आगरा: आगरा जिले में ‘डमी स्कूलों’ का जाल तेजी से फैल रहा है, जहाँ बच्चों के दाखिले अनाधिकृत रूप से लिए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार और सीबीएसई बोर्ड द्वारा ऐसे स्कूलों के खिलाफ मान्यता रद्द करने के स्पष्ट निर्देश के बावजूद, शिक्षा विभाग की नाक के नीचे यह गोरखधंधा फल-फूल रहा है।
डमी स्कूलों का मकड़जाल और विभाग की सुस्ती
आगरा में कई ऐसे स्कूल हैं जो छात्रों को केवल कागजों पर प्रवेश देते हैं, जबकि छात्र कहीं और कोचिंग या किसी अन्य संस्थान में पढ़ाई कर रहे होते हैं। यह छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है और शिक्षा के मानकों का घोर उल्लंघन। नियमानुसार ऐसे स्कूलों पर तत्काल और कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन आगरा का शिक्षा विभाग इस मामले में कछुए की चाल चल रहा है।
प्रधान पब्लिक स्कूल का मामला: एक बानगी
कुछ महीने पहले, आगरा के अछनेरा स्थित प्रधान पब्लिक स्कूल पर कक्षा 9 और 10 के डमी छात्रों को प्रवेश देने का आरोप लगा था। पापा संस्था के दीपक सिंह सरीन ने पीड़ित बच्चों के साथ मिलकर तत्कालीन जिलाधिकारी से शिकायत की थी। इस शिकायत पर खंड शिक्षा अधिकारी नगर क्षेत्र आगरा ने 17 फरवरी 2025 को बेसिक शिक्षा अधिकारी आगरा को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपी, जिसमें प्रधान पब्लिक स्कूल द्वारा डमी छात्रों के दाखिले लेने की पुष्टि की गई थी।
हालांकि, इस रिपोर्ट के बाद भी प्रधान पब्लिक स्कूल अछनेरा पर आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। दीपक सिंह सरीन ने बताया कि पिछले दो महीने से वे शिकायतकर्ता बच्चों को न्याय दिलाने के लिए तमाम अधिकारियों के चक्कर लगा रहे हैं। अब जाकर जिला विद्यालय निरीक्षक महोदय द्वारा पहला नोटिस भेजा गया है, जिसमें दो दिन के भीतर जवाब मांगा गया है।
कार्रवाई में देरी के कारण कहीं ….
यह सवाल उठता है कि आखिर डमी बच्चों का प्रवेश लेने वाले स्कूलों के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है। दीपक सिंह सरीन ने स्पष्ट किया कि यदि जिला विद्यालय निरीक्षक के नोटिस का दो दिन के भीतर कोई संतोषजनक जवाब नहीं आता है और शिक्षा विभाग कार्रवाई को आगे नहीं बढ़ाता है, तो पीड़ित बच्चों के साथ आगरा कलेक्ट्रेट स्थित जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना दिया जाएगा। उन्होंने चेतावनी दी कि इसकी पूरी जिम्मेदारी आगरा जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग की होगी।
आगरा में शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली अब सवालों के घेरे में हैं। डमी स्कूलों का बढ़ता प्रचलन न केवल शिक्षा के स्तर को गिरा रहा है, बल्कि छात्रों के भविष्य को भी खतरे में डाल रहा है। देखना यह होगा कि क्या शिक्षा विभाग अब इस मामले में कोई ठोस कदम उठाता है या फिर यह लापरवाही ऐसे ही जारी रहेगी।