आगरा। केंद्र और राज्य सरकारों ने ‘स्वच्छ भारत’ और ‘स्वस्थ भारत’ के नारों को साकार करने के लिए अथक प्रयास किए हैं। योजनाओं का अंबार लगा, बजट आवंटित किया गया, और देश भर में स्वच्छता व स्वास्थ्य क्रांति लाने का संकल्प लिया गया। लेकिन अफसोस की बात है कि उत्तर प्रदेश के आगरा जिले सहित पूरे देश के ग्रामीण इलाकों की ज़मीनी हकीकत आज भी इन बड़े-बड़े दावों से कोसों दूर है। गाँवों की हालत जस की तस है – गंदगी से अटे पड़े रास्ते, टूटी नालियाँ और बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं एक आम तस्वीर बनी हुई है। इन निराशाजनक हालातों के बीच सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जिन अफसरों और कर्मचारियों की जिम्मेदारी इन योजनाओं को जमीन पर उतारने की थी, वे या तो पूरी तरह से लापरवाह बने हुए हैं या फिर इस गंभीर स्थिति पर मौन साधे हुए हैं।
फंडिंग का अता-पता नहीं, कागज़ों में ‘स्वच्छ’ हैं गाँव
यह एक बड़ा सवाल है कि सरकार द्वारा भेजी गई फंडिंग का इस्तेमाल कहाँ और कैसे हो रहा है, इसका लेखा-जोखा शायद केवल फाइलों के अंबार में कहीं दफन है। गाँवों में सफाईकर्मी नियमित रूप से नहीं आते, कचरा संग्रहण की कोई व्यवस्थित प्रक्रिया नहीं है, और नालियाँ महीनों तक साफ नहीं होतीं। इसके बावजूद, सरकारी रिकॉर्ड में गाँव आसानी से “ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त)” और “स्वच्छ” दर्ज हो जाते हैं। आखिर इस विसंगति का जिम्मेदार कौन है? इस गंभीर सवाल पर जब भी जिम्मेदार अधिकारियों से पूछा जाता है, तो वे या तो चुप्पी साध लेते हैं या फिर जवाब देने से कतराते हैं।
जवाबदेही का अभाव: क्यों नहीं बदल रही गाँवों की तस्वीर?
यह सवाल उठाना बेहद ज़रूरी है कि अगर योजनाएं बनती हैं, बजट भी आता है, फिर भी गाँवों की स्थिति क्यों नहीं बदलती? जवाब बिल्कुल साफ है – यह जिम्मेदार अधिकारियों की निष्क्रियता, घोर लापरवाही और सबसे बढ़कर जवाबदेही का अभाव है। ग्राम पंचायत स्तर से लेकर जिला स्तर तक, कहीं न कहीं लापरवाही की एक ऐसी अदृश्य कड़ी है जो इन महत्वाकांक्षी योजनाओं को केवल कागज़ी शेर बनाकर रख रही है।
ईमानदार नीयत और पारदर्शी कार्यप्रणाली ही है समाधान
जब तक जिम्मेदार अधिकारी जवाबदेह नहीं होंगे और योजनाओं की जमीनी स्तर पर प्रभावी निगरानी नहीं होगी, तब तक गाँव न स्वस्थ बनेंगे, न स्वच्छ। इन सरकारी योजनाओं की सफलता तभी सुनिश्चित हो सकती है जब ग्राम प्रधान और संबंधित अधिकारियों की नीयत ईमानदार हो और उनकी कार्य प्रणाली पूरी तरह से पारदर्शी हो। केवल कागजी कार्यवाही और आंकड़ों के खेल से ‘स्वच्छ भारत’ और ‘स्वस्थ भारत’ का सपना कभी साकार नहीं हो सकता। समय आ गया है कि इन जिम्मेदार लोगों से जवाब मांगा जाए और उन्हें उनके कर्तव्य के प्रति जवाबदेह बनाया जाए।