सिस्टम का सितम: 22 दिन जेल, 300 पेशियाँ… और 17 साल बाद भी ‘हारा’ एक निर्दोष

Laxman Sharma
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मैनपुरी, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के 62 वर्षीय राजवीर को आखिरकार 17 साल के लंबे इंतजार के बाद अदालत से राहत मिली है, लेकिन यह राहत उनके लिए न्याय से ज़्यादा एक दर्दनाक अंत साबित हुई है. गैंगस्टर एक्ट जैसे गंभीर आरोप में एक गलत नाम दर्ज होने की वजह से उन्हें 22 दिन जेल में बिताने पड़े, 300 से ज़्यादा बार अदालत के चक्कर लगाने पड़े और इन सबका खामियाजा उनके पूरे परिवार को भुगतना पड़ा. राजवीर की कहानी भारतीय न्यायिक प्रणाली की खामियों और एक आम आदमी पर इसके गंभीर प्रभावों की एक मार्मिक मिसाल है.

एक गलती, 17 साल की बर्बादी

यह मामला अगस्त 2008 का है. पुलिस को गैंगस्टर एक्ट के तहत ‘रामवीर’ नामक व्यक्ति को आरोपी बनाना था, लेकिन कोतवाली इंस्पेक्टर की एक चूक ने राजवीर के जीवन को तबाह कर दिया. ‘रामवीर’ राजवीर के भाई हैं, और नाम की समानता के चलते राजवीर का नाम एफआईआर में दर्ज कर लिया गया.

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राजवीर के वकील विनोद कुमार यादव ने इस दर्दनाक दास्तान को साझा करते हुए बताया, “मेरे मुवक्किल बार-बार कहते रहे कि उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी. उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 22 दिन जेल में रहना पड़ा.”

जेल से ज़मानत मिलने के बाद राजवीर की असली लड़ाई शुरू हुई. साल 2012 में यह मामला आगरा से मैनपुरी स्थानांतरित हुआ. तब से लेकर अब तक, राजवीर ने लगभग 300 बार अदालत में हाजिरी दी. हर तारीख पर उम्मीद लेकर जाना और फिर खाली हाथ लौट आना, यह सिलसिला सालों तक चलता रहा.

निजी जीवन पर पड़ा गहरा असर

इस झूठे मुकदमे ने राजवीर के निजी जीवन पर भी गहरा और स्थायी प्रभाव डाला. उनकी दो बेटियों की शादी हो चुकी है, जिनमें से एक दिव्यांग है. सबसे दुखद यह रहा कि उनका बेटा गौरव अपनी पढ़ाई छोड़कर परिवार का पेट पालने के लिए खेतों में मजदूरी करने को मजबूर हो गया. इन 17 वर्षों में राजवीर की न केवल जमा पूंजी खत्म हो गई, बल्कि समाज में उनकी प्रतिष्ठा भी धूमिल हुई. स्वयं राजवीर का आत्मविश्वास पूरी तरह से टूट चुका था.

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देर से मिला न्याय, लेकिन खुशियां नहीं लौटेंगी

आखिरकार, 24 जुलाई 2025 को विशेष न्यायाधीश स्वप्ना दीप सिंघल ने अपना फैसला सुनाया और राजवीर को सभी आरोपों से बरी कर दिया. अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि पुलिस और प्रशासन की “भारी लापरवाही” के कारण एक निर्दोष व्यक्ति को 22 दिन जेल और 17 वर्षों तक झूठे मुकदमे की मार झेलनी पड़ी.

हालांकि राजवीर को अब कानूनी राहत मिल चुकी है, लेकिन जो समय, सम्मान, और खुशियां उन्होंने इन 17 सालों में गंवाई हैं, उन्हें कभी वापस नहीं लाया जा सकता. उनके वकील विनोद कुमार यादव ने सवाल उठाया, “न्याय मिला ज़रूर है, लेकिन इतनी देर से क्यों? किसी निर्दोष को इतने साल सिस्टम से लड़ना नहीं चाहिए.”

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आज, राजवीर मैनपुरी में अपने घर में रहते हैं. वे अपनी उम्र से ज़्यादा, 17 सालों की इस लंबी और थका देने वाली लड़ाई के बोझ से झुके हुए नज़र आते हैं. यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी न्याय प्रणाली इतनी धीमी और लापरवाह है कि एक निर्दोष व्यक्ति को इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़े?

 

 

 

 

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