भाजपा में ‘आयातित’ नेताओं के विकेट गिरने का दौर? उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे से सियासी हलचल

Dharmender Singh Malik
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देश की राजनीति में इस समय एक बड़ा सवाल गूँज रहा है: क्या भाजपा में अन्य दलों से आए ‘आयातित’ नेताओं के लिए मुश्किल समय शुरू हो गया है? उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने इस चर्चा को और तेज कर दिया है। संसद के मानसून सत्र के ठीक पहले 21 जुलाई को धनखड़ के त्यागपत्र ने सियासी गलियारों में कई कयासों को जन्म दिया है, जिनमें से एक यह भी है कि शीर्ष पदों पर बैठे ऐसे नेताओं का पत्ता कटना शुरू हो गया है, जो भाजपा के मूल कार्यकर्ता नहीं रहे हैं।

जगदीप धनखड़: एक ‘आयातित’ नेता का संवैधानिक पद से प्रस्थान

राजस्थान के एक प्रमुख जाट नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता जगदीप धनखड़ का राजनीतिक सफर जनता दल से शुरू होकर कांग्रेस और फिर भारतीय जनता पार्टी तक पहुँचा। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में अपनी नियुक्ति के बाद, 6 अगस्त 2022 को उन्हें देश का उपराष्ट्रपति चुना गया। देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर रहते हुए भी, उनका दो साल का कार्यकाल बाकी था, लेकिन 21 जुलाई को दिए गए उनके इस्तीफे ने सभी को चौंका दिया है।

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राजनीतिक पंडितों का मानना है कि धनखड़ का त्यागपत्र भाजपा की उस कथित रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसके तहत पार्टी अब अपने मूल और प्रतिबद्ध नेताओं को प्राथमिकता देना चाहती है। 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा नेताओं ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया था। हालांकि, धीरे-धीरे पार्टी पर ‘कांग्रेस युक्त भाजपा’ होने का आरोप लगने लगा, क्योंकि विभिन्न दलों से बड़ी संख्या में नेता भाजपा में शामिल हुए, सांसद बने और कई को केंद्रीय मंत्रालयों में मंत्री पद भी मिले।

2024 के लोकसभा चुनाव और ‘आयातित’ नेताओं का प्रभाव

2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत न मिलना इस बात का संकेत हो सकता है कि ‘जन्मजात’ भाजपा नेताओं की कुंठा और निराशा ने पार्टी के प्रदर्शन को प्रभावित किया है। ‘अबकी बार 400 पार’ के नारे के बावजूद, भाजपा का अकेले दम पर बहुमत हासिल न कर पाना कई सवाल खड़े करता है। क्या यह पार्टी के उन समर्पित कार्यकर्ताओं और नेताओं का ‘मलाल’ था, जिन्होंने पार्टी को सत्ता के शिखर तक पहुँचाने में अथक प्रयास किए, लेकिन वे खुद सत्ता से बाहर नजर आए? यह बहस लगातार जोर पकड़ रही है कि ‘आयातित’ नेताओं को मिली तवज्जो ने पार्टी के भीतर असंतोष पैदा किया है।

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अगला उपराष्ट्रपति कौन? राजस्थान से वसुंधरा राजे का नाम चर्चा में

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद अब देश के अगले उपराष्ट्रपति को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। एक बड़ा कयास यह है कि अगला उपराष्ट्रपति भी राजस्थान से ही हो सकता है, और इस दौड़ में सबसे आगे नाम राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का चल रहा है। भाजपा ने पहले भी राजस्थान के कद्दावर नेता भैरों सिंह शेखावत को उपराष्ट्रपति बनाया था।

राजघराने से ताल्लुक रखने वाली वसुंधरा राजे जाट परिवार की बहू भी हैं और राजस्थान में दो बार प्रभावशाली मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। भैरों सिंह शेखावत के बाद वे राज्य में सबसे प्रभावशाली भाजपा नेता मानी जाती हैं। राजस्थान की राजनीति में जाटों का महत्वपूर्ण प्रभाव है, और वसुंधरा राजे का जाट समुदाय से गहरा जुड़ाव उन्हें इस पद के लिए एक मजबूत दावेदार बनाता है।

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गौरतलब है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे की कथित ‘नाराजगी’ के कारण भाजपा को राजस्थान में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था, जहाँ पार्टी ने 10 लोकसभा सीटें खो दी थीं। हाल ही में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के राजस्थान दौरे के दौरान, सहकारिता विभाग के एक कार्यक्रम में उन्होंने वसुंधरा राजे की मौजूदगी में उनकी जमकर तारीफ की थी। ऐसे में, यह संभावना प्रबल होती जा रही है कि देश का अगला उपराष्ट्रपति राजस्थान से ही कोई नेता हो सकता है, और वसुंधरा राजे इस पद के लिए एक अहम चेहरा बनकर उभरी हैं।

डॉ सुनील तिवारी
( लेखक सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी आफ कर्नाटक के पूर्व फर्स्ट कोर्ट मेम्बर रहे हैं)

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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