आगरा, उत्तर प्रदेश: शिक्षा विभाग की निष्क्रियता और प्रशासन की लापरवाही के चलते जिले में प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ नियमों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का स्पष्ट आदेश और शिक्षा अधिकार अधिनियम यह कहता है कि कोई भी स्कूल किताबें खरीदने के लिए किसी निर्धारित दुकान का नाम नहीं ले सकता, लेकिन आगरा जिले में प्राइवेट स्कूलों ने इस आदेश की खुलकर अवहेलना की है और अब वे स्कूल प्रांगण से ही किताबों और यूनिफॉर्म की बिक्री करने लगे हैं।
स्मार्ट प्राइवेट स्कूलों का अनौचितिक व्यापार
आगरा जिले के कई प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा के नाम पर यह धंधा तेज़ी से चल रहा है। प्रोग्रेसिव एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स अवेयरनेस (टीम पापा) में अभिभावकों ने अपनी शिकायतें दर्ज कराते हुए बताया कि कई स्कूलों में अभिभावकों से यूनिफॉर्म और किताबें स्कूल कैंपस में ही मजबूरी के तौर पर बेची जा रही हैं, जबकि शासनादेश के अनुसार यह पूरी तरह से अवैध है।
एक अभिभावक ने अपनी शिकायत में बताया कि सेंट पैट्रिक स्कूल ने यूकेजी कक्षा के अभिभावकों को 27 मार्च को सुबह 7:30 से 10:00 बजे तक स्कूल में बुलाया और 2700 रुपये की रकम लेकर यूनिफॉर्म देने की जानकारी दी। दूसरे मामले में, कौलक्खा स्थित सेंट क्लेयर यूनिट दो में अभिभावक ने रिकॉर्डिंग वीडियो के जरिए यह बताया कि स्कूल प्रांगण से किताबें बेची जा रही हैं, जो सीधे तौर पर शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन है।
टीम पापा ने प्रशासन को दी चेतावनी
पापा संस्था के राष्ट्रीय संयोजक दीपक सिंह सरीन ने इस मामले को लेकर प्रशासन को चेतावनी दी है। उन्होंने इस मामले की शिकायत मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) के पास दर्ज कराई और कहा कि इसे जनसुनवाई में डालने की बजाय त्वरित कार्रवाई की जानी चाहिए। दीपक सिंह ने कहा, “जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की लापरवाही के कारण ही प्राइवेट स्कूलों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं। जब तक प्रशासन या शिक्षा विभाग अभिभावकों की शिकायतों पर समय पर कार्रवाई नहीं करता, तब तक यही स्थिति बनी रहेगी।”
उन्होंने यह भी कहा कि यदि प्रशासन गंभीरता से कार्रवाई नहीं करता है, तो अभिभावकों को सड़क जाम जैसे आंदोलन करने पर मजबूर होना पड़ेगा, जिसका पूरा जिम्मा शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन पर होगा।
प्राइवेट स्कूलों की मनमानी
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा विभाग और प्रशासन आखिर क्यों चुप हैं? क्या यह प्राइवेट स्कूलों की मनमानी को बढ़ावा देने जैसा नहीं है? सरकारी आदेशों और शिक्षा अधिकार अधिनियम के बावजूद प्राइवेट स्कूलों का इस तरह से कानून की धज्जियाँ उड़ाना, यह सवाल खड़ा करता है कि शिक्षा व्यवस्था में गड़बड़ी का क्या कारण है।
अभिभावकों का संघर्ष
अभिभावक लगातार अपनी शिकायतें लेकर प्रशासन और शिक्षा विभाग के पास पहुंच रहे हैं, लेकिन अब तक किसी भी शिकायत पर उचित कार्रवाई नहीं की गई है। इसके परिणामस्वरूप अभिभावकों का उत्साह ठंडा पड़ता जा रहा है, और यही स्थिति प्राइवेट स्कूलों के लिए फायदे का सौदा बन रही है।
क्या प्रशासन जागेगा?
यह एक बड़ा सवाल है कि क्या शिक्षा विभाग और जिला प्रशासन इस गंभीर मुद्दे को लेकर समय रहते कार्रवाई करेंगे? अगर प्रशासन समय रहते इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाता, तो यह साफ हो जाएगा कि प्राइवेट स्कूलों को सरकार की मिलीभगत का पूरा समर्थन है।