ललितपुर, उत्तर प्रदेश: ललितपुर जिले में अब पत्रकारों के लिए स्कूलों में सीधे प्रवेश करना आसान नहीं होगा। एक बड़े कदम के तहत, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) रणवीर सिंह ने एक नया आदेश जारी किया है, जिसके अनुसार अब कोई भी मीडियाकर्मी बिना पूर्व अनुमति के स्कूल परिसर में प्रवेश नहीं कर सकेगा। इस आदेश के बाद न तो कोई पत्रकार सीधे स्कूल में घुसकर वीडियो बना पाएगा, न तस्वीरें खींच पाएगा और न ही अचानक पहुंचकर ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ कर सकेगा। यह फैसला पत्रकारों और शिक्षा विभाग के बीच एक नई बहस को जन्म दे सकता है।
क्या है BSA का नया आदेश और क्यों लिया गया यह कदम?
जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी रणवीर सिंह द्वारा जारी ताजा आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कुछ पत्रकार बिना किसी पूर्व सूचना या अनुमति के सीधे स्कूलों में पहुंच जाते हैं। इससे स्कूल स्टाफ पर अनावश्यक दबाव बनता है, शैक्षणिक माहौल बिगड़ता है और सबसे महत्वपूर्ण बात, बच्चों की पढ़ाई में खलल पड़ता है और उनका ध्यान भी बंटता है।
आदेश में साफ निर्देश दिए गए हैं कि अब से बिना वैध पहचान और पूर्व अनुमति के कोई भी पत्रकार स्कूल परिसर में प्रवेश नहीं करेगा। बीएसए ने बताया कि ऐसा आदेश पहले भी जारी किया जा चुका था, लेकिन अब इसे दोबारा और अधिक सख्ती से लागू किया जा रहा है ताकि स्कूलों में पढ़ाई का माहौल बना रहे और शिक्षक बिना किसी बाधा के अपना कार्य कर सकें।
‘हम मीडिया से हैं’ अब नहीं चलेगा पास
आम भाषा में कहें तो, अब केवल “हम मीडिया से हैं” कहकर स्कूलों में घुसने का पुराना तरीका खत्म हो गया है। जो भी पत्रकार या मीडियाकर्मी स्कूलों से संबंधित कोई खबर या रिपोर्टिंग करना चाहते हैं, उन्हें पहले जिला स्तर पर संबंधित अधिकारी से पूर्व अनुमति लेनी होगी। बिना इस अनुमति के, स्कूल के गेट पर ही उन्हें रोक दिया जाएगा और परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी।
यह आदेश विशेष रूप से उन पत्रकारों के लिए एक चुनौती बन सकता है जो अक्सर शिक्षा व्यवस्था की जमीनी हकीकत को जानने के लिए अचानक स्कूलों का दौरा करते हैं। यह कदम पारदर्शिता और पत्रकारिता की स्वतंत्रता के बीच एक संतुलन स्थापित करने को लेकर बहस छेड़ सकता है।
BSA ललितपुर कार्यालय का आदेश:
शिक्षा व्यवस्था में सुधार या सूचना का नियंत्रण?
एक तरफ, शिक्षा विभाग का तर्क है कि यह कदम स्कूलों में अनुशासन बनाए रखने और बच्चों की पढ़ाई को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। अक्सर, कुछ रिपोर्टिंग शैलियों से स्कूलों में तनाव का माहौल बन जाता है। दूसरी ओर, पत्रकारों का तर्क है कि ऐसे प्रतिबंध से जमीनी स्तर पर शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त समस्याओं को उजागर करने में बाधा आ सकती है। खासकर, सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील की गुणवत्ता, शिक्षकों की उपस्थिति या अन्य अव्यवस्थाओं को बिना अचानक दौरे के पकड़ना मुश्किल हो सकता है।
फिलहाल, ललितपुर के इस आदेश ने मीडिया और शिक्षा विभाग के बीच एक नई चर्चा को जन्म दिया है। यह देखना होगा कि इस आदेश को लेकर पत्रकारों की क्या प्रतिक्रिया होती है और क्या यह आदेश भविष्य में अन्य जिलों में भी लागू किया जा सकता है।