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UP में बेसिक शिक्षा का नया फरमान; बच्चों की अनुपस्थिति पर प्रिंसिपल लेंगे ‘डोर-टू-डोर’ एक्शन!

लखनऊ ब्यूरो
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लखनऊ, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने और ड्रॉपआउट दर (स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या) को कम करने के लिए योगी सरकार ने सख्त कदम उठाए हैं। राज्य के बेसिक शिक्षा के अपर मुख्य सचिव की ओर से जारी नए निर्देशों के मुताबिक, अब अगर कोई भी छात्र लगातार छह दिन या उससे अधिक स्कूल से अनुपस्थित रहता है, तो स्कूल के प्रिंसिपल सीधे उसके घर जाकर परिवार से मुलाकात करेंगे।

अनुपस्थिति पर कड़ी निगरानी और फॉलो-अप

बेसिक शिक्षा अधिकारी हेमंत राव ने इस संबंध में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रिंसिपल बच्चों के स्कूल न आने का कारण पूछेंगे और अभिभावकों से बच्चे को नियमित रूप से स्कूल भेजने की बात कहेंगे। सबसे खास बात यह है कि जब तक छात्र दोबारा स्कूल आना शुरू नहीं करता, तब तक प्रिंसिपल उसका लगातार फॉलो-अप करते रहेंगे।

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नए निर्देशों के अनुसार, अनुपस्थिति की सीमाएं तय की गई हैं:

  • अगर कोई छात्र एक महीने में 6 दिन, 3 माह में 10 दिन, या 6 महीने में 15 दिन से अधिक विद्यालय से अनुपस्थित रहता है, तो प्रिंसिपल को उसके माता-पिता को स्कूल बुलाकर बातचीत करनी होगी।
  • यदि कोई छात्र 9 महीने में 21 दिन या पूरे शैक्षणिक सत्र में 30 दिन से अधिक अनुपस्थित रहता है, तो उसे अति संभावित ड्रॉपआउट की श्रेणी में रखा जाएगा।

ड्रॉपआउट छात्रों के लिए विशेष प्रशिक्षण

इन ‘अति संभावित ड्रॉपआउट’ छात्रों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। यदि ऐसे छात्र परीक्षा में 35 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त करते हैं, तो उन्हें औपचारिक रूप से ड्रॉपआउट मानकर उनके लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों की व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा, अनुपस्थित रहने के बाद स्कूल वापस आने वाले छात्रों के लिए विशेष कक्षाओं का संचालन किया जाएगा, ताकि उनकी पढ़ाई में हुई कमी को पूरा किया जा सके और वे अन्य छात्रों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ सकें।

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प्रिंसिपल और शिक्षकों की बढ़ी जिम्मेदारी

इन निर्देशों के बाद अब परिषदीय स्कूलों के प्रधानाचार्यों और अध्यापकों की जिम्मेदारियां काफी बढ़ गई हैं। अब उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके स्कूल में छात्रों की ड्रॉपआउट संख्या कम से कम हो। अगर ऐसा नहीं होता है, तो उन्हें अनुपस्थित रहने वाले छात्रों के लिए विशेष कक्षाएं चलाकर उनकी पढ़ाई पूरी करवानी होगी।

यह निर्देश उन प्रधानाचार्यों और अध्यापकों के लिए भी एक चेतावनी है, जो सिर्फ नामांकन संख्या बढ़ाने के लिए बच्चों का एडमिशन तो कर लेते थे, लेकिन उसके बाद बच्चे स्कूल आएं या न आएं, इस बात पर ध्यान नहीं देते थे। अब उन्हें छात्रों की उपस्थिति और शैक्षिक प्रगति दोनों पर गंभीरता से काम करना होगा। यह कदम उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हो सकता है।

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