भारत बंद के दौरान ईदगाह रेलवे स्टेशन पर बवाल, 16 आरोपी बरी, न्यायालय ने सुनाया अहम फैसला

MD Khan
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आगरा: 2 अप्रैल 2018 को आरक्षण के मुद्दे पर आयोजित भारत बंद के दौरान ईदगाह रेलवे स्टेशन पर हुए बवाल और तोड़फोड़ के मामले में महत्वपूर्ण फैसला आया है। इस मामले में न्यायालय ने रेलवेज एक्ट के तहत आरोपित 16 आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने गवाहों के बयानों में गम्भीर विरोधाभास और आरोपी पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता के तर्कों को मानते हुए यह निर्णय सुनाया।

घटना का विवरण

2 अप्रैल 2018 को आरक्षण के खिलाफ आयोजित भारत बंद के दौरान बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी ईदगाह रेलवे स्टेशन पर जमा हो गए थे। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने स्टेशन पर जमकर बवाल मचाया और तोड़फोड़ की। आरोप है कि उन्होंने रेलवे स्टेशन की संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया, रेल की पटरी तक उखाड़ डाली और रेलवे विभाग को लाखों रुपए का नुकसान किया। इस घटना से रेलवे सेवाएं भी प्रभावित हुईं और स्थिति काबू से बाहर हो गई।

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मुकदमा दर्ज और आरोपियों की गिरफ्तारी

ईदगाह रेलवे स्टेशन पर हुए इस हिंसक प्रदर्शन के बाद जीआरपी आगरा फोर्ट थाने में वादी मोहित शर्मा (एसएसई) की तहरीर पर मुकदमा दर्ज किया गया। मुकदमे में आरोप लगाया गया कि भारत बंद के दौरान हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी स्टेशन पर पहुंचे थे और वहां व्यापक तोड़फोड़ की थी। इसके बाद जीआरपी आगरा फोर्ट ने विभिन्न धाराओं के तहत आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया और उन्हें गिरफ्तार किया।

आरोपियों में मोनू, आकाश, लक्की, प्रदीप, ब्रजेश, रूपेश, पंकज, रजत कुमार, कुलदीप, सन्नी दिवाकर, जितेंद्र, हेमंत, विनोद, मनतेश आकाश और जितेंद्र कुमार शामिल थे। इन सभी आरोपियों के खिलाफ भादंसं की धारा 147, 150, 151, और 174 के तहत मुकदमा दायर किया गया था।

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अदालत में हुई सुनवाई

मुकदमे की सुनवाई के दौरान शासकीय पक्ष की ओर से गवाहों को अदालत में पेश किया गया। इसमें वादी मोहित शर्मा (एसएसई), राजकुमार मौर्या (एसएसई), राकेश कुमार शर्मा, मनजीत सिंह, विवेचक/प्रभारी निरीक्षक जीआरपी आगरा फोर्ट रामेश्वर प्रसाद त्यागी, और एसआई राकेश कुमार गौतम शामिल थे।

हालांकि, अदालत ने गवाहों के बयानों में गम्भीर विरोधाभास पाया और आरोपी पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश चंद्रा के तर्कों को मानते हुए सभी 16 आरोपियों को बरी कर दिया।

न्यायालय का निर्णय

एडीजे 26 अमरजीत ने गवाहों के बयानों में गंभीर विरोधाभास को ध्यान में रखते हुए आरोपियों को बरी कर दिया। उनका कहना था कि गवाहों के बयान और साक्ष्यों में पाई गई असंगतता के कारण आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किए जा सके, जिससे उन्हें दोषी ठहराना संभव नहीं था।

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