एटा: करोड़ों की लागत से बने एटा मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी सेवाएं एक बार फिर सवालों के घेरे में हैं। देर रात 12:20 बजे एक मासूम बच्चे को बुखार में तड़पता देख जब उसकी मां इमरजेंसी वार्ड पहुंची, तो उसे जो जवाब मिला, वह स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलने वाला था। ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर ने बेशर्मी से कह दिया, “थर्मामीटर खराब है, एप्लीकेशन डाल रखी है।” इतना ही नहीं, बच्चे की हालत देखने की जहमत तक नहीं उठाई गई और इलाज करने से हाथ खड़े कर दिए गए।
इमरजेंसी में बुनियादी उपकरण का अभाव: शर्मनाक लापरवाही
यह हास्यास्पद नहीं, बल्कि शर्मनाक और आपराधिक लापरवाही का मामला है। इमरजेंसी जैसी संवेदनशील यूनिट में बुखार नापने का सबसे बुनियादी उपकरण थर्मामीटर तक न होना, गंभीर बीमारियों के इलाज पर गंभीर सवाल खड़े करता है। बच्चे की मां के बार-बार आग्रह करने पर भी डॉक्टर ने बच्चे को देखने से इनकार कर दिया और उसे पीडियाट्रिक विभाग में रेफर कर अपना पल्ला झाड़ लिया।
सवाल यह है कि जब इमरजेंसी जैसे महत्वपूर्ण विभाग में ही इतनी बदहाली है, तो मेडिकल कॉलेज के बाकी विभागों का क्या हाल होगा?
पहले भी सुर्खियों में रही है लापरवाही
यह कोई पहला मामला नहीं है जब एटा मेडिकल कॉलेज की लापरवाही सुर्खियों में आई हो। बुनियादी संसाधनों की कमी और कॉलेज प्रशासन की उदासीनता ने मरीजों की जान को लगातार जोखिम में डाल रखा है। जनता अपने टैक्स के करोड़ों रुपये बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए देती है, लेकिन बदले में उन्हें ‘थर्मामीटर तक न होने’ जैसे बहाने सुनने को मिलते हैं। यह न सिर्फ स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाता है, बल्कि मरीजों के साथ घोर अन्याय भी है।
तत्काल कार्रवाई की मांग
जनता और सामाजिक संगठनों द्वारा मेडिकल कॉलेज प्रशासन से तत्काल इस लापरवाही पर जवाब देने की मांग उठ रही है। आवश्यक उपकरणों की कमी को तुरंत दूर करने और इस घटना के लिए ज़िम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने की अपील की जा रही है। अगर यही हाल रहा तो मरीजों की जान बचाने का दावा करने वाली यह संस्था सिर्फ एक मजाक बनकर रह जाएगी, और आम जनता को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ेगा।