एटा: जी हां, वही पत्रकार, जो रोज़ाना नेताओं से लेकर बाबाओं तक और बारिश से लेकर सूखे तक हर खबर जनता तक पहुंचाते हैं। परंतु कृष्ण लीला के शुभारंभ मंच पर जब सबका सम्मान हो रहा था, सामान्य अतिथि से लेकर अति विशिष्ट तक तो चौथे स्तंभ को न जाने किस श्रेणी में डालकर नजरअंदाज कर दिया गया।
9 सितंबर को जैथरा नगर में कृष्ण लीला मंचन का आगाज़ हुआ। मंच पर चकाचौंध थी, हर कोई सम्मान पा रहा था, पर पत्रकार बंधु मात्र कैमरे उठाए दर्शक बने रहे। लोग कानाफूसी करते रहे कि कृष्ण लीला कमेटी ने कहीं पत्रकारों के लिए अदृश्य माला तो नहीं मंगाई गई। पूरे दिन नगर में यही चर्चा गूंजती रही कि कमेटी ने पत्रकारों के साथ भेदभावपूर्ण बर्ताव क्यों किया। जो पत्रकार आपके कार्यक्रमों को कवर कर लोगों तक पहुंचाता है, उसे एक सार्वजनिक मंच से उपेक्षित होना पड़े यह कहीं से न्याय उचित प्रतीत नहीं होता ?
खैर, अगले ही दिन कमेटी को शायद अहसास हुआ कि भूल बड़ी भारी हो गई। अब पत्रकारों का भी सम्मान होना चाहिए। तो 10 सितंबर को कृष्ण लीला मंचन के पहले दिन पत्रकारों को प्रतीक चिन्ह देकर मनाने का प्रयास किया गया। अब इसे भूल कहें, सुधार कहें या फिर जन दबाव का असर, यह तो वही जानें।
नगर में लोग चुटकी लेने से नहीं चूके। कोई बोला पत्रकारों को विशेष सम्मान दिया गया। कार्यक्रम के उद्घाटन के समय सम्मान पाने वालों की एक लंबी फेहरिस्त थी। सबको सम्मान दिलाने का दमखम रखने वाले पत्रकार बन्धु, खुद के सम्मान की अभिलाषा लिए अपना काम करते रहे। तो किसी ने कहा शायद कमेटी को लगा होगा कि पत्रकारों का असली सम्मान तो उनकी कलम है, बाकी सब दिखावा है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर साबित किया कि पत्रकारिता की गरिमा मंच से नहीं, अपितु समाज की नज़रों से तय होती है। पर हां, कमेटी ने देर से ही सही, पत्रकारों को याद करके इस कार्यक्रम की अधूरी लीला को पूरा कर दिया।