आगरा। आगरा जिले में नया शिक्षा सत्र शुरू होते ही प्राइवेट प्रकाशकों की चांदी कटने लगती है। आरोप है कि स्कूलों की मिलीभगत से सरकारी किताबों के मुकाबले कई गुना अधिक कीमत पर नर्सरी से लेकर कक्षा आठ तक की प्राइवेट प्रकाशनों की महंगी किताबें बेची जा रही हैं, जिससे अभिभावकों की जेब पर भारी बोझ पड़ रहा है। यह सिलसिला हर साल चलता है, लेकिन स्कूल खुलने के कुछ दिनों बाद ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। अधिकारी केवल नोटिस जारी करने तक ही सीमित रह जाते हैं।
लंबे समय के बाद अभिभावकों की समस्याओं को देखते हुए आगरा में जिला शुल्क नियामक समिति का गठन तो किया गया है, लेकिन इसकी पहली बैठक कब होगी, यह अभी भी रहस्य बना हुआ है। वहीं, पड़ोसी जिले संभल में जिला मजिस्ट्रेट ने जिला शुल्क नियामक समिति को प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए प्राइवेट किताबों लगाने वाले तैंतीस स्कूलों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
पापा संस्था के दीपक सिंह सरीन ने संभल के जिला मजिस्ट्रेट के आदेश और मुख्य विकास अधिकारी को पहले सौंपी गई 12 स्कूलों की सूची (जिनमें नारायण पब्लिक स्कूल, एंथोनी पब्लिक स्कूल, फ्रांसिस पब्लिक स्कूल, सेंट पॉल चर्च कॉलेज, सेंट पीटर कॉलेज, डीपीएस आगरा, सेंट पैट्रिक जूनियर कॉलेज, कैंब्रिज पब्लिक स्कूल, सनफ्लावर पब्लिक स्कूल, सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल और सेंट क्लियर कॉन्वेंट स्कूल आदि शामिल हैं) को जिलाधिकारी आगरा के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने सवाल उठाया कि जब उत्तर प्रदेश में कानून समान है और संभल में कार्रवाई हो सकती है, तो आगरा में क्यों नहीं? किसके संरक्षण में बेसिक शिक्षा परिषद के पाठ्यक्रम को दरकिनार कर प्राइवेट स्कूलों में प्राइवेट प्रकाशनों की किताबें लगाई जा रही हैं?
दीपक सिंह सरीन ने कहा कि संभल के जिला मजिस्ट्रेट ने गोपनीय जांच के आधार पर कार्रवाई की है, जबकि वे स्वयं स्कूलों की सूची दे रहे हैं। उन्होंने मांग की कि इसकी जांच कर आगरा के स्कूलों पर कब कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने जिलाधिकारी को मुख्य विकास अधिकारी द्वारा समस्त स्कूल प्रबंधकों और प्रधानाचार्यों को जारी किया गया वह आदेश पत्र भी दिखाया, जिसमें स्पष्ट रूप से बेसिक शिक्षा परिषद के निर्धारित पाठ्यक्रम के अलावा कोई अन्य पाठ्यक्रम न पढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं। इसके बावजूद प्राइवेट स्कूलों की मनमानी जारी है।
दीपक सिंह सरीन ने यह भी कहा कि यदि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी इस पर रोक लगाने में असमर्थ हैं, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। जिलाधिकारी ने सभी दस्तावेजों का अवलोकन करते हुए इस विषय को गंभीरता से देखने और जल्द ही जांच कर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है।