सुप्रीम कोर्ट ने मतदान के लिए पेपर बैलेट की जनहित याचिका को खारिज किया, याचिकाकर्ता पर उठे सवाल

Rajesh kumar
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आगरा: मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने भारत में मतदान के लिए पेपर बैलेट (मतपत्र) के इस्तेमाल की मांग करने वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका डॉ. के.ए. पॉल द्वारा दायर की गई थी, जिसमें ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) में कथित रूप से दोष होने का आरोप लगाते हुए, पेपर बैलेट से चुनाव कराने की मांग की गई थी। इसके साथ ही, याचिका में चुनाव आयोग से यह निर्देश देने की भी मांग की गई थी कि अगर कोई उम्मीदवार चुनाव के दौरान प्रलोभन जैसे पैसे, शराब आदि बांटता है, तो उसे कम से कम 5 साल के लिए अयोग्य घोषित किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से सवाल किया कि “आपने यह शानदार विचार कहां से लिया?” और इसके बाद याचिकाकर्ता से कई कड़े सवाल पूछे गए।

ईवीएम पर आपत्ति और आरोपों पर चर्चा

डॉ. पॉल ने अपनी याचिका में कहा था कि वे देश में ईवीएम के स्थान पर बैलेट पेपर से मतदान की व्यवस्था बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं। इस पर जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले ने टिप्पणी की, “जब आप चुनाव जीतते हैं तो ईवीएम सही है, लेकिन जब आप हारते हैं तो आप इसे दोष देने लगते हैं।” इस पर याचिकाकर्ता ने जवाब दिया कि यह केवल आरोप नहीं हैं, बल्कि कई नेताओं और विशेषज्ञों ने भी ईवीएम से छेड़छाड़ की संभावना जताई है, जिनमें टेस्ला के सीईओ एलन मस्क और टीडीपी प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू का नाम शामिल है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “चंद्रबाबू नायडू ने जब चुनावों में हार का सामना किया था तो उन्होंने कहा था कि ईवीएम से छेड़छाड़ की गई है। अब जब जगन मोहन रेड्डी हार गए हैं तो वे भी यही कह रहे हैं।” कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह भी पूछा कि अगर भारत में बैलेट पेपर से मतदान होता है, तो क्या भ्रष्टाचार की समस्या दूर हो जाएगी?

याचिकाकर्ता का व्यक्तिगत आरोप

याचिकाकर्ता ने बताया कि वह ग्लोबल पीस समिट के अध्यक्ष हैं और उन्होंने अब तक 3,10,000 अनाथों और 40 लाख विधवाओं को बचाया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने उनसे सवाल किया कि उनका कार्यक्षेत्र चुनाव सुधार से जुड़ा क्यों नहीं है, जब वे सामाजिक कार्यों में पहले से सक्रिय हैं।

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याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि उन्होंने 150 देशों में मतदान के तरीकों का अध्ययन किया है और अधिकतर देशों में बैलेट पेपर से मतदान होता है, जबकि भारत को ईवीएम के स्थान पर बैलेट पेपर अपनाना चाहिए। कोर्ट ने इस पर सवाल किया कि “क्या आपको लगता है कि हर देश में बैलेट पेपर से वोटिंग ही सही तरीका है, क्या आपको बाकी दुनिया से अलग नहीं होना चाहिए?”

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और निष्कर्ष

कोर्ट ने अंततः याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए मुद्दों में कोई कानूनी आधार नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि बैलेट पेपर के उपयोग से भ्रष्टाचार और धांधली की समस्या हल हो जाती, तो दुनिया भर के अधिकांश देश पहले ही इसे अपना चुके होते।

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इस बीच, याचिकाकर्ता ने चुनावों में पैसे और शराब के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की भी बात की और चुनाव प्रचार में सुधार के लिए व्यापक मतदाता शिक्षा अभियान चलाने का आग्रह किया। उन्होंने यह भी कहा कि आज के दौर में 32% शिक्षित मतदाता मतदान नहीं करते, जो लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चिंता है।

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