जैथरा (एटा) साहब, दारू पीकर बहुत मारता है मेरा पति… काम नहीं करता, जुआ-सट्टा खेलता है… और अब लोगों का कर्ज भी चढ़ गया है उस पर।
थाना जैथरा में जब खिरिया वनार गांव की एक विवाहिता अपने भाई के साथ पहुंची, तो उसकी आंखें डबडबाई हुई थीं और आवाज में दर्द साफ झलक रहा था। हाथ में एक शिकायती पत्र और उसमें सौ रुपये का एक नोट दबा था।
थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों ने जब कागज देखा तो सौ रुपये पर नजर पड़ते ही मुस्करा दिए। एक सिपाही ने हंसते हुए कहा—बहन, तहरीर में से रुपये निकाल लो, पुलिस अब बिना पैसे के भी काम करती है। महिला थोड़ी सकुचाई और बोली—साहब, हम गरीब हैं… सुना था पुलिस बिना पैसे के सुनती नहीं, इसीलिए जो था वो ले आई। यह सुनकर वहां मौजूद लोगों की आंखें भी कुछ पलों को नम हो गईं।
पुलिसकर्मियों ने महिला की बात गंभीरता से सुनी और उसी समय उसकी तहरीर संबंधित हलके के उपनिरीक्षक को भेज दी। महिला को आश्वस्त करते हुए कहा गया—आप चिंता मत कीजिए बहन, दरोगा जी कुछ ही देर में आपके गांव पहुंच जाएंगे।
गांव पहुंची पुलिस, बदली तस्वीर
थोड़ी ही देर में दरोगा गांव पहुंचे। पीड़िता के घर जाकर पति को बुलाया गया। पहले तो वह झिझकता रहा, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती के साथ-साथ समझदारी से बात की, तो उसने अपनी गलती स्वीकार की। पत्नी के सामने सिर झुकाकर कहा—अब कभी शराब नहीं पियूंगा, न जुआ खेलूंगा, न सट्टा लगाऊंगा। अब से शांति से घर चलाऊंगा।
पति का यह बदला स्वर और पुलिस की सकारात्मक भूमिका ने विवाहिता की आंखों में उम्मीद भर दी। गांव के लोगों ने भी पुलिस की इस पहल की सराहना की और कहा कि यदि इसी तरह हर पीड़ित को समय रहते सहारा मिले, तो कई घर उजड़ने से बच सकते हैं।
किसी ने सही कहा है—कभी-कभी बदलाव के लिए बड़े कदम नहीं, एक छोटे भरोसे की ज़रूरत होती है।