समाज सेवा का अवसर देने वालों ने भी सजा दिए हैं सेवा के मंच
फैजान खान
आगरा। उत्तर प्रदेश में अब निकाय चुनावों की आहट साफ सुनाई देने लगी है। समाजसेवियों की मानो बाढ सी आ गई है, वहीं समाजसेवा के मंच भी सज कर तैयार हैं। जो जितनी समाज सेवा कर रहा है मंच पर उतना ही गुणगान पा रहा है। इससे जनता को भी यह अनुमान लगाने में मदद मिल रही है कि नेताजी इस बार कितने मूड में है।
राजनीतिक दलों ने बाकायदा तैयारियां शुरू कर दी हैं। कहीं संभावित प्रत्याशियों की सूची तैयार हो रही है तो कहीं कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने का काम चल रहा है। इस बीच खुद के चुनाव मैदान में डटे होने का जनता को आभास कराने के लिए संभावित प्रत्याशी अपनी ओर से हर जतन कर रहे हैं।
कोई त्यौहार, तो कोई दिवस विशेष के बहाने अपने होर्डिंग और बैनर तनवा रहा है भले ही 5 साल क्षेत्र में नजर न आए हो। कोई खुद को समाजसेवी और गरीबों का मसीहा बताने का हर संभव प्रयास में लगे हुए है। समाजसेवियों की मानो बाढ सही आ गई है। समाजसेवियों की इस बौछार का लाभ उठाने वालों की भी कमी नहीं है।
मौसमी अवसरवादी भी खुल कर सामने आ गए हैं। सामाजिक, जातीय, धार्मिक कार्यक्रमों की मानो श्रृंखला सी चल निकली है। हर कोई कार्यक्रम करने पर आमादा दिखाई दे रहा है। इन कार्यक्रमों में भावी प्रत्याशियों में खुशी खुशी तो कोई मनमसोस कर पहुंच रहा हैं। समाजसेवा का मंच सजाने वाले ऐसे समाजसेवियों की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं, इसकी एवज में पूरा पारितोषिक भी पा रहे हैं।
हालांकि कुछ भावी प्रत्याशियों पर यह भारी भी पड रहा है। किसी पार्टी विशेष के समर्थन से चुनाव लड़ने की जुगत में लगे लोगों के लिए यह दौर खासा परेशानी वाला है। एक तरफ उन्हें समाजसेवा का मौका देने के लिए लोगों की लाइन उनके दरवाजे पर लगी हुई है, वहीं वह खुद इस चिंता में डूबे हैं कि उन्हें पार्टी आपना प्रत्याशी बनाती है या नहीं। इस समय स्थिति एक अनार सौ बीमार वाली जो हैं।
निकाय चुनावों की अभी घोषणा नहीं हुई। आचार संहिता भी नहीं लगी है, यह दौर लम्बा न खिंचे ऐसी प्रार्थना अधिकांश संभावित प्रत्याशी कर रहे हैं, क्यों कि उनके पास समाज सेवा के निमंत्रणों की बाढ सी आ गई है। इन्हें नकारना या कबूलना दोनों ही विकल्प बेहद जटिल हैं। समाजसेवा का अवसर देने वालों ने भी मंच सजा दिए हैं, तय है जो जितनी समाज सेवा करेगा उसे मंच पर उतना ही गुणगान मिलेगा।
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