Mathura News, छटीकरा। मथुरा थाना जैत क्षेत्र के गांव नगला नेता में रविवार रात चुनावी रंजिश ने खूनी रूप ले लिया। दो गुटों के बीच हुए हिंसक संघर्ष में फायरिंग के दौरान एक युवक की सिर में गोली लगने से मौत हो गई, जबकि उसका सगा भाई गंभीर रूप से घायल है। यह घटना न सिर्फ गांव बल्कि पूरे इलाके में दहशत फैलाने वाली है—और साथ ही पुलिस की भूमिका पर भी बड़े सवाल खड़े करती है।
उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की अभी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन गांवों में सत्ता की जंग पहले ही सड़कों पर उतर चुकी है। रविवार देर रात नगला नेता में दो पक्ष आमने-सामने आए। पहले कहासुनी हुई, फिर मारपीट शुरू हुई और देखते ही देखते गोलियां चलने लगीं। फायरिंग में दो सगे भाई—अनिल और राधाकृष्ण—गंभीर रूप से घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। ग्रामीणों में अफरा-तफरी मच गई। दोनों को तत्काल अस्पताल ले जाया गया, जहां सिर में गोली लगने से गंभीर रूप से घायल राधाकृष्ण ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया, जबकि अनिल की हालत नाजुक बनी हुई है।
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस के आला अधिकारी मौके पर पहुंचे। शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। लेकिन सवाल यह है कि क्या पुलिस की यह सक्रियता पहले दिखाई देती तो जान बच सकती थी?
मृतक के पिता ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि दो दिन पहले उनके बेटे के साथ मारपीट हुई थी और जान से मारने की धमकी दी गई थी। इसकी लिखित तहरीर थाने में दी गई, लेकिन पुलिस ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। पिता का दर्दनाक सवाल है—“अगर पुलिस उस वक्त कार्रवाई कर देती, तो आज मेरा बेटा जिंदा होता।”
ग्रामीणों के मुताबिक, पंचायत चुनाव को लेकर गांव में लंबे समय से गुटबाजी चल रही थी और तनाव लगातार बढ़ रहा था। इसके बावजूद पुलिस की ओर से न तो प्रभावी निगरानी की गई और न ही समय रहते सख्त कदम उठाए गए।
इस मामले पर राजीव सिंह, एसपी सिटी मथुरा ने बताया कि प्रथम दृष्टया मामला चुनावी रंजिश से जुड़ा है। गांव में उदयवीर और नरेश के बीच पुराना विवाद चला आ रहा था। रविवार रात पहले दोनों पक्षों में मारपीट हुई, इसके बाद फायरिंग हुई, जिसमें राधाकृष्ण की मौत हो गई और उसका भाई अनिल घायल हुआ है। चार लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। गांव में तनाव को देखते हुए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात कर दिया गया है।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल अब भी कायम है—
जब धमकी की शिकायत पहले ही दर्ज थी, तो पुलिस ने वक्त रहते कार्रवाई क्यों नहीं की?
क्या पुलिस हर बार वारदात के बाद ही हरकत में आती है?
आज नगला नेता गांव में मातम है, एक परिवार उजड़ चुका है और कानून-व्यवस्था पर जनता का भरोसा फिर से कठघरे में खड़ा है। यह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि चेतावनियों की अनदेखी और समय पर कार्रवाई न होने की कीमत है—जिसकी गूंज आने वाले चुनावी माहौल में और तेज़ होने वाली हैं।
