आगरा: आगरा की शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता पर एक बड़ा सवाल उठ रहा है। कई विद्यालयों द्वारा यह अनिवार्य किया गया है कि अभिभावक केवल विद्यालय द्वारा निर्दिष्ट दुकानों से ही शैक्षिक सामग्री और पुस्तकें खरीदें। इस कदम से न केवल अभिभावकों के आर्थिक बोझ में इज़ाफा हो रहा है, बल्कि यह एक व्यापारिक गठजोड़ और अनियमितता की ओर भी इशारा करता है।
डॉ. मदन मोहन शर्मा और उनकी टीम का प्रयास
डॉ. मदन मोहन शर्मा और उनकी टीम ने इस अनियमितता को उजागर करने का प्रयास किया है, जो बेहद सराहनीय है। उनका कहना है कि शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए इस तरह के अनुशासनहीन प्रावधानों को समाप्त किया जाना चाहिए। उनका यह भी मानना है कि अभिभावकों को अपनी सुविधा के अनुसार स्वतंत्र रूप से पुस्तकें और शैक्षिक सामग्री खरीदने का अधिकार मिलना चाहिए, ताकि वे किसी भी प्रकार के व्यावसायिक दबाव से मुक्त रह सकें।
प्रशासन से निष्पक्ष जांच की अपील
अधिकारियों से यह अपील की जा रही है कि वे इस मामले में निष्पक्ष जांच करें और संबंधित विद्यालयों और दुकानों के बीच किसी प्रकार के गठजोड़ की जांच करें। यह कदम भविष्य में इस प्रकार की अनियमितताओं को रोकने के लिए महत्वपूर्ण होगा। प्रशासन को इस मुद्दे पर उचित कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि विद्यालयों द्वारा किए जा रहे इस प्रकार के व्यापारिक दबाव को रोका जा सके।
भविष्य में इस प्रकार की मनमानी पर अंकुश लगाने की आवश्यकता
शिक्षा विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विद्यालयों द्वारा किसी भी प्रकार की अनैतिक और अनुचित व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा न दिया जाए। अभिभावकों को स्वतंत्रता दी जानी चाहिए कि वे किसी भी दुकान से किताबें खरीद सकते हैं, बशर्ते कि वह पुस्तकें विद्यालय द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुरूप हों।
1 अप्रैल 2025 को मुख्य विकास अधिकारी से कार्रवाई की मांग
इस मामले पर गंभीर कार्रवाई की मांग के तहत, 1 अप्रैल 2025 को मुख्य विकास अधिकारी को साक्ष्य सौंपे जाएंगे और उचित कदम उठाने की मांग की जाएगी। इस प्रयास में एडवोकेट ब्रज वर्मा, उमेश सिंह, पंडित नकुल सारस्वत, मोहित सिंह, विधायक शर्मा, शिवम लवानिया, दीपक, मनोज शर्मा, विशेष गोस्वामी सहित कई अन्य लोग सक्रिय रूप से शामिल हैं।
आगरा की शिक्षा प्रणाली में हो रही इस तरह की अनियमितताएं न केवल अभिभावकों के लिए समस्या बन चुकी हैं, बल्कि यह शिक्षा क्षेत्र की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाती हैं। अगर इसे समय रहते नियंत्रित न किया गया, तो यह अन्य स्कूलों में भी इस प्रकार के अनुचित प्रावधानों को बढ़ावा दे सकता है। प्रशासन और शिक्षा विभाग को इस पर त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि आने वाले समय में छात्रों और अभिभावकों को इससे कोई परेशानी न हो।