बसपा में आकाश आनंद की वापसी: दलित राजनीति का पुनरुत्थान या कठिन चुनौती?

BRAJESH KUMAR GAUTAM
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बसपा अध्यक्ष मायावती और आकाश आनंद - फोटो : ANI

लखनऊ, उत्तर प्रदेश। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपने घटते जनाधार को पुनर्जीवित करने और दलित राजनीति में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए एक बड़ा दांव खेला है। पार्टी सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को एक बार फिर से प्रमुख भूमिका में लाकर, उन्हें चीफ कोऑर्डिनेटर के साथ पार्टी में नंबर दो की सक्रिय जिम्मेदारी सौंपी है। यह कदम जहां बसपा के लिए राजनीतिक पुनरुत्थान की घड़ी मानी जा रही है, वहीं आकाश आनंद के सामने कई बड़ी चुनौतियां भी खड़ी हैं।

घटता जनाधार और बढ़ती चुनौतियां

उत्तर प्रदेश, जो बसपा का गढ़ रहा है, वहां पार्टी का जनाधार लगातार खिसक रहा है। 2019 के लोकसभा चुनावों में बसपा का वोट शेयर 10 प्रतिशत से भी कम रह गया था, जो कैडर आधारित इस पार्टी के लिए चिंता का विषय है। मायावती की लगातार चुप्पी और संगठन की जमीनी पकड़ कमजोर होने से दलित वोट बैंक भी अनिश्चितता की स्थिति में आ चुका है।

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इस राजनीतिक खालीपन को भरने के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूले के सहारे दलित समाज में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और सांसद चंद्रशेखर आज़ाद भी उत्तर प्रदेश में एक उभरती ताकत के रूप में दलित राजनीति में गहरी पैठ बना रहे हैं। चंद्रशेखर ने बसपा में लंबे समय तक अहम पदों पर रहे सुनील चित्तौड़ को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाकर बसपा के ही पुराने अनुभवी कार्यकर्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है।

ऐसे में, आकाश आनंद के समक्ष दोहरी चुनौती है: एक ओर उन्हें बसपा कार्यकर्ताओं का विश्वास दोबारा जीतना है, वहीं दूसरी ओर पार्टी के राजनीतिक स्पेस में हो रहे अतिक्रमण को रोकना भी उनका प्रमुख लक्ष्य है।

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बिहार से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने की रणनीति

इन सबके बीच, मायावती ने आकाश आनंद को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए स्टार प्रचारक के रूप में उतारा है। बसपा बिहार में अकेले चुनाव लड़ रही है। यहां लक्ष्य सिर्फ सीटें जीतना नहीं, बल्कि अपना वोट प्रतिशत बढ़ाकर यह संदेश देना है कि दलित समाज का एक बड़ा हिस्सा अब भी बसपा के साथ मजबूती से खड़ा है। यह मायावती की उस बड़ी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह आकाश को सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी स्थापित करना चाहती हैं, ताकि वे भविष्य में पार्टी का नेतृत्व कर सकें।

आकाश आनंद के सामने तीन बड़ी कसौटियां

आकाश आनंद के इस महत्वपूर्ण सफर में उन्हें तीन प्रमुख कसौटियों पर खरा उतरना होगा:

  1. कैडर में विश्वास की पुनर्स्थापना: पार्टी के पुराने और नए कार्यकर्ताओं में फिर से भरोसा जगाना और उन्हें सक्रिय करना।
  2. दलित वोट बैंक की रक्षा और विस्तार: पार्टी के पारंपरिक दलित वोट बैंक को बचाना और उसे नए क्षेत्रों में फैलाना।
  3. नए राज्यों में पार्टी को खड़ा करना: बिहार जैसे राज्यों में बसपा को एक मजबूत राजनीतिक विकल्प के रूप में स्थापित करना।
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यह कार्य आसान नहीं है, लेकिन यदि मायावती के मार्गदर्शन में आकाश आनंद इन मोर्चों पर खरे उतरते हैं तो न सिर्फ बसपा को नई ऊर्जा मिलेगी बल्कि भारतीय दलित राजनीति को भी एक नई दिशा मिलेगी।

 

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