लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के कर्मचारियों की ओर से बड़े आंदोलन की तैयारी की जा रही है। यूपी पावर कारपोरेशन के प्रबंधन द्वारा प्रदेश की बिजली कंपनियों को पीपीपी मोड (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) पर चलाने का फैसला लिया गया है, जिसके बाद इस निर्णय का चौतरफा विरोध शुरू हो गया है। इस फैसले के खिलाफ विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने एक महत्वपूर्ण बैठक की और आंदोलन का ऐलान किया है।
निजीकरण के खिलाफ व्यापक जनसंपर्क अभियान
बिजली विभाग के कर्मचारियों का आरोप है कि यूपी पावर कारपोरेशन का यह फैसला न केवल कर्मचारियों के हित में है, बल्कि इससे आम जनता को भी परेशानी हो सकती है। इस विरोध का हिस्सा बनने के लिए विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने एक व्यापक जनसंपर्क अभियान शुरू करने का निर्णय लिया है। समिति ने घोषणा की है कि इस अभियान के तहत जन पंचायतों का आयोजन किया जाएगा। पहले चरण में वाराणसी और आगरा में जन पंचायतों का आयोजन किया जाएगा।
पहली जन पंचायत 4 दिसंबर को वाराणसी में
आंदोलन के पहले चरण के तहत, पहली जन पंचायत 4 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में आयोजित की जाएगी। इसके बाद दूसरी जन पंचायत 10 दिसंबर को आगरा में आयोजित होगी। इन जन पंचायतों में न केवल बिजली विभाग के कर्मचारी, बल्कि आम उपभोक्ता भी शामिल होंगे। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य प्रदेश में बिजली वितरण निगमों के निजीकरण के खिलाफ जन जागरूकता फैलाना और इसके दुष्प्रभावों से लोगों को अवगत कराना है।
संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री से की अपील
यूपी विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की है कि वे व्यापक जनहित में वाराणसी और आगरा विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के निर्णय को रद्द करें। समिति का कहना है कि 25 जनवरी 2000 को मुख्यमंत्री के साथ हुए समझौते में यह साफ था कि अगर बिजली सुधार अंतरण स्कीम के बाद कोई समस्याएँ आती हैं, तो उन्हें एक वर्ष बाद सुधारने के लिए कदम उठाए जाएंगे।
निजीकरण के विरोध में कर्मचारी और उपभोक्ता एकजुट
संघर्ष समिति ने यह भी कहा कि राज्य विद्युत परिषद का विघटन और उसके बाद की स्थिति पूरी तरह असफल साबित हुई है। 2000 में राज्य विद्युत परिषद के विघटन के बाद से 77 करोड़ रुपये के घाटे से शुरू हुआ नुकसान अब 25 साल में बढ़कर 1.10 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है। इस पर समिति का कहना है कि इस विघटन का प्रयोग पूरी तरह से विफल रहा और अब इसे वापस पूर्व की स्थिति में लाने की आवश्यकता है।
पहले कर्मचारियों और अभियंताओं को विश्वास में लिया जाए
संघर्ष समिति के नेताओं ने जोर देकर कहा कि यदि राज्य में बिजली वितरण निगमों का निजीकरण किया जाता है, तो यह कर्मचारियों और अभियंताओं के विश्वास के बिना संभव नहीं हो सकता। 2018 और 2020 में हुए समझौतों में यह बात साफ कही गई थी कि राज्य के विद्युत वितरण निगमों में सुधार की प्रक्रिया कर्मचारियों और अभियंताओं को विश्वास में लेकर ही की जाएगी, न कि उनके विरोध में।
विरोध का उद्देश्य: जनहित और कर्मचारियों का संरक्षण
संघर्ष समिति ने अपने बयान में कहा है कि यूपी पावर कारपोरेशन का निजीकरण का यह निर्णय कर्मचारियों और आम जनता के हित में नहीं है। कर्मचारियों का मानना है कि इससे उनकी नौकरी की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और आम जनता को भी बिजली की दरों में बढ़ोतरी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।