अंबेडकर नगर। अंबेडकर नगर जिले का विद्युत विभाग कथित तौर पर कुछ ऐसे ‘बाबूओं’ के रहमोकरम पर चल रहा है, जिन पर भ्रष्टाचार और मनमानी के गंभीर आरोप लग रहे हैं। आरोप है कि विद्युत वितरण खंड अकबरपुर में तैनात अजीम और अशोक शर्मा नामक दो बाबू वर्षों से अपने पदों पर काबिज हैं और विभागीय नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए खुलेआम कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं।
‘कोहिनूर’ बाबूओं का दबदबा
विभाग के ही कर्मचारियों का कहना है कि अजीम और अशोक शर्मा, जिन्हें कुछ लोग ‘कोहिनूर’ की श्रेणी में रखते हैं, लोगों से खुलेआम एस्टीमेट के नाम पर पैसे वसूलते हैं। अशोक शर्मा की पहुंच इतनी गहरी बताई जाती है कि वह जिस एस्टीमेट को चाहे, उसे अपनी टेबल पर रखवा लेता है। वहीं, अजीम पर आरोप है कि वह एजेंसी के ठेकेदारों से मिलकर विभाग को लूटने का काम करता है। कर्मचारियों का यह भी कहना है कि हाल ही में जिन संविदा कर्मियों को सेवा से बाहर किया गया, वे वही थे जिन्होंने अजीम के ‘दरबार’ में ‘भेंट’ नहीं चढ़ाई।
शिकायतों के बावजूद नहीं होती कार्रवाई
इन दोनों बाबूओं का प्रभाव विभाग में इतना अधिक है कि शिकायतों के बावजूद भी अधीक्षण अभियंता से लेकर अधिशासी अभियंता तक उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर पाते। इसके उलट, आरोप है कि ये बाबू जिस भी कर्मचारी का तबादला चाहें, उसे अपने मनचाहे स्थान पर करा सकते हैं। यह स्थिति विभागीय कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
निविदा पटल पर 5 साल से काबिज, नियमों की अनदेखी
अजीम अहमद पर सबसे बड़ा आरोप यह है कि वह पिछले 5 वर्षों से निविदा (टेंडर) पटल पर काबिज है, जबकि विभागीय नियमों के अनुसार कोई भी कर्मचारी अधिकतम 3 वर्षों तक ही एक पटल पर रह सकता है। आरोप है कि वह कॉरपोरेशन के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए अधिकारियों के साथ मिलकर ठेकेदारों को लाभ पहुंचा रहा है और विभाग को चूना लगा रहा है। इससे कार्य की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, क्योंकि ठेकेदारों को कथित तौर पर 60 प्रतिशत तक कमीशन देना पड़ रहा है। टेंडरिंग प्रक्रिया में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण आम जनता को उच्च गुणवत्ता की विभागीय सुविधा नहीं मिल पा रही है।
संविदा कर्मियों की छंटनी में भी भूमिका
अजीम अहमद की भूमिका सिर्फ टेंडरिंग भ्रष्टाचार तक ही सीमित नहीं है। आरोप है कि उसने पूर्व में संविदा कर्मियों को सेवा से बाहर करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जिन संविदा कर्मियों ने उसके ‘दरबार’ में ‘हाजिरी’ लगाकर ‘चढ़ावा’ दिया, उनकी नौकरी बच गई, जबकि ऐसे मजबूर कर्मी जो ‘चढ़ावा’ नहीं दे सके, उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी।
अधिकारियों की मिलीभगत पर सवाल
लगातार शिकायतों के बावजूद एक कर्मचारी का विभागीय तय सीमा से अधिक समय तक एक ही पटल पर काम करना अधिकारियों की मिलीभगत की ओर सीधा इशारा करता है। यह साफ है कि किसी आम कर्मचारी के लिए नियमों को ताक पर रखकर ऐसा काम नहीं किया जा सकता। आरोप है कि नीचे से ऊपर तक सभी अधिकारी मिले हुए हैं और अजीम अहमद को भ्रष्टाचार की खुली छूट दे रखी है।
जांच हुई तो खुलेंगे कई राज
यदि अजीम अहमद और अशोक शर्मा के कार्यकाल में हुए कार्यों की निष्पक्ष जांच की जाए, तो निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार से जुड़े सैकड़ों मामलों की पोल खुल सकती है। आरोप है कि इसी ‘काली कमाई’ के दम पर इन दोनों बाबूओं ने अनगिनत चल-अचल संपत्ति बना रखी है। अब देखना यह होगा कि भ्रष्टाचार पर ‘जीरो टॉलरेंस’ का दम भरने वाली सरकार आखिरकार कब इन कर्मचारियों पर कार्रवाई करती है। यदि इन बाबूओं पर कार्रवाई होती है, तो निश्चित तौर पर जिले के कई अधिकारियों की गर्दन भी इसमें फंसती नजर आएगी।