंह ने इस बात पर भी खेद व्यक्त किया कि वीर गोकुला के बलिदान वाली इसी जगह पर आगरा के अग्रवंशियों ने महाराजा अग्रसेन की प्रतिमा स्थापित कर दी है, जबकि आगरा की राजनीति तथा जाटों के सामाजिक संगठन इस मामले पर चुप्पी साधे रहे।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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