झाँसी, उत्तर प्रदेश, सुल्तान आब्दी: मेवातीपुरा अन्दर उन्नाव गेट स्थित अज़ाख़ाना-ए-अबूतालिब मरहूम सैयद उम्मेद अली आब्दी साहब में अंजुमन खुद्दामे बनी हाशिम के तत्वावधान में शिया समुदाय द्वारा एक भव्य मजलिस का आयोजन किया गया. इस मजलिस में पूरे विश्व से ख्याति प्राप्त मर्सियाख़्वान, नौहाख़्वान और मौलाना पधारे, जिन्होंने इमाम हुसैन (अस) को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की. इस अवसर पर इमाम हुसैन (अस) के प्रति ग़म और देशप्रेम का अद्भुत संगम देखने को मिला.
अल्लाह की इबादत और माध्यम की आवश्यकता पर जोर

कार्यक्रम को मुख्य रूप से बाराबंकी से पधारे मौलाना अली रिज़वान साहब ने संबोधित किया. मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना ने बताया कि, “हमको सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की इबादत करना है, अन्य किसी के सामने सर नहीं झुकाना है.” अली रिज़वान साहब ने इस बात पर भी जोर दिया कि इंसान को अल्लाह से अपनी दुआ पूरी कराने के लिए एक माध्यम की आवश्यकता होती है, और ये माध्यम अल्लाह के रसूल (पैगंबर मोहम्मद) और उनकी औलाद (वंशज) हैं.
ग़मगीन माहौल में श्रद्धा और मातम

कार्यक्रम की शुरुआत मौलाना सैयद फरमान अली साहब और मौलाना सैयद इक़्तेदार हुसैन साहब ने कुरआन की तिलावत और हदीस-ए-किसा के पाठ से की. इसके बाद, हरिद्वार से आए कमाल मेहदी और उनके साथियों ने अपने अनोखे अंदाज़ में मर्सियाख़्वानी (शोकगीत) कर पूरे माहौल को ग़मगीन बना दिया. मौलाना ज़ीशान, साग़र बनारसी और ज़ुहैर सुल्तानपुरी साहब ने अपनी शायरी से सभी उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

मजलिस के उपरांत, अकबरपुर से पधारे मौलाना सैयद शारिब अब्बास साहब ने इमाम हुसैन (अस) और कर्बला में उनके साथियों पर हुए ज़ुल्म का मार्मिक वर्णन किया, जिससे सभी की आँखें नम हो गईं. इसी ग़मगीन और शोकाकुल माहौल में 18 ताबूत निकाले गए, जिन्हें देखकर हर इंसान की आँखों में आँसू थे.
राष्ट्रीय ध्वज के नीचे गूंजी ‘या हुसैन-या अब्बास’ की सदा
इस कार्यक्रम का सबसे अनूठा और प्रेरणादायक पल तब आया जब राष्ट्रीय ध्वज के नीचे, मुज़फ्फरनगर से पधारे शबीह अब्बास आरफी साहब ने नौहा पढ़कर मातमदारों में जोश भर दिया. ‘या हुसैन-या अब्बास’ की सदा से सारा इलाका गूंज उठा, और इस अवसर पर इमाम हुसैन (अस) के प्रति अगाध ग़म के साथ-साथ देशप्रेम का भी अद्भुत प्रदर्शन देखने को मिला.
