लाठी चार्ज को समझने के लिए सबसे पहले कानून में दिए गए प्रावधानों को समझना आवश्यक है । भारत के संविधान में वर्णित मौलिक अधिकारों में प्रत्येक नागरिक को चाहे वह छात्र व्यापारी डॉक्टर इंजीनियर वकील शिक्षक या अन्य किसी भी वर्ग का व्यक्ति हो संवैधानिक रूप से अपनी नाराजगी शिकायतें एवं परेशानियों व्यक्त करने का अधिकार उसे प्राप्त है। फिर चाहे वह धरना प्रदर्शन हो हड़ताल हो या उचित कानूनी प्रतिबंधों के अधीन शांतिपूर्वक प्रदर्शन हो। अनुच्छेद 19(1)A कहता है अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। भारत के संविधान के भाग 3 के तहत शांतिपूर्ण विरोध के महत्व को काम करके नहीं आता जा सकता। अनुच्छेद 19(1)B किसी भी वर्ग के नागरिक को शांतिपूर्वक और बिना हथियार इकट्ठा होने की अनुमति देता है । इसीलिए इन अधिकारों को संवैधानिक अधिकारों के साथ-साथ न्याय संगत भी बना दिया गया है।
जबकि भारतीय दंड संहिता आईपीसी और आपराधिक प्रक्रिया संहिता सीआरपीसी परिभाषित करती है कि कुछ चुनिंदा घटनाओं पर पुलिस कार्यपालक मजिस्ट्रेट के आदेश पर हल्का बल प्रयोग कर सकती है । जिसे लाठीचार्ज नहीं कहा जा सकता( बीपीआरडी) ब्यूरो ऑफ़ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ने भी भीड़ को तीतर भीतर करने के लिए सामान्य बल प्रयोग करना बताया है भीड़ पर लाठी से हमला करना नहीं।
यदि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार आंकड़ों पर विश्वास किया जाए तो 2016 से अब तक पता चला है कि उत्तर प्रदेश में 185 ऐसे मौके थे जब पुलिस ने लाठी चार्ज का इस्तेमाल किया। जो कि जम्मू कश्मीर के बाद देश का सबसे बड़ा मामला है सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस दौरान 219 नागरिक और 11 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं।
लाठी चार्ज या बैटन प्रयोग के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस विनियमन को बदलाव की बहुत आवश्यकता है क्योंकि पुलिस ट्रेनिंग में भी नवागत रंगरूटों को लाठी के द्वारा ही भीड़ को नियंत्रित करने के बारे में बताया जाता है इसी कारण यह समस्या और भी विकराल हो गई है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग विभिन्न उच्च न्यायालय पुलिस मैन्युअल यहां तक की राष्ट्रीय अनुबंधों के रूप में कई दस्तावेज है जो पुलिस को अनावश्यक बल प्रयोग करने को प्रतिबंधित करते हैं।
विरोध प्रदर्शन रोकने के लिए पुलिस को पर्याप्त कानूनी एवं वैधानिक शक्तियां
पुलिस को कानून में कई वैधानिक एवं कानूनी शक्तियां इसीलिए प्रदान की गई हैं की विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्वक हो जैसे सीआरपीसी की धारा 141 जब केंद्र अथवा राज्य सरकार के विरुद्ध पांच या उससे अधिक व्यक्ति प्रदर्शन कर रहे हो तो उसे रोकने के लिए पुलिस कानूनी रूप से स्वतंत्र है
धारा 268 यह सार्वजनिक उपद्रव को परिभाषित करती है।
इसे रोकना भी पुलिस के लिए चुनौती पूर्ण कार्यवाही है।
धारा 130 गैर कानूनी सभा को तीतर-पातर करना जो की महत्वपूर्ण है परंतु सभा तभी गैरकानूनी होगी जब सभा में उपस्थित व्यक्तियों के पास हथियार हो एवं वह उत्तेजित हो
धारा 143 सार्वजनिक उपद्रव की निरंतर या पुनरावृत्ति को रोकने के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेट को अधिकार देती है वह पुलिस सहायता से स्थिति नियंत्रण करने हेतु कानूनी रूप से स्वतंत्र है।
धारा 144 अनुमति देता है कि जनता को उन कार्यों से दूर रखना है जो राज्य एवं केंद्र के द्वारा निर्दिष्ट किए गए हो
यहां अत्यंत महत्वपूर्ण यह है की पुलिस अधिकतर इन धाराओं को।
” कार्ट ब्लेंच” के रूप में इस्तेमाल करती है जो कि भारत गणराज्य में महामहिम राष्ट्रपति के पास सुरक्षित है धारा 129 और 130 लागू करने की पुलिस की शक्ति काफी कमजोर है परंतु फिर भी पुलिस के पास एक तर्क है “लॉ एंड ऑर्डर” मेंटेन करना है।
धारा 130 के खंड 3 में पुलिस को कम से कम बल प्रयोग करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है जिस किसी व्यक्ति अथवा संपत्ति को कम से कम नुकसान हो और सभा को चित्र भीतर किया जा सके।
पुलिस द्वारा किसी भी बोल के प्रयोग हेतु मुख्य सिद्धांतों को राज्यों के संबंधित पुलिस मैनुअल में सूचीबद्ध किया गया है।
उत्तर प्रदेश में धारा 70 के तहत यूपी पुलिस विनी यमन के अंतर्गत यह परिभाषित है।
यूपी पुलिस विनियमन के सिद्धांत की संख्या 7 कहती है अथवा उसकी प्रमुख आवश्यकता यह है कि दंडात्मक या दमनकारी प्रभाव जैसी किसी वस्तु पर विचार नहीं किया जाएगा । पुलिस को दंडात्मक और दमनकारी कार्रवाई करना तो दूर इस पर विचार करने से भी मनाही है।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सिद्धांतों को यदि दृष्टिगत किया जाए तो विषम परिस्थितियों में बल प्रयोग होने पर पुलिस द्वारा किसी भी व्यक्ति के नाजुक अंगों पर वार नहीं किया जा सकता जैसे आंख नाक कान गला शेर हाथ पैर इत्यादि परंतु सामान्य तौर पर बल प्रयोग करते समय पुलिस घेर कर मरती है।
अनीता ठाकुर बनाम जम्मू कश्मीर राज्य 2016(15) सुप्रीम कोर्ट केसेस 525 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि उन मामलों में जहां प्रदर्शन शांतिपूर्वक है या विधानसभा शांतिपूर्वक है बाल का उपयोग बिलकुल भी उचित नहीं है।
अलीगढ़ जनपद में पुलिस बर्बरता की एक घटना पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस सिंघवी ने कहा था कि”” पुलिस प्रत्येक दिन इंसानों के साथ जानवरों से भी ज्यादा बुरा बर्ताव करती है।
पुलिस आयुक्त एवं अन्य बनाम यशपाल शर्मा 2008 155 डीएल 209 डीबी दिल्ली उच्च न्यायालय ने संहिता की धारा 129 के प्रावधानों का उद्देश्य सभा को चित्र करने के लिए सामान्य बल प्रयोग करना बताया वह भी जब जब अशांति का खतरा हो पुलिस का कार्य दंडात्मक एवं दमनकारी नहीं होना चाहिए
करण सिंह बनाम हरदयाल सिंह 1979 क्रिमिनल लॉ जर्नल 1121 एससीसी मैं पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने माना कि बिना कार्यपालक मजिस्ट्रेट के आदेश के बल प्रयोग करना असंवैधानिक है बल प्रयोग तभी किया जा सकेगा। जब प्रदर्शनकारियों का जमाव गैरकानूनी हो2 उनके पास हथियार रहे 3 भीड़ का उद्देश्य हानि पहुंचाना हो।
वर्तमान परिवेश में लाठीचार्ज की घटना को देखते हुए पुलिस कार्यवाही में सुधार की आवश्यकता है इसके लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय को केंद्र सरकार एवं ब्यूरो ऑफ़ पुलिस स्टैंडर्ड एंड रिसर्च डेवलपमेंट को आगे आना चाहिए जिससे लाठी चार्ज जैसी क्रूर भावना को जनता के बीच से मिटाने का कार्य किया जा सके।
नितिन वर्मा एडवोकेट
मंडल अध्यक्ष युवा अधिवक्ता संघ
मानवाधिकार एवं अंतरराष्ट्रीय कानून के विशेषज्ञ के द्वारा