शहर तो स्मार्ट नहीं बन सका पर, स्मार्ट सिटी के फंड को स्मार्ट लोग ही गटक गए

Sumit Garg
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सुल्तान आब्दी

झाँसी | स्मार्ट वहीं होता है जो सब कुछ पचा जाए, और बिना डकार के अरबों को पानी की तरह गटक जाए। जब नगर को सजाने संवारने और सुंदर बनाने की सोच धरातल पर उतरेगी और फंड जारी होते ही सत्ता धारी दल के नेता और अधिकारी उस पर गिद्ध की तरह टूट पड़ेंगे। पिछले कुछ सालों से स्मार्ट सिटी का तमगा लगाए झाँसी पूरे प्रदेश को बता रहा है है कि मैं सबसे स्मार्ट हो गया हूं। यह आइना निगम के तत्कालीन सत्ताधारी दल के नेता और तत्कालीन अधिकारी नगर की जनता में यह भ्रम फैला कर राजनीति करने की सबसे निम्न स्तरीय सोच की साजिश की हिस्सा है। नगर में बने चौक -चौराहे स्मार्ट टायलेट, पिंक टाय़लेट और अन्य विकास कार्य अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहे न कोई जनआंदोलन हो रहा न ही अधिकारी और नेता इस विषय पर कुछ बोलना पंसद कर रहे है स्मार्ट सिटी के पैसों को जमकर दुरूपयोग औऱ दोहन किया गया । अगर प्रदेश के मुखिया इस मामले को संज्ञान में लिया तो कई अधिकारी और नेता जेल की शोभा भी बढ़ा सकते है।

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पिछले कई सालों से झाँसी को स्मार्ट सिटी बनाने के नाम तरह-तरह के छल प्रपंच किया गया. इसका एक फायदा यह हुआ कि नगर भले ही स्मार्ट न हुआ हो लेकिन अधिकारियों की छवि जरूर स्मा्र्ट हो गई। स्मार्ट सिटी के नाम पर लूट की छूट का फायदा अधिकारियों ने भऱपूर उठाया । स्मार्ट सिटी द्वारा निर्मित स्मार्ट शौचालय जो नगर में कबाड़ बन चुके । स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने एक और नया कारनामा कर दिखाया । जनता के करोड़ों रूपए से निर्मित स्मार्ट शौचालय को पहले तो निर्माण गैर जरूरी तरीके निर्माण किया अब उसके उपरांत उसको मेंटेन नहीं किया । मेंटेन करने के नाम पर किसी प्रकार के कोई रखरखाव के लिए न तो स्टाफ रखा न केयरटेकर की नियुक्ति की गई जिसकी वजह से करोड़ों रुपए के शौचालय शहर में कबाड़ बन गए। अब सवाल उठता है कि जब इसका उपयोग होना ही नहीं था और तो इसका निर्णाण क्यों किय़ा गया। क्या सरकारी धन को इसी तरह बर्बाद करना स्मार्ट सिटी का आइडिया है। स्मार्ट का उपयोग जनता नहीं कर सकती ये कैसा स्मार्टनेस है।

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जनता को स्मार्ट सुविधा देने के नाम पर करोड़ रूपया खर्च हो गया औऱ जनता उसका उपयोग न करें तो इस सुविधा का क्या औचित्य था। अधिकािरयों ने अपनी मनमानी का जो हठधर्मिता दिखाया उसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। इस तरह के स्मार्ट शौचालय का क्या औचित्य था. स्मार्ट टायलेट बनाने की कवायद भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया, निगम में अरबों रुपए के फंड को देखकर स्मार्ट सिटी नामक कंपनी बनाकर स्मार्ट काम सडक़ गार्डन, तालाब के स्कूल के सौंदर्यीकरण के साथ जनता को सुविधा देने के नाम पर खूब लूट मचाया।

तत्कालीन स्मार्ट सिटी के अधिकारी और तत्कालीन महापौर के खिलाफ अमानत में यानत का मामला जनता के पैसे की बर्बादी का मामला पहली नजर में बनता है। आवश्यक हुआ तो उच्च स्तरीय जांच करना भी जरूरी है । स्मार्ट सिटी के नाम पर कहीं पर भी शौचालय का निर्माण बिना सोचे समझे सिर्फ निगम के पैसों को वाट लगाने का तरीका अपनाया। ताकि जल्द से जल्द स्मार्ट सिटी के अधिकारी और तत्कालीन भ्रष्ट तत्काल ठेकेदार से कमीशन मिल सके । इसकी भा जांच होनी चाहिए तािक जनता को पता लगे कि जिसको हमने शहर की चाबी सौंपी वही लुटेरा निकला।

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प्रभारी-दैनिक अग्रभारत समाचार पत्र (आगरा देहात)
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