आगरा– श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का 348वां शहीदी गुरुपर्व सिक्ख समाज की केंद्रीय संस्था गुरुद्वारा माई थान पर श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर श्री दरबार साहिब अमृतसर से पधारे हजूरी रागी भाई गुरमेल सिंह ने “एक गुरमुख परोपकारी विरला आया” का गायन किया। उन्होंने कहा कि सतगुरु सच्चे पातिशाही अपनी वाणी में फरमान करते हैं कि दूसरे के लिए परोपकार करने वाले इस धरती में विरले ही होते हैं। जैसे गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने हिन्दू धर्म की रक्षा की खातिर अपने प्राणों का बलिदान दिया।
उपरांत भाई जसपाल सिंह अखंड कीर्तनी जत्थे ने आसा दी बार का कीर्तन किया। भाई बृजेन्द्र सिंह हजूरी रागी ने “जो नर दुख महि दुख नहीं माने सुख” का गायन कर संगत का मन मोह लिया।
ज्ञानी कुलविंदर सिंह जी हैड ग्रंथी ने गुरु तेग बहादुर साहिब जी की पहली गिरफ्तारी का इतिहास सुनाया कि क्यों उनको हिंद की चादर कहा जाता है। उन्होंने कहा कि गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश कटवा दिया, परंतु धर्म का सिर नहीं झुकाया। इसीलिए उन्हें हिंद की चादर कहा जाता है।
कीर्तन दरबार में प्रधान कंवल दीप सिंह, ज्ञानी कुलविंदर सिंह, समन्वयक बंटी ग्रोवर, पाली सेठी, चेयरमैन परमात्मा सिंह, रसपाल सिंह, प्रवीण अरोरा, बाबा शेरी, जसमीत सिंह, सतविंदर सिंह, अमरजीत सिंह, राना रंजीत सिंह, निर्वेर सिंह, गुरप्रीत सिंह, जगजीत सिंह, सतविंदर सिंह, किरपाल सिंह आदि की उपस्थिति रही।
शीश दिया पर सी ना उचरी का अर्थ
“शीश दिया पर सी ना उचरी” का अर्थ है कि शीश तो दिया, परंतु सीना नहीं झुकाया। यह गुरु तेग बहादुर साहिब जी के त्याग और बलिदान को दर्शाता है। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश कटवा दिया, परंतु धर्म का सिर नहीं झुकाया।
गुरु तेग बहादुर साहिब जी का शहीदी गुरुपर्व
गुरु तेग बहादुर साहिब जी सिखों के नौवें गुरु थे। उन्होंने 1675 में धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश कटवा दिया था। उनका शहीदी गुरुपर्व प्रतिवर्ष 16 दिसंबर को मनाया जाता है।
इस अवसर पर सिख समाज के लोग गुरुद्वारों में जाकर गुरु तेग बहादुर साहिब जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। साथ ही, उनके जीवन और दर्शन से प्रेरणा लेते हैं।