अलीगंज, एटा: गौतम बुद्ध इंटर कॉलेज में बन रही दुकानों के आवंटन को लेकर गंभीर अनियमितताओं के आरोप सामने आए हैं। स्थानीय निवासियों का दावा है कि कॉलेज प्रबंधन मनमानी पर उतारू है और नियमों को ताक पर रखकर दुकानों का आवंटन एटा मुख्यालय तथा दूर-दराज के बाहरी लोगों को किया जा रहा है। अलीगंज के कई निवासी नियमानुसार दुकानें लेने के इच्छुक हैं, लेकिन ऊंची कीमतों और ‘अंदरखाने के खेल’ के चलते वे इससे वंचित हो रहे हैं।
शिक्षा के मंदिर को ‘कॉमर्शियल हब’ बनाने का आरोप
कॉलेज प्रबंधन पर शिक्षा के मंदिर को तेजी से कॉमर्शियल हब में बदलने का आरोप है। स्कूल की आय बढ़ाने के उद्देश्य से बन रहे इस कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स की दुकानों को पहले 99 साल की डीड पर दिया जाना था, लेकिन खरीदार न मिलने पर अब उन्हें 30 साल की डीड पर दिया जा रहा है। जानकारों का मानना है कि यह केवल एक दिखावा है, जिसका असली मकसद रजिस्ट्री खर्च घटाकर निवेशकों को आकर्षित करना है।
नियमों की खुलेआम अवहेलना, जांच के बावजूद कार्रवाई नहीं
सूत्रों के अनुसार, इन दुकानों की डील 18 से 25 लाख रुपये में की जा रही है, जो जिलाधिकारी द्वारा तय किए गए नियमों की खुलेआम अवहेलना है। शिकायतों के बाद जांच तो हुई और रिपोर्ट भी भेजी गई, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई और यह महज खानापूरी बनकर रह गई। अब ध्वस्त की गई कक्षाओं की जगह तेजी से दुकानों का निर्माण किया जा रहा है।
स्थानीय लोगों की उपेक्षा और ‘बंदरबांट’ पर सवाल
नगर के व्यापारी और सामाजिक कार्यकर्ता लगातार यह सवाल उठा रहे हैं कि अलीगंज के योग्य नागरिकों को दरकिनार कर एटा जैसे शहरों से जुड़े लोगों को दुकानें क्यों दी जा रही हैं? यह स्पष्ट संकेत देता है कि स्कूल की संपत्ति पर ‘बंदरबांट का खेल’ चल रहा है। स्थानीय लोग नियमानुसार दुकानें प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन कथित ‘रेट के खेल’ ने उन्हें पीछे धकेल दिया है।
प्रशासन में बदलाव पर बड़ी कार्रवाई की उम्मीद, न्यायालय की शरण में मामला
सूत्रों का कहना है कि वर्तमान अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण निर्माण कार्य बदस्तूर जारी है। हालांकि, जैसे ही प्रशासन में बदलाव होगा, बड़ी कार्यवाही तय मानी जा रही है, क्योंकि जांच में निर्माण की खामियों को पहले ही स्वीकार किया जा चुका है।
ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि और स्कूल के आजीवन सदस्य डॉ. अशोक रतन शाक्य ने खुलकर प्रबंधक रामगोपाल शाक्य पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा है कि विद्यालय की संपत्ति को अवैध रूप से कमाई का जरिया बनाया जा रहा है और वह जल्द ही इस पूरे प्रकरण को लेकर उच्च न्यायालय में वाद दायर करेंगे। एक अन्य शिकायतकर्ता ने भी कहा कि जब शासन से न्याय नहीं मिला तो अब कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा।
यह पूरा मामला सरकारी नीतियों का हवाला देकर शिक्षा को बढ़ावा देने और दूसरी ओर स्कूल की ज़मीन को कॉमर्शियल सेंटर बनाकर मनमाने तरीके से दुकानों का सौदा करने के बीच का विरोधाभास दर्शाता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब कक्षाएं तोड़कर दुकानें बनाई जा रही हैं, तो छात्रों का भविष्य और शिक्षा व्यवस्था कहां जा रही है। इसका जवाब जनता और अदालत दोनों ही अफसरों से मांगेंगी।