झाँसी: भारतीय खेलों के महान खिलाड़ी और हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के 120वें जन्मदिवस (राष्ट्रीय खेल दिवस) को इस साल ऐतिहासिक और अनूठे अंदाज में मनाया जाएगा। इस विशेष अवसर पर, मेजर ध्यानचंद की जन्मस्थली प्रयागराज (इलाहाबाद) से उनकी कर्मस्थली वीरांगना रानी झांसी शहर तक एक खास साइकिल यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। इस यात्रा में सेना के तीन सेवानिवृत्त अधिकारी शामिल होंगे, जो “फिट इंडिया, हिट इंडिया” का संदेश देंगे और ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग को भी उठाएंगे।
हॉकी जादूगर की कर्मस्थली झांसी को खास सम्मान
इस अनूठी पहल के बारे में जानकारी देते हुए बृजेंद्र यादव ने बताया कि सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर विक्रम सिंह, योगेन्द्र सिंह और मदन लाल की तीन सदस्यीय साइकिलिस्ट टीम सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पूरी कर झांसी पहुंचेगी।
यहाँ वे अपने लीजेंड हीरो को श्रद्धांजलि देने के लिए कई स्थानों पर जाएंगे:
- हीरोज मैदान स्थित समाधि स्थल।
- डिजिटल मेजर ध्यानचंद संग्रहालय।
- मेजर ध्यानचंद स्पोर्ट्स स्टेडियम।
- चित्रा चौराहे पर स्थित ध्यानचंद की प्रतिमा।
- जारपाहाड पर स्थापित अलौकिक प्रतिमा।
ये सभी स्थान झांसी में मेजर ध्यानचंद के योगदान के प्रतीक हैं।
देशभर का दौरा और एक खास संदेश
झांसी के बाद यह टीम ध्यानचंद के छोटे भाई और ओलंपियन रूप सिंह के ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में स्थित समाधि स्थल और स्टेडियम जाएगी। यात्रा का अंतिम पड़ाव नई दिल्ली का नेशनल मेजर ध्यानचंद स्टेडियम होगा, जहाँ वे ध्यानचंद की मूर्ति पर श्रद्धांजलि अर्पित कर पूरे राष्ट्र की ओर से उन्हें सम्मान देंगे। टीम सभी स्थानों की रज लेकर वापस उनकी जन्मस्थली प्रयागराज के लिए रवाना होगी।
इस यात्रा का मुख्य संदेश सिर्फ एक है: हर भारतीय को अपनी सुविधा के अनुसार हर दिन अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए और भारतीय खेलों को बढ़ावा देना चाहिए।
यह यात्रा भारत रत्न के लिए मेजर ध्यानचंद की अधूरी मांग को पूरा करने के लिए भी एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। इससे पहले, पिछले साल तारक पारकर ने ओरछा धाम से अयोध्या तक पैदल यात्रा कर यह प्रण लिया था कि दद्दा ध्यानचंद को सरकार भारत रत्न से सम्मानित करे।
ध्यानचंद: एक सच्चा भारतीय योद्धा
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में जन्मे ध्यानचंद ने हॉकी का ककहरा बुंदेलखंड की झांसी की सरजमी पर सीखा। उन्होंने ब्रिटिश शासनकाल के दौरान ओलंपिक खेलों में तानाशाह हिटलर की जमीन पर हॉकी में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया था। हिटलर ने उन्हें जर्मनी की ओर से खेलने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन ध्यानचंद ने स्वाभिमान के साथ जवाब दिया था कि “मैं खेलूंगा तो सिर्फ अपने भारत देश के लिए।” यह घटना एक सच्चे भारतीय होने की मिसाल है।
