आगरा: कभी लुप्तप्राय स्थिति में पहुंच चुके घड़ियालों और दुनिया में दुर्लभ हुए बटागुर कछुओं के लिए चंबल नदी एक बार फिर जीवनदायिनी साबित हो रही है। शनिवार को चंबल सेंक्चुअरी की बाह रेंज में घड़ियालों की हैचिंग (अंडों से बच्चों का निकलना) शुरू हो गई, जबकि बटागुर कछुओं की हैचिंग का काम पूरा हो गया है। इन नई जिंदगियों के साथ चंबल नदी का कुनबा और भी समृद्ध हो गया है।
घड़ियालों के 190 नन्हे मेहमान चंबल में शामिल
नंदगवां घाट पर शनिवार को घड़ियालों के 190 नन्हे मेहमान अंडों से निकलकर सीधे चंबल नदी में पहुंच गए। नेस्ट से सरसराहट की आवाज़ सुनकर मादा घड़ियाल ने खुद बालू को कुरेदना शुरू किया, जिससे अंडे बाहर आ गए और बच्चे निकलकर बालू पर रेंगते हुए नदी में समा गए।
बाह के रेंजर उदय प्रताप सिंह ने बताया कि मार्च के आखिर से अप्रैल तक मादा घड़ियालों ने चंबल की बालू में बनाए अपने घोंसलों में 35 से 60 अंडे दिए थे। 65 से 80 दिन बाद हैचिंग पीरियड शुरू होने पर वन विभाग ने घोंसलों पर लगी जालियां हटा दी थीं ताकि बच्चे आसानी से बाहर आ सकें। हैचिंग की शुरुआत के साथ ही वन विभाग का अमला अब नेस्टों की दिन-रात निगरानी में जुट गया है, क्योंकि यह प्रक्रिया लगभग एक हफ्ते तक चलेगी।
गौरतलब है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से होकर बहने वाली चंबल नदी में 1979 से ही लुप्तप्राय स्थिति में पहुंचे घड़ियालों का संरक्षण किया जा रहा है। यह संरक्षण पाली (राजस्थान) से पचनदा (इटावा) तक जारी है।
बटागुर कछुओं के 4290 नए शिशु भी नदी में शामिल
चंबल नदी की बाह रेंज में बटागुर कछुओं की हैचिंग का काम सफलतापूर्वक पूरा हो गया है। दुनिया में दुर्लभ माने जाने वाले बटागुर कछुओं के कुल 4290 नए शिशु नदी के कुनबे में शामिल हो गए हैं।
रेंजर उदय प्रताप सिंह ने जानकारी दी कि रेंज में 165 नेस्ट में कछुओं के 3950 अंडे रिकॉर्ड किए गए थे, लेकिन अनरिकॉर्डेड नेस्ट के अंडों से जन्मे बच्चों को मिलाकर कुल 4290 कछुए शिशुओं का जन्म हुआ है। वन विभाग चीकनीपुरा, क्यौरी, उमरैठा, विप्रावली और रेहा वन ब्लॉक में जन्मे इन कछुए शिशुओं के विचरण पर लगातार नज़र रखे हुए है। बताया गया है कि बटागुर कछुओं की करीब 500 मादाएं प्रजनन कर रही हैं, जिनकी नेस्टिंग मार्च के आखिर में हुई थी।