लखनऊ। अयोध्या राम मंदिर में विराजे रामलला के बारे में प्रसिद्ध मूर्तिकार अरुण योगीराज ने कई अविश्वसनीय बात बताई है। उन्होंने अपने साथ हुए चमत्कारिक घटनाओं के बारे में कहा कि मूर्ति निर्माण होते समय अलग दिखती थी लेकिन प्राण प्रतिष्ठा के बाद भगवान ने अलग रूप ले लिया है। जिस रामलला को सात महीने तक गढ़ा, उसे प्राण-प्रतिष्ठा के बाद मैं खुद नहीं पहचान पाया। गर्भगृह में जाते ही बहुत बदलाव हो गया। मूर्ति की आभा ही कुछ और हो गई। इस बदलाव के बारे में साथ मौजूद लोगों से चर्चा की। यह ईश्वरीय चमत्कार या कुछ और।
योगीराज ये बातें एक टीवी चैनल के इंटरव्यू में कहीं। उन्होंने कहा कि ये हमारे पूर्वजों की सालों की तपस्या का ही नतीजा है कि हमें काम के लिए चुना गया है। अभी मैं अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकता। उन्होंने बताया कि रामलला की मूर्ति बनने में करीब सात महीने का समय लगा। इस दौरान वह दुनिया से कट गए और बच्चों के साथ समय बिताया। मूर्तिकार ने पिछले सात महीनों की अवधि को चुनौतीपूर्ण बताया।
एक दिलचस्प किस्सा भी शेयर करते हुए बताया कि कैसे रोज बंदर उनके घर आकर मूर्ति के दर्शन करते और मूर्ति का काम देखते और लौट जाते। काम के दौरान बंदरों के आने से परेशानी होती थी। हम लोगों का ध्यान भी भटक जाता था। इस संबंध में हमने चंपत राय से बात की। उन्होंने इसका समाधान किया और कर्मशाला घेरवा दिया। दरवाजे लग गए। जिस दिन दरवाजा लगा उसी शाम को बंदर फिर आए। अब बंदर दरवाजा पीटने लगे हमने दरवाजा खोलकर देखा तो एक बंदर को वहां पाया।
अरुण योगीराज ने बताया जब तक हमने दरवाज नहीं खोला तब तक बंदर दरवाजा पिटता रहा। हमने दरवाजा खोला तो बंदर अंदर आए। पहले की तरह ही बंदरों ने मूर्ति का निर्माण देखा और चले गए। अरुण योगीराज से जब पूछा गया कि क्या एक ही बंदर आते थे? इस पर उन्होंने कहा कि यह मैं नहीं बता सकता।
29 दिसंबर को मूर्ति को फाइनल किया गया। ट्रस्ट से मिली जानकारी के बाद मैंने रामलला की इस मूर्ति को फाइनल टच देना शुरू किया। समय रहते काम पूरा किया। अब तो 22 जनवरी को रामलला विराजमान हो गए।