आगरा जिला अस्पताल में भ्रष्टाचार और लापरवाही से एक अज्ञात व्यक्ति की मौत का आरोप। पत्रकार की आपबीती के माध्यम से उजागर हुई ऑक्सीजन की कमी और अस्पताल प्रशासन की मनमानी। जानें, इस गंभीर मामले में क्या हैं आरोप और कौन है जिम्मेदार।
आख़िर कौन है एक निर्दोष के खून का क़ातिल…!
प्रदीप कुमार रावत
लोकेशन, जिला अस्पताल आगरा तारीख 18 अगस्त की काली रात.
मैं और मेरी बेटी वायरल फीवर के चलते एडमिट हुए थे। निचले कर्मचारी से लेकर चिकत्सक तक सभी दुरुस्त थे, कोई भी लापरवाही दिखाई नहीं दे रही थी। रविवार होने के चलते जिला अस्पताल में बेशक चहलकदमी नहीं थी लेकिन ED ( Emergency Duty) में तैनात कर्मचारी मुस्तैदी से अपने काम को अंजाम दे रहे थे। मेरी बेटी खुश थी कि पापा एक अच्छे अस्पताल में उपचार कराने लाए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किए गए कार्यों का बेटी गुणगान करने लगी।
11 वीं में पढ़ने वाली बेटी की बातें सुन मैं मंद मंद मुस्कराने लगा और उससे कहा बेटा सही कह रहे हो। लेकिन जब धीरे धीरे रात ढलने लगी तभी एक कर्मचारी ने बताया कि एक अधेड़ की मौत हो गयी है। मैं और बेटी सन्न रह गए। यही नहीं वह व्यक्ति अज्ञात था, उस व्यक्ति को बचाने के लिए स्वास्थ कर्मी मेरे सामने खूब जतन करता हुआ दिखाई दे रहा था… लेकिन शायद उसकी मेहनत का प्रतिफल ईश्वर को मंजर नहीं था और उक्त अज्ञात की मौत हो गयी। मौत की बात सुनकर बेटी भी भयभीत हुई, कहा पापा यह कौन थे… कैसे मौत हो गयी… अभी तो इनका इलाज चल ही रहा था.. इलाज भी ठीक था कर्मचारी मेहनत कर रहे थे… पापा डॉक्टर साहब भी तो देखकर गए थे… फिर यह अंकल कैसे…. मैं अबोध बेटी से क्या कहता… मेरे पास जवाब नहीं था… उसके लिए ऐसा पहला वाक्या जो हुआ… बहरहाल एक अज्ञात की इलाज के दौरान मौत हो गयी… यह कोई नई बात नहीं है… न ही आश्चर्य जनक कि इलाज के दौरान मौत हुई हो… मेरा और बेटी का इलाज चल ही रहा था… दोनों के ड्रिप चढ़ रही थी, स्वास्थ्य कर्मी बार बार हमारा परीक्षण करने आते रहे इसी बीच न जाने हम कब सो गए पता ही नहीं चला… सुबह आठ बजे बेटी ने ही मुझे आवाज़ देकर उठाया पापा 8 बज गए अब तो उठ जाओ… मुझे भूख लगी है… चाय भी पीनी है।
बेटी के आदेश पर मेरे हाथ में जो ड्रिप लगी थी उसको स्वास्थ्य कर्मचारी से निकलवाया और बेटी के आदेश पर चाय बिस्किट की तलाश में जुट गए। तब तक रात्रि की ड्यूटी में तैनात कर्मचारियों की शिफ्ट बदल चुकी थी… मैंने देखा ED वार्ड में अफरा तफरी का माहौल था… कोई किसी को कह रहा था कि आप को नोटिस मिलने जा रहा तो दूसरा कह रहा… मुझे मिला तो मैं किसी को नहीं छोडूंगा, सुबह सुबह ही बड़ी गहमा – गहमी और कठोर बातें चल रहीं थी। ऑक्सीजन के सिलेंडर इधर उधर हो रहे थे। मैं नियमित गतिविधि समझ बेटी की चाय लेने के लिए निकल गया। 15-20 मिनट खपाने के बाद चाय तो नहीं मिली लेकिन जब वापस पहुंचा तो बेटी गरिया रही थी… चाय भी नहीं लाए मैं इधर अकेली… रात को ही कोई मर गया था… आप को अपनी बेटी की फ़िक्र नहीं है… और रोने लगी। 15-20 मिनट हुए ही थे कि एक चाहने वालों ने चाय की व्यवस्था कर भेज दी, एक बालिग़ बच्ची चाय की केतली लेकर पहुंची और चाय देकर चली गयी तब हमारी बिटिया का रोना धोना कम हुआ।
करीब 15/20 मिनट बात बिस्किट और बढ़िया वाली चाय भी पहुंच गयी, तो हमारी बेटी के चेहरे की मुस्कान दो गुनी हो गयी….. कम से कम चाय – बिस्किट के बहाने ही सही रात की एक मौत का मामला तो शांत हुआ जानकर में मन ही मन प्रसन्न हुआ। लेकिन मेरे मन में बेचैनी बढ़ती रही कि एक अज्ञात व्यक्ति की मौत हो गयी बहुत दुःखद हुआ.. साथ ही जिला अस्पताल के कर्मचारियों ने भी पूरी शिद्दत के साथ अपने काम को बिना किसी लापहरवाही के अंजाम दिया। एक पत्रकार के जेहन में किसी की मौत पर तमाम सवाल होते हैं, लेकिन जो मौत सामने हुई हो और कोई उसका कारण भी न हो तो भी एक पत्रकार की जिज्ञासा शांत नहीं होती… लेकिन मैं तमाम कोशिश करने के बाद शांत हो गया क्योंकि कहीं से भी इस मौत में लापरवाही नहीं दिखाई दी। दोपहर के दो बज चुके थे, बेटी खुद को स्वस्थ महसूस कर रही थी, तो उसको डिस्चार्ज करवा कर घर के लिए भेज दिया। घर से भी सूचना आ गई कि बेटी सकुशल घर पहुंच गई है।
अब 19 तारीख हो चुकी थी और रात के करीब नौ बज रहे थे.. मैंने भी अपना डिस्चार्ज करवा लिया और घर की तरफ बढ़ने लगा तभी कुछ खुशर पुशर की आवाजे… कहने लगे भाई साहब आप तो रात में थे ही पता ही होगा बेचारे उस अज्ञात व्यक्ति की एक छोटी सी लापरवाही ने मौत ले ली, अगर वह लावारिश नहीं होता तो आज ED में हंगामा ही नहीं होता जमकर तोड़फोड़ भी हो गयी होती, इसके गवाह आप भी होते। यह जानकारी प्राप्त होते ही मानो रात को 9 बजे मुझे दिन नज़र आने लगा, तोते उड़ गए… दिमाक सन्न… काम ही नहीं कर रहा था… विश्वास ही नहीं हो रहा था कि आखिर लापरवाही किसने की, और क्यों हुई। तभी तीन में से एक व्यक्ति फिर बोल पड़ा भाई साहब आप तो सब जानते हो और ऐसा व्यवहार कर रहे जैसे कुछ नहीं… मैंने बोला हाँ भाई, सही कह रहे हो मैं कर भी किया सकता हूँ। तपाक से बिला, भाई साहब अब तो मौका है, कर दो चढ़ाई… उसने पूरा किस्सा सुना डाला और मैं घर जाने की जगह आधे घंटे वहीं सिर पकड़ कर बैठ गया और सोचने लगा कि अगर यह बेटी को पता चल जाता तो क्या कहती पापा अगर हम दोनों में से किसी को ऑक्सीजन लगी होती तो….? बस इसी ख्याल ने मुझे रात भर सोने नहीं दिया… एक बेकसूर व्यक्ति की जान जिला अस्पताल के कमीशन नामी सिस्टम कहें या भ्रष्टाचार की कोड या प्रमुख अधीक्षक की हठ धार्मिता और उसका भ्रष्टाचार का घड़ा।
अब तक जो आपने पढ़ा वह एक बेटी और पिता की आप बीती थी… अब पढ़िए ख़बर..
आगरा का जिला अस्पताल लगातार भ्रष्टाचार की मांद बनता जा रहा है, यही भ्रष्टाचारी लोगों के खून का प्यास बन गया है। जिला अस्पताल सुर्खियों और चर्चाओं में ना रहे तो यहां के प्रमुख अधीक्षक का खाना हजम नहीं होता। यह बात हम यूं ही नहीं कह रही है क्योंकि यह तथ्यों पर आधारित है। चंद दिनों पहले ही डीएम अरविंद मल्लप्पा बंगारी ने जिला अस्पताल का औचक निरीक्षण किया था जिसमें उन्होंने कई खामियां पाई थी। बावजूद इसके आगरा के जिला अस्पताल प्रमुख अधीक्षक डॉक्टर राजेंद्र अरोड़ा पर किसी भी तरीके का कोई प्रभाव नहीं पड़ा बल्कि मीडिया को अंगूठा दिखा दिया और कहा कि डीएम से और उल्टे सीधे जवाब तलब करें और जितना नेगेटिव दिखा सकते हैं दिखाएं… क्या सीधे बेशक मीडिया से नहीं कहा गया हो अपने अधीनस्थों से कहा हो लेकिन डीएम ने ही एक पत्रकार से इस औचक निरीक्षण के दिन जो कहा वह बताया नहीं जा सकता क्योंकि डीएम की विश्वसनीयता ख़त्म होगी लेकिन डीएम आगरा अरविंद मल्लप्पा बंगारी को अब यह सोचना ही होगा कि आखिर जिस अस्पताल का उन्होंने निरीक्षण किया था उसके प्रमुख अधीक्षक तो डीएम को अधिकार देते ही नहीं कि उनके अस्पताल का वह निरीक्षण कर सके.. प्रमुख अधीक्षक सरेआम कहते हैं कि “मैं डीएम के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता, उन्हें निरीक्षण करने का अधिकार ही नहीं है। मेरे जिला अस्पताल का निरीक्षण सिर्फ मण्डलायुक्त के पास है।”
प्रमुख अधीक्षक साहब अब यह डीएम साहब को सोचना होगा कि वह आपके जिला अस्पताल का निरीक्षण करें या नहीं। बहरहाल मामला आगरा में एक अज्ञात मौत का है। एक ऐसी मौत का जो गंभीर लापरवाही का उदाहरण रही है, अब यह मामला लापरवाही से हटकर 299/ 304 पर पहुंच गया है। यानि कि BNS की धारा 100/105 पर पहुंच गया है।
अब जानिए इस हत्या की पूरी कहानी…
कॉविड-19 के दौरान पूरे देश में ऑक्सीजन की मारामारी थी, सरकार ने ऑक्सीजन प्लांट के लिए सभी सरकारी अस्पतालों को करोड़ों रुपए आवंटित किया उसमें आगरा का एक जिला अस्पताल भी शामिल था… यहां भी ऑक्सीजन प्लांट के लिए लाखों रुपए दिए गए थे और ऑक्सीजन प्लांट का निर्माण कराएगी उसे समय तत्कालीन डॉक्टर अशोक अग्रवाल जिला अस्पताल के सीएमएस थे, उनकी निगरानी में ही यह ऑक्सीजन प्लांट बंद कर तैयार हुआ था। लेकिन धीरे-धीरे इस प्लांट की जरूर को खत्म कर दिया गया और इस प्लांट की जगह बाजार से खरीदे जाने वाले ऑक्सीजन सिलेंडर ने ले ली। आखिर जब सरकार ने करोड़ों रुपए बर्बाद और खर्च किए बाहर से ऑक्सीजन मनाने का औचित्य क्या रह जाता है यह एक वाजिब और बड़ा सवाल है।
आज इसी ऑक्सीजन की कमी ने एक बेकसूर की जान ले ली, अगर इमरजेंसी में यह ऑक्सीजन प्लांट सुचारू रूप से चल रहा होता तो एक व्यक्ति की जीवन लीला यूं ही खत्म नहीं हो जाती आज भी वह जिंदा होता। मृतक को ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था, स्वास्थ्य कर्मचारियों के पास जितने भी वहां पर उपलब्ध ऑक्सीजन सिलेंडर थे उन सब का उपयोग कर लिया गया लेकिन ऑक्सीजन कमी को पूरा नहीं किया जा सका और एक निर्दोष बेकसूर की जान चली गई। फिर इस बेकसूर की मौत का जिम्मेदार कौन है यह तो प्रमुख अधीक्षक डॉक्टर राजेंद्र अरोड़ा को बताना ही होगा।
अब जिलाधिकारी अरविंद मल्लप्पा बंगारी की भी जिम्मेदारी बन जाती है कि जिस अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर के नाम पर भ्रष्टाचार हो यहां तक तो ठीक था लेकिन ऑक्सीजन की कमी से किसी निर्दोष की जान चली जाए तो यह कहां तक उचित है। क्योंकि प्रमुख अधीक्षक की लापरवाही के चलते सवाल सरकार के सिस्टम पर खड़े हो सकते हैं। जिला अस्पताल में भ्रष्टाचार अकेले ऑक्सीजन सिलेंडर पर नहीं बल्कि जो भी जिला अस्पताल में क्रय किया जाता है उसे पर एक निर्धारित सेवा शुल्क है, इसका खुलासा करना उचित नहीं यह तो प्रशासन को खुद ही जांच कर निकालना होगा, क्योंकि यह इतना मोटा है कि विश्वास नहीं किया जा सकता… उस ठेकेदार की भी दाद देनी पड़ेगी जो यहां पर दवाइयां एवं अन्य सामग्रियों की सप्लाई करता है।
एक ऑक्सीजन की कमी के चलते एक निर्दोष एवं बेकसूर की जान चली गई और जिला अस्पताल प्रशासन ऐसे बड़े मामले को दबाने में जुटा हुआ है। अब देखना होगा कि आगरा का जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग प्रमुख अधीक्षक पर क्या कार्रवाई करते हैं।