पहलगाम हमला: सरकार की सुरक्षा नीति की खुली हार- चर्तुवेदी

BRAJESH KUMAR GAUTAM
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आम आदमी पार्टी के आगरा जिलाध्यक्ष सिद्धार्त चतुर्वेदी

आगरा। आम आदमी के जिला अध्यक्ष सिद्धार्त चर्तुवेदी ने पहलगाम हमले को सर्कार की सुरक्षा निति की हार बताया है। उन्होने कहा की 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम की खूबसूरत बाइसारन घाटी में हुआ बर्बर आतंकी हमला महज कुछ पर्यटकों पर किया गया हमला नहीं है, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर में सरकार की लचर और नाकाम सुरक्षा नीति पर एक सीधा और करारा तमाचा है। इस कायराना हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई और दर्जनों अन्य घायल हो गए—और हमेशा की तरह, सरकार की प्रतिक्रिया ‘कड़ी निंदा’ और ‘जांच के आदेश’ जैसे घिसे-पिटे, निष्प्रभावी बयानों तक ही सीमित नजर आ रही है।

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बाइसारन घाटी कोई दुर्गम सीमावर्ती जंगल नहीं है; यह एक सुप्रसिद्ध और लोकप्रिय पर्यटक स्थल है, जहाँ हर साल गर्मियों के मौसम में हजारों की संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। ऐसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था का यह आलम न केवल शर्मनाक है, बल्कि यह उन सभी लोगों के मन में डर और असुरक्षा की भावना पैदा करता है जो शांति और सुकून की तलाश में कश्मीर की ओर रुख करते हैं। आतंकियों का दिनदहाड़े भीड़ के बीच घुसकर अंधाधुंध फायरिंग करना और सुरक्षा बलों का उनकी परछाईं तक न पकड़ पाना—यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि खुफिया तंत्र और जमीनी स्तर पर सुरक्षा तैयारियों की पूरी तरह से विफलता हुई है।

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सरकार लगातार कश्मीर को ‘नई शुरुआत’ और ‘पर्यटन का स्वर्ग’ के रूप में प्रचारित करती है, बड़े-बड़े दावे करती है और आकर्षक विज्ञापन जारी करती है। लेकिन जब वास्तविक सुरक्षा प्रदान करने की बात आती है, तो वही पुरानी, ढीली और कमजोर नीति, वही रटी-रटाई प्रतिक्रियाएँ और वही जमीन पर शून्य कार्रवाई की निराशाजनक कहानी बार-बार दोहराई जाती है।

आखिर सरकार को कोई ठोस और प्रभावी सुरक्षा रणनीति बनाने के लिए और कितने निर्दोष शवों की आवश्यकता होगी? आतंकी बार-बार हमला करके चले जाते हैं, और सरकार हर बार ‘जवाब देंगे’ का खोखला झुनझुना पकड़ाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है। यह बहुप्रतीक्षित ‘जवाब’ आखिर कब आएगा? कब तक हमारे निर्दोष नागरिकों की लाशें गिरती रहेंगी और कब तक हमें सिर्फ खोखले वादे ही मिलते रहेंगे? यह हमला सरकार की सुरक्षा नीतियों की खुली हार है और यह सवाल उठाता है कि क्या वास्तव में कश्मीर में आम नागरिकों और पर्यटकों के लिए कोई सुरक्षित भविष्य है भी या नहीं।

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