आगरा (कागारौल): थाना कागारौल के ठीक सामने इन दिनों एक विडंबनापूर्ण स्थिति देखने को मिल रही है। यहां सड़क के आधे हिस्से पर स्वयं पुलिसकर्मियों की निजी कारों का कब्जा रहता है, जिसके कारण आम राहगीरों को पूरे दिन भीषण जाम से जूझना पड़ता है। यह वही पुलिस है, जो आए दिन सड़कों पर अवैध पार्किंग करने वाले आम नागरिकों का चालान करती है, लेकिन जब स्वयं के नियमों का पालन करने की बात आती है, तो वर्दी का रौब कानून को ताक पर रख देता है।
“कानून का पाठ पढ़ाने वाले खुद कानून से ऊपर?”
हर दिन थाना परिसर से महज कुछ कदम की दूरी पर सड़क का लगभग आधा भाग पुलिसकर्मियों की निजी गाड़ियों से भरा रहता है। इस अराजक पार्किंग के चलते स्थानीय लोग घंटों तक यातायात जाम में फंसे रहने को मजबूर हैं। स्कूली बच्चों को समय पर विद्यालय पहुंचने में दिक्कत होती है, मरीजों को अस्पताल पहुंचने में देरी होती है, और दफ्तर जाने वाले लोग अपनी कार्यस्थलों पर विलंब से पहुंचते हैं। विडंबना यह है कि इन सब परेशानियों का खाकीधारियों पर कोई असर दिखाई नहीं देता।
“अब जब सइयां जी भये कोतवाल, तो डर काहे का?”
यह पुरानी कहावत इस समय कागारौल पुलिस पर अक्षरशः चरितार्थ होती दिख रही है। वर्दी के कथित रौब में, पुलिसकर्मी अपनी निजी कारों को सड़क पर जहां मन करता है, वहीं बेतरतीब ढंग से खड़ा करके चले जाते हैं। और जब कोई आम नागरिक अनजाने में भी यही गलती कर बैठता है, तो उसे तुरंत यातायात नियमों का उल्लंघन करने का हवाला देकर चालान थमा दिया जाता है।
दोगली नीति या शक्ति का बेलगाम दुरुपयोग?
स्थानीय नागरिकों के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या कानून केवल आम जनता के लिए ही बनाए गए हैं? क्या पुलिस विभाग के भीतर अपने कर्मचारियों के लिए कोई आचार संहिता या नियम-कानून मौजूद नहीं हैं? क्या वर्दीधारी होकर कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक सड़क पर यातायात नियमों का उल्लंघन कर सकता है और उस पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं होगी? यह स्थिति निश्चित रूप से पुलिस विभाग की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है।
पुलिस की जिम्मेदारी या बेलगाम मनमानी?
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस समस्या को लेकर कई बार संबंधित अधिकारियों से शिकायत की गई है, लेकिन दुर्भाग्यवश, न तो कोई संतोषजनक जवाब मिला है और न ही इस दिशा में कोई प्रभावी कार्रवाई की गई है। जबकि थाना परिसर के अंदर वाहनों की पार्किंग के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध है, फिर भी पुलिसकर्मियों द्वारा अपनी कारों को सड़क पर खड़ा करना आम जनता के लिए एक बड़ी मुसीबत बन गया है।
प्रशासन से उठ रही है पुरजोर मांग
स्थानीय नागरिकों और पीड़ित राहगीरों द्वारा अब प्रशासन से पुरजोर मांग उठाई जा रही है कि:
- पुलिसकर्मियों द्वारा सार्वजनिक पार्किंग स्थलों पर की जा रही इस मनमानी पर तत्काल रोक लगाई जाए।
- थाने के बाहर वाहनों की पार्किंग के लिए एक स्पष्ट और निर्धारित सीमा तय की जाए, जिसका सभी को पालन करना अनिवार्य हो।
- यातायात विभाग को स्वयं भी नियमों का पालन करके एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि आम जनता भी प्रेरित हो सके।
अंततः, यह सवाल हर नागरिक के मन में गूंज रहा है कि “कानून के रखवाले अगर खुद नियम तोड़ने लगें, तो फिर आम जनता किससे उम्मीद करे?” यह स्थिति न केवल यातायात व्यवस्था को बाधित करती है, बल्कि कानून के प्रति आम लोगों के विश्वास को भी कमजोर करती है।