यूपी में पारिवारिक संपत्ति विभाजन विलेख पर अधिकतम ₹5000 स्टाम्प शुल्क और ₹5000 रजिस्ट्रेशन शुल्क तय
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक ऐतिहासिक और लोकहित का फैसला लिया है, जिससे अब पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा करना बेहद आसान और सस्ता हो जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में पारिवारिक सदस्यों के बीच निष्पादित विभाजन विलेख (Partition Deed) पर लगने वाले स्टाम्प शुल्क (Stamp Duty) और पंजीकरण शुल्क (Registration Fee) की अधिकतम सीमा तय कर दी गई है।
इस नए नियम के तहत, पारिवारिक बंटवारे में संपत्ति की कीमत चाहे जितनी भी हो, अधिकतम ₹5000 का स्टाम्प शुल्क और ₹5000 का रजिस्ट्रेशन शुल्क ही देना होगा। यानी, अब कुल ₹10,000 में आप अपनी पारिवारिक संपत्ति का कानूनी रूप से विभाजन करा सकेंगे। यह निर्णय उन लाखों परिवारों के लिए एक बड़ी राहत है, जो संपत्ति के ऊंचे मूल्य के कारण विभाजन विलेख का पंजीकरण (Registration of Partition Deed) कराने से बचते थे।
क्यों लिया गया यह फैसला?
स्टांप एवं पंजीयन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रवींद्र जायसवाल ने इस निर्णय को लोकहित में बताया। उन्होंने कहा कि पहले विभाजन विलेख पर संपत्ति के मूल्य के अनुसार स्टाम्प शुल्क देना होता था, जो अक्सर काफी ज्यादा होता था। इसी वजह से कई परिवार कानूनी तरीके से बंटवारा करने से हिचकते थे, जिससे संपत्ति संबंधी विवाद (Property Disputes) बढ़ते थे और अदालतों में मुकदमों की संख्या में इजाफा होता था।
सरकार के इस कदम से अब संयुक्त या अविभाजित संपत्ति के सह-स्वामी बिना किसी बड़े आर्थिक बोझ के अपनी संपत्ति का सौहार्दपूर्ण और कानूनी बंटवारा करा सकेंगे।
इस फैसले के फायदे
- खर्च में भारी कमी: अब संपत्ति की कीमत करोड़ों में भी हो, आपको स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन शुल्क मिलाकर सिर्फ ₹10,000 खर्च करने होंगे। इससे आम जनता पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा।
- कानूनी विवादों में कमी: जब बंटवारा कानूनी तरीके से दर्ज होगा, तो भविष्य में होने वाले पारिवारिक झगड़ों में कमी आएगी। इससे अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी घटेगा।
- पारदर्शिता और सुरक्षा: संपत्ति का कानूनी बंटवारा होने से हर हिस्सेदार के अधिकार सुरक्षित होंगे। इसके बाद संपत्ति का नामांतरण (Mutation) और खतौनी (Khatauni) भी समय पर अपडेट हो सकेगी।
- अन्य राज्यों की तरह व्यवस्था: मंत्री रवींद्र जायसवाल ने बताया कि यह व्यवस्था पहले से ही तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में लागू है, जहां इसने पारिवारिक विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उत्तर प्रदेश में भी ऐसे ही लाभ मिलने की उम्मीद है।
- आसानी से लेन-देन: जब संपत्ति का विभाजन कानूनी रूप से दर्ज हो जाएगा, तो भविष्य में उसे बेचना या किसी और उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करना आसान होगा।
यह फैसला न केवल आम परिवारों को राहत देगा बल्कि प्रदेश में संपत्ति के स्वामित्व संबंधी प्रक्रियाओं में भी पारदर्शिता और सरलता लाएगा। इससे एक स्वस्थ और विवाद-मुक्त समाज की स्थापना में मदद मिलेगी।