इबादत में गुजरी शबे बरात की रात, पूर्वजों की कब्रागाहों पर पढ़ी दुआएं

Shamim Siddique
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इबादत में गुजरी शबे बरात की रात, पूर्वजों की कब्रागाहों पर पढ़ी दुआएं

फतेहपुर सीकरी: शबे बरात के मौके पर मुस्लिम समाज के लोगों ने एक साथ इबादत का महत्वपूर्ण अवसर मनाया। इस विशेष रात को मुस्लिम धर्म में गुनाहों की माफी और पूर्वजों के लिए दुआएं करने का बहुत ही महत्व होता है। शबे बरात के मौके पर पूरे जिले में मस्जिदों, इबादत गाहों और कब्रिस्तानों में धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

शबे बरात का महत्व और इबादत का सिलसिला

शबे बरात की रात को मुस्लिम धर्म में विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह वह रात होती है जब अल्लाह अपने बंदों के गुनाहों को माफ करता है। इसी अवसर पर, मुस्लिम समाज के लोग अपने और अपने पूर्वजों के गुनाहों की माफी के लिए अल्लाह से दुआ करते हैं। इस रात को इबादत में बिताने का परंपरागत रूप से खास महत्व है, ताकि अपने सभी गुनाहों से छुटकारा पाया जा सके और आत्मा को शांति मिल सके।

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कब्रों पर दुआ और प्रसाद वितरण

शबे बरात के इस मौके पर विशेष रूप से मृतकों की आत्मा की शांति के लिए भी दुआ की गई। मुस्लिम समाज के लोग अपने पूर्वजों की कब्रों पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। फतेहपुर सीकरी में भी इस अवसर पर लोग कब्रिस्तान गए और वहां अपने पूर्वजों की कब्रों पर फूल चढ़ाए और दुआ की।

इस दौरान, अपने मृतकों की आत्मा की शांति के लिए प्रसाद भी बनवाया गया, जिसे गरीबों में वितरित किया गया। यह एक सामाजिक और धार्मिक कृत्य है, जिससे न केवल मृतकों की यादों को सम्मानित किया जाता है, बल्कि समाज में भी एकता और भाईचारे का संदेश जाता है।

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मस्जिदों और इबादत गाहों में रात भर इबादत

इस खास रात को मस्जिदों और इबादत गाहों में रातभर इबादत का सिलसिला जारी रहा। लोग नमाज अदा करते रहे, तकरीबन सभी मस्जिदों में अल्लाह से दुआ और माफी की विशेष दुआएं की गईं। वहीं, मजारों पर भी श्रद्धालुओं का हुजूम रहा और उन्होंने वहां जाकर फातिहा पढ़ी।

सभी मस्जिदों और इबादत गाहों को इस रात के विशेष मौके पर सजाया गया था। रोशनी से पूरा माहौल रौशन था, और यह धार्मिक अनुष्ठान ने एक अपूर्व आस्था और विश्वास का अहसास दिलाया।

शबे बरात का एकता और भाईचारे का संदेश

शबे बरात की रात का महत्व सिर्फ व्यक्तिगत पूजा-अर्चना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में एकता और भाईचारे को बढ़ाने का भी प्रतीक है। इस रात में मुस्लिम समाज एकजुट होकर अपने पुराने रिश्तों को पुनः सम्मानित करता है और एक-दूसरे के साथ खुशियां बांटता है।

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