लोक दायित्व यात्रा: राम-विश्वामित्र से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण, संरक्षण की मांग

Dharmender Singh Malik
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लोक दायित्व यात्रा: राम-विश्वामित्र से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण, संरक्षण की मांग

‘लोक दायित्व’ के तत्वावधान में अयोध्या से शुरू हुई एक महत्वपूर्ण यात्रा अपने दूसरे दिन ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का भ्रमण करती हुई आगे बढ़ी। यह यात्रा प्राचीन मान्यताओं और सांस्कृतिक विरासत को उजागर कर रही है, साथ ही उन मंदिरों और स्थलों की बदहाली की ओर भी ध्यान आकर्षित कर रही है जिन्हें सरकारी संरक्षण की आवश्यकता है।

आज यात्रा का दूसरा दिन झारखण्डे महादेव मंदिर, बिलरियागंज से शुरू हुआ और जीयनपुर अजमतगढ़ सलोना ताल पहुंचा। पुराणों में वर्णित है कि यहीं पर महर्षि विश्वामित्र ने भगवान राम और लक्ष्मण के साथ स्नान कर शक्ति स्वरूपा माँ कालिका और शिव की पूजा की थी।

झारखण्डे महादेव मंदिर: बदहाली की दास्ताँ

वर्तमान में झारखण्डे महादेव मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। इसकी छतें टूट कर गिर रही हैं, जो इसकी बदहाली को बयां कर रही हैं। हालाँकि, यहाँ स्थित तालाब की भव्यता आज भी देखते बनती है। इसकी प्राचीनता और धार्मिक महत्व को देखते हुए, ‘लोक दायित्व’ ने उत्तर प्रदेश सरकार से इसे सहेजने की आवश्यकता पर बल देने का आग्रह किया है।

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बारहदुअरिया मंदिर मऊ: बारह रूपों में शिव और स्वयंभू शिवलिंग

सलोना ताल से यात्रा अपने अगले पड़ाव बारहदुअरिया मंदिर मऊ के लिए प्रस्थान किया, जो नौसेमर गाँव के तमसा नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान राम, ब्रह्मर्षि विश्वामित्र और भ्राता लक्ष्मण के आगमन से जुड़ा हुआ है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव यहाँ पर बारह रूपों में प्रकट हुए थे, इसलिए इसका नाम बारहदुअरिया पड़ा। इस मंदिर की एक और विशेषता यह है कि यहाँ शिवलिंग स्वयंभू है, जिसकी तुलना झारखंड के देवघर मंदिर से की जाती है।

रामघाट मऊ और सिधागर घाट बलिया: राम-लक्ष्मण के चरण चिन्ह और साधुओं की तपस्थली

सालोना लाल अजमतगढ़ आजमगढ़ ब्रह्म ऋषि विश्वामित प्रभु राम और प्रभु लक्ष्मण यहां आए हुए थे.

इसके बाद यात्रा रामघाट मऊ पहुंची, जहाँ ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने राम और लक्ष्मण के साथ स्नान कर विश्राम किया था। आज भी यहाँ प्राचीन शिव मंदिर और प्रभु श्रीराम के चरण चिन्ह मौजूद हैं। वहाँ से ‘लोक दायित्व’ की टीम आगे बढ़ते हुए सिधागर घाट बलिया पहुंची। यह वह स्थान है जहाँ प्राचीन समय में सिद्ध साधु-संत तपस्या करते थे और असुरों के आतंक से पीड़ित थे। यहीं ब्रह्मर्षि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को साथ लेकर आए थे, और इस भूमि को असुरों के आतंक से मुक्त कराया था।

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लखनेश्वर डीह और राम घाट नगहर बलिया: लक्ष्मण जी द्वारा स्थापित शिव मंदिर और निषाद राज की प्रतीक्षा

यात्रा के दौरान लखनेश्वर डीह का भी भ्रमण किया गया, जो सरयू नदी के उत्तरी तट पर स्थित है। मान्यता है कि यहीं पर लक्ष्मण जी ने अपने हाथों से शिव की स्थापना कर पूजन किया था, और जो आगे चलकर लखनेश्वर महादेव के नाम से जाने गए। इसके बाद टीम राम घाट नगहर बलिया पहुंची। इसी घाट से भगवान रामचंद्र, गुरु वशिष्ठ और निषाद राज गुहा के साथ नदी पार किए थे। यहाँ के लोग आज भी मानते हैं और इंतजार करते हैं कि इसी रास्ते से राम जी फिर वापस आएंगे।

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कारो धाम (कामेश्वर नाथ): शिव और कामदेव का प्राचीन स्थल

वहाँ से प्रस्थान कर ‘लोक दायित्व’ की टीम श्री राम शोभा के साथ कामेश्वर नाथ (कारों धाम) पहुंची। यह वह पवित्र स्थान है जहाँ भगवान शिव ने कामदेव को अपना तीसरा नेत्र खोलकर भस्म किया था। जिस आम के वृक्ष पर बैठकर कामदेव ने शिव की तपस्या भंग की थी, वह आम का वृक्ष आज भी आधा जला हुआ दिखता है। यहाँ भगवान राम और लक्ष्मण ने भी शिव की पूजा कर विश्राम किया था। ‘लोक दायित्व’ की टीम ने दूसरे दिन का रात्रि विश्राम यहीं किया।

यह यात्रा भारतीय इतिहास, धर्म और संस्कृति से जुड़े अनछुए पहलुओं को सामने ला रही है, साथ ही इन स्थलों के संरक्षण और जीर्णोद्धार की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाल रही है।

 

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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