कौन बड़ा? किसको पूजें?आगरा विकास प्राधिकरण, आगरा नगर निगम, आगरा स्मार्ट सिटी मिशन, या ताज ट्रिपेजियम जोन ऑथोरिटी?

Dharmender Singh Malik
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कौन बड़ा? किसको पूजें?आगरा विकास प्राधिकरण, आगरा नगर निगम, आगरा स्मार्ट सिटी मिशन, या ताज ट्रिपेजियम जोन ऑथोरिटी?

बृज खंडेलवाल

इसका जवाब आपको मिल जाए तो जरूर बताएं, क्योंकि हम कन्फ्यूज्ड हैं। काफी शहरवासियों का मत है कि एक तरफ निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की जमात है, तो दूसरी तरफ सरकारी संस्थाओं के बड़े बाबुओं की फौज है जो मिलकर आगरा को ढंग से निचोड़ रहे हैं।

परिणाम आपके सामने है। न औद्योगिक विकास हुआ है, न पर्यावरण सुरक्षित हुआ है। समस्याओं की लिस्ट लंबी होती जा रही है।

आज तक, तमाम प्रयासों के बाद भी तय नहीं है कि यमुना नदी स्वच्छ, निर्मल, जल से लबालब कब होगी, कब यमुना बैराज निर्माण प्रारंभ होगा, कब जिले का नहरी तंत्र, कैनाल सिस्टम दुरुस्त होगा, कब छोटी सहायक नदियां पुनर्जीवित होंगी।
अधिकारी बताएं कब तक नगरवासियों को शुद्ध वायु और शुद्ध पेय जल मुहैय्या हो सकेगा? क्या योजना है शहर के लोकल ट्रांसपोर्ट सिस्टम को सुरक्षित, आरामदायक और सुलभ बनाने की? कब तक अतिक्रमण मुक्त हो जाएगा शहर, कब जाम लगना बंद होंगे?

शासकीय नेतृत्व बताए कि हाई कोर्ट की बेंच आगरा को मिलेगी या नहीं, अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट्स कभी आगरा से शुरू होगी या नहीं?

तीन विश्व हेरिटेज इमारतों का शहर, जो साल में एक करोड़ से ज्यादा टूरिस्ट आकर्षित करता हो, जो टूरिज्म इंडस्ट्री की धुरी हो, कैसे इतने लंबे समय से वो अपनी पहचान और अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है? विधायकजी यमुना की तलहटी से पतंग तो उड़ाते हैं, पर नदी में जल कब आएगा, कब मैली से निर्मल होगी, इस पर कुछ बोलने से कतराते हैं। कैसी विडंबना है इस शहर की, लगातार तीन दशकों से एक ही पार्टी को भरपूर आशीर्वाद मिल रहा है, लेकिन सब के सब अपनी व्यक्तिगत विकास यात्रा को

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तबुज्जो देते दिखते हैं, आगरा के सामूहिक इंटरेस्टस को एक जुट होकर पैरवी करने में नेताओं के पैर भारी हो जाते हैं।
1993 से लेकर अब तक, ऐसा लगता है कि आगरा को सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही चला रहा है। अधिकारी तो इतने हरि भक्ति में मग्न हैं कि कोई पेड़ काट कर ले जाए तो एन जी टी से ही पता चलता है इनको। भला हो जागरूक मीडिया का, वरना किसी को कुछ

खबर ही न लगे कैसे खामोशी की साजिश से बर्बाद हो रहा है आगरा!!

नियोजित शहरी विकास क्या होता है, कोई पूछे प्राधिकरण के बाबुओं से। करोड़ों खर्च करके कई साल पहले दिल्ली स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर एंड टाऊन प्लानिंग से एक विजन प्लान बनवाया था, उस का अता पता नहीं है। नगर निगम आज तक ये तय नहीं कर पाया है कि आगरा स्मार्ट सिटी है या हेरिटेज सिटी।

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कई बार लोगों ने कहा है कि शहर में अवैज्ञानिक तरीके से टाइलें बिछाए जाने और पेड़ों के लिए साँस लेने की जगह छोड़े बिना पक्के फुटपाथ बनाना, जैसा कि पालीवाल पार्क में किया गया है, अच्छी बात नहीं है। टाइलें षटकोणीय होनी चाहिए थीं और बीच में घास उगाने के लिए छेद होने चाहिए थे।

एडीए के बाबू जिन्हें पर्यावरण संरक्षण के बारे में कोई जानकारी नहीं है, वे शहर के परिदृश्य को बर्बाद कर रहे हैं। नागरिकों को एडीए के साथ-साथ ज़मीन हड़पने वाले कुछ बेईमान बिल्डरों के खिलाफ़ भी जागने की ज़रूरत है।

“यह वास्तव में दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम उन लोगों के खिलाफ़ कुछ नहीं कर सकते जिन्होंने सामुदायिक तालाबों और कंक्रीट के हरे-भरे पैच पर कब्ज़ा कर लिया है,” पर्यावरणविद डॉ देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं। “आबादी का एक हिस्सा खुली जगहों को बेकार समझता है। नदी के किनारे, खुले नालों के किनारे एक-एक इंच जमीन हड़पी जा रही है। नालों पर होटल बन गए हैं और हम असहाय दर्शक बने हुए हैं, क्योंकि वे शक्तिशाली लोग हैं और आसानी से विरोध के स्वरों को शांत कर सकते हैं।”

बहुत पहले मांग की गई थी कि एडीए को पर्यावरण अनुकूल निर्माण योजनाएं बनाने में सहायता करने के लिए एक शहरी कला और भूनिर्माण निकाय का गठन किया जाए, लेकिन मठाधीश मैंडरिन्स अपने स्वार्थ की रक्षा के लिए कभी किसी को हस्तक्षेप नहीं करने देते। बाबू आते हैं और चले जाते हैं। शहर के दीर्घकालिक हित उनके दिलों में कभी भी इतने प्यारे नहीं हो सकते। एडीए को बदलना होगा।

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हम सभी जानते हैं कि नगर निगम पर्याप्त संसाधनों से वंचित है। विभिन्न करों से जो कुछ भी यह कमाता है, वह व्यवस्था को वित्तपोषित करने में खर्च हो जाता है। आगरा विकास प्राधिकरण को लोकतांत्रिक बनाने का समय आ गया है, क्योंकि ये संस्था खुद ही बीमार, औपनिवेशिक और तनावग्रस्त लगती है।

यह एक दुखद टिप्पणी है, लेकिन काफी हद तक सच है कि इस महान शहर के नागरिक मामलों का उचित प्रबंधन नहीं किया जा रहा है। हमारे पास न तो प्रतिबद्ध प्रबंधक हैं और न ही उन समस्याओं को संभालने के लिए सक्षम विशेषज्ञ हैं। नियत की अलग कमी है।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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