झांसी, उत्तर प्रदेश, सुल्तान आब्दी । झांसी में इन दिनों एक पुलिस अधिकारी, इंस्पेक्टर आनंद सिंह, दो विधायकों की खींचतान के बीच फंस गए हैं। यह मामला तब शुरू हुआ जब बबीना से बीजेपी विधायक राजीव सिंह ‘परीक्षा’ ने प्रदेश की कैबिनेट मंत्री और झांसी की प्रभारी मंत्री बेबी रानी मौर्य से इंस्पेक्टर आनंद सिंह के खिलाफ शिकायत की। विधायक का आरोप था कि इंस्पेक्टर का व्यवहार जनता और उनके प्रति ठीक नहीं है।
इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए, प्रभारी मंत्री ने तत्काल डीजीपी सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को एक पत्र लिखा, जिसमें इंस्पेक्टर आनंद सिंह के खिलाफ जांच और कार्रवाई की मांग की गई। इस पत्र के सामने आते ही पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया और आनन-फानन में आनंद सिंह का तबादला कर उन्हें सीपरी बाजार थाने से हटाकर एएचटीयू (Anti Human Trafficking Unit) का प्रभारी बना दिया गया।
क्या था पूरा मामला?
विधायक द्वारा सीधे प्रभारी मंत्री से शिकायत करना और मंत्री के एक पत्र पर पुलिस अधिकारी का तबादला हो जाना कई सवाल खड़े करता है। कई लोगों का मानना है कि यह घटना पुलिस अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव का नतीजा है। आरोप है कि जब कोई अधिकारी बिना किसी राजनीतिक दबाव के निष्पक्ष कार्रवाई करता है, तो कुछ नेता असहज हो जाते हैं। इंस्पेक्टर आनंद सिंह की छवि एक सख्त और ईमानदार अधिकारी की रही है, जो बिना किसी दबाव के काम करते हैं।
दूसरा लेटर बम
अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि एक और ‘लेटर बम’ सामने आया। इस बार, झांसी सदर के विधायक पंडित रवि शर्मा ने पुलिस अधिकारी के समर्थन में एक पत्र जारी किया। अपने पत्र में उन्होंने इंस्पेक्टर आनंद सिंह के व्यवहार की तारीफ करते हुए कहा कि वे निष्पक्ष और ईमानदारी से काम करते हैं। सदर विधायक ने वरिष्ठ अधिकारियों से इस मामले में सही और निष्पक्ष जांच करने का अनुरोध किया है।
सत्ता के दो ध्रुव आमने-सामने
अब यह मामला केवल एक पुलिस अधिकारी के तबादले तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह दो विधायकों के बीच की राजनीतिक लड़ाई बन गया है। एक तरफ, बबीना विधायक ने अपनी पूरी ताकत लगाकर इंस्पेक्टर को हटवा दिया, वहीं दूसरी तरफ, सदर विधायक उनकी पैरवी में खुलकर सामने आ गए हैं।
यह स्थिति दर्शाती है कि सत्ता पक्ष के भीतर भी मतभेद हैं। एक ही पार्टी के दो विधायक एक ही अधिकारी के बारे में बिल्कुल विपरीत राय रखते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस लड़ाई में कौन अपनी बात साबित कर पाता है। क्या ईमानदारी से काम करने वाले अधिकारियों पर हमेशा राजनीतिक दबाव हावी रहेगा? यह सवाल पुलिस विभाग और जनता दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
इस मामले पर आपकी क्या राय है? क्या आपको लगता है कि राजनीतिक दबाव के कारण निष्पक्ष पुलिसिंग प्रभावित होती है? हमें अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।