आखिरकार किस दबाव में शिक्षक नेता की करतूत पर पर्दा डाल रहा है विभाग?
आगरा। बेसिक शिक्षा विभाग में जहां नियमित रूप से ड्यूटी करने वाले शिक्षक मामूली गलतियों पर भी कठोर कार्रवाई का सामना करते हैं, वहीं कुछ प्रभावशाली शिक्षक नेताओं को विशेष छूट मिलती नजर आ रही है। ताजा मामला जगनेर ब्लॉक के एक परिषदीय विद्यालय का है, जहां शिक्षक संगठन के जिलाध्यक्ष तिलकपाल चाहर की अनुशासनहीनता और मनमानी रवैये से ग्रामीणों का गुस्सा एक बार फिर फूट पड़ा।
गत मंगलवार को तिलकपाल चाहर के विद्यालय में देरी से पहुंचने पर आक्रोशित ग्रामीणों ने उन्हें विद्यालय में प्रवेश करने से रोक दिया। जब चाहर ने अपनी दबंगई दिखाने की कोशिश की, तो ग्रामीणों ने कथित तौर पर उनसे हाथापाई कर दी। इस घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दी गई, जिसके बाद बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) ने तिलकपाल चाहर को निलंबित कर दिया।
निलंबन के बाद भी मिली मनचाही तैनाती
निलंबन के बावजूद, तिलकपाल चाहर को उसी क्षेत्र के पसंदीदा विद्यालय में तैनाती मिल गई, जिससे यह मामला विभाग में चर्चा का विषय बन गया है। तिलकपाल चाहर, जो राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ के जिलाध्यक्ष हैं, पर सत्ता के दबाव और प्रभाव का लाभ उठाने का आरोप लगाया जा रहा है। उनके इस विशेष व्यवहार ने कई अन्य शिक्षकों को हैरान कर दिया है।
विभाग का दोहरा मापदंड
शिक्षा विभाग के अन्य शिक्षक आरोप लगा रहे हैं कि उनके निलंबन के बाद उन्हें नई तैनाती के बावजूद जबरन उनके पुराने स्थान पर भेज दिया गया, जबकि तिलकपाल चाहर को उनके प्रभावशाली कनेक्शन का लाभ मिला और उन्हें मनचाही तैनाती दी गई। यह पक्षपातपूर्ण रवैया विभाग के भीतर असंतोष और संदेह को बढ़ावा दे रहा है, जिससे विभाग की कार्यवाही पर सवाल उठ रहे हैं।
शिक्षक बने नेता, गरीब बच्चों की शिक्षा में खानापूर्ति
अग्र भारत समाचार पत्र के संवाददाता ने जब इस प्रकरण पर ग्रामीणों से बातचीत की, तो ग्रामीणों ने अपनी नाराजगी जाहिर की। ग्रामीणों का कहना था कि वे अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में भेजते हैं क्योंकि निजी स्कूलों का खर्च उठाना उनके लिए संभव नहीं है, लेकिन सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की अनुशासनहीनता और राजनीति का खामियाजा उनके बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।
जब तिलकपाल चाहर को बंधक बनाकर विद्यालय के बाहर बिठाया गया, तो ग्रामीणों ने उनसे तीखे सवाल किए। एक ग्रामीण ने सवाल किया, “अगर आप सरकारी शिक्षक हैं, तो क्या आप अपने बच्चों को भी सरकारी स्कूलों में पढ़ाते हैं?” इस सवाल ने तिलकपाल चाहर को निरुत्तर कर दिया और यह घटना विभाग की वास्तविकता को उजागर करती है कि कैसे राजनैतिक प्रभाव शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है।