जैथरा (एटा)। नगर पंचायत जैथरा में करोड़ों की संपत्ति को योजनाबद्ध ढंग से चहेतों में बांटने का मामला सामने आया है। आरोप है कि करोड़ों की कीमत वाली तीन दुकानों को सुनियोजित योजना के तहत कौड़ियों के मोल आवंटित कर दिया गया। जिम्मेदारों ने नीलामी प्रक्रिया में नियमों को दरकिनार कर नगर की बेशकीमती परिसंपत्ति को प्रायोजित बोली के सहारे अपने खास लोगों की झोली में डाल दिया। नगर में चर्चा है कि दुकानों की बोली लगाने वाले सिर्फ मोहरे मात्र हैं, जबकि असली खरीददार कोई और हैं।
नगर पंचायत प्रशासन की तरफ से जारी की गई विज्ञप्ति के अनुसार इन दुकानों की न्यूनतम बोली 6 लाख 41 हजार रुपये तय की गई थी, लेकिन न तो सही तरीके से नीलामी की सूचना प्रसारित की गई और न ही खुली एवं पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई। नगर में इस नीलामी के लिए सार्वजनिक रूप से न तो कोई मुनादी कराई गई और न ही एनाउंसमेंट। कुछ दिन पूर्व सिर्फ एक समाचार पत्र में विज्ञप्ति जारी कराकर नाममात्र की औपचारिकता पूरी कर दी गई। नीलामी प्रक्रिया में सिर्फ चुनिंदा बोलीदाताओं को ही शामिल किया गया। नतीजा यह हुआ कि बोली 7 लाख रुपये का आंकड़ा भी नहीं छू सकी। जबकि सूत्र बताते हैं एक दुकान की औसत कीमत 20 से 25 लाख रुपए है।
किसको मिली दुकानें-
मनोज कुमार गुप्ता : 6,75,500 रुपये
अनूप सिंह चौहान : 6,76,700 रुपये
अनिल कुमार गुप्ता : 6,80,000 रुपये
स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि इन दुकानों के निर्माण में इससे ज्यादा पैसा खर्च हुआ, ऐसे में यह सीधा-सीधा सरकारी संपत्ति का नुकसान है। आरोप है कि यह आवंटन पहले से ही सेट था, इसलिए किसी बाहरी बोलीदाता को असल जानकारी तक नहीं दी गई। नगर पंचायत के प्रभारी बाबू या अन्य किसी भी कर्मचारी ने आज दोपहर तक इस नीलामी की कोई जानकारी नही दी। पारदर्शी प्रक्रिया के नाम पर अपारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई है। नगर पंचायत कार्यालय पर आज के वातावरण से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे यहां नीलामी की अपेक्षा किसी जमीन पर अवैध कब्जा की योजना बन रही है।
नगर पंचायत की पारदर्शिता पर सवालिया निशान –
नगर के संभ्रांत और जानकार लोगों ने कटाक्ष करते हुए कहा कि नीलामी की सूचना को इस अंदाज में छिपाया गया कि कोई प्रतिस्पर्धा हो ही न सके। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब पहले से ही जमीन के मालिकाना हक को लेकर कोर्ट में मामला विचाराधीन है। न्यायालय ने यथा स्थिति बनाए रखने के लिए स्थगन आदेश भी पारित किया हुआ है। इसके बावजूद भी दुकानों की नीलामी की गई, यह अब आम आदमी की समझ से परे है।
नगर वासियों में आक्रोश — जांच की मांग-
जैथरा के लोगों का साफ आरोप है कि नगर पंचायत के जिम्मेदार अधिकारी और कुछ जनप्रतिनिधि मिलकर सरकार को राजस्व का चूना लगा रहे हैं। करोड़ों की सरकारी संपत्ति को चहेतों में बांटकर सार्वजनिक हितों को भारी नुकसान पहुंचाया गया है। लोगों का कहना है कि ये दुकानों की नीलामी नही, भ्रष्टाचार की कहानी है। लोगों ने मामले की उच्चस्तरीय जांच, जिम्मेदारों पर कार्रवाई और पारदर्शी तरीके से पुनः नीलामी कराए जाने की मांग की है।
यदि इस पर तत्काल संज्ञान नहीं लिया गया, तो नगर पंचायत जैथरा में भ्रष्टाचारियों के हौसले और बुलंद होंगे और जनता के हित की जमीन पर ऐसे ही बंदरबांट होता रहेगा। इस पूरी नीलामी प्रक्रिया पर उठ रही उंगलियों के बीच प्रशासनिक चुप्पी भी कई सवाल खड़े कर रही है।
