आगरा: जहाँ एक ओर बकरा ईद के अवसर पर लोग महंगे बकरों की कुर्बानी कर रहे हैं, वहीं आगरा के शाहगंज, अजम पाड़ा निवासी गुल चमन शेरवानी ने एक अनोखी पहल की है। उन्होंने बकरे के चित्र वाला केक काटकर ईद मनाई और जीव हत्या रोकने का संदेश दिया। शेरवानी का कहना है कि जिनके खुद के किरदार में दाग हैं, वे बेदाग बकरे की कुर्बानी के नाम पर हत्या कर रहे हैं।
‘कुर्बान’ से मिली प्रेरणा: बच्चों ने बचाई जान
जानकारी के अनुसार, लगभग 8 वर्ष पूर्व श्री शेरवानी ने एक छोटे से बकरे के बच्चे को पाला था, जिसका नाम उन्होंने ‘कुर्बान’ रखा था। कुर्बान उनके परिवार के सदस्य की तरह ही रहता, खाता-पीता था। जैसे-जैसे कुर्बान बड़ा हुआ और ईद का समय नजदीक आया, तो शेरवानी परिवार की हिम्मत उसकी कुर्बानी करने की नहीं हुई। वैसे भी शेरवानी परिवार शुद्ध शाकाहारी है।
उन्होंने शुरुआत में किसी मदरसे में, जहाँ अनाथ बच्चे पढ़ते हैं, कुर्बान की कुर्बानी करने का इरादा बनाया। लेकिन शेरवानी की पुत्र गुल वतन शेरवानी और पुत्री गुल सनम शेरवानी ने कुर्बान की कुर्बानी करने से साफ मना कर दिया। बच्चों का कहना था कि अगर कुर्बान की कुर्बानी हुई, तो वे अपनी जान दे देंगे। बच्चों के इस मजबूत इरादे को देखते हुए, शेरवानी परिवार ने कुर्बानी का विचार टाल दिया और इसके बजाय बकरे के चित्र वाला केक लाकर कुर्बानी की परंपरा शुरू की।
तब से, श्री शेरवानी हर वर्ष अपने परिवार के साथ बकरे के चित्र वाला केक लाकर ईद मनाते हैं और जीव हत्या रोकने का संदेश देते आ रहे हैं।
‘किरदार की कुर्बानी’ का संदेश: दौलत की नुमाइश नहीं
श्री शेरवानी का कहना है कि अधिकतर लोग कुर्बानी के नाम पर अपनी दौलत की नुमाइश करते हैं। वे कहते हैं, “जिनके किरदार में तमाम दाग हैं, वही लोग बेदाग बकरे की कुर्बानी के नाम पर हत्या कर देते हैं।” शेरवानी के अनुसार, जिस तरह कुर्बानी के लिए बेदाग जानवर तलाश जाता है, उसी तरह व्यक्ति का खुद का किरदार भी बेदाग होना चाहिए।
उन्होंने तर्क दिया कि जुआ, शराब, अय्याशी करने वाले, या भाई-बहनों का हक मारने वाले लोगों की कुर्बानी करना जीव हत्या जैसा है। उनका मानना है कि अल्लाह तो सिर्फ नाखून और बाल काटने वाले बेदाग आदमी की कुर्बानी भी कबूल कर लेता है, तो फिर पैसे की नुमाइश करते हुए कुर्बानी के नाम पर जीव हत्या क्यों? जीव हत्या करना उचित नहीं है।
श्री शेरवानी ने जोर दिया कि अल्लाह ने अपनी राह में कुर्बानी देने के लिए कहा है, जानवर की हत्या करने के लिए नहीं। लोग अपनी अंदर पल रही बुराइयों को त्याग करने की शपथ लेकर भी ईद पर सच्ची कुर्बानी दे सकते हैं। उन्होंने अमीर लोगों को अल्लाह की राह में पैसा और दौलत खर्च करने का संदेश दिया।
शेरवानी का मानना है कि अगर कोई शख्स बचपन से बकरे को पाले और फिर उसकी कुर्बानी करे, तो उसे अपने प्रिय से अलग होने या जुदाई का एहसास होगा, तभी कुर्बानी कबूल होती है। लेकिन ऐसा करना अधिकतर लोगों के लिए संभव नहीं है, इसलिए बुरी आदतों को त्यागना ही सच्ची कुर्बानी है।