हाथरस, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के नवागत पुलिस महानिदेशक (DGP) के मीडियाकर्मियों के साथ बेहतर तालमेल बनाने के निर्देश ने पत्रकारों के बीच उम्मीद की एक नई किरण जगाई है। डीजीपी ने अपने अधीनस्थ पुलिस महकमे को ये निर्देश दिए हैं, जिसके बाद सभी मीडियाकर्मियों ने इस बयान की जमकर सराहना की है। पत्रकारों का मानना है कि यह कदम उनके लिए राहत भरा होगा। हालांकि, हाथरस के वरिष्ठ पत्रकार विष्णु नागर जैसे अनुभवी लोग इस पर मिली-जुली प्रतिक्रिया दे रहे हैं। उनका कहना है कि इस आदेश को सही मायने में अमली जामा पहनाया जाएगा या नहीं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
डीजीपी का बयान: उम्मीद और आशंका के बीच झूलती पत्रकारिता
नवागत डीजीपी के इस बयान को कई पत्रकारों ने स्वागत योग्य बताया है। उनका मानना है कि इससे पुलिस और मीडिया के बीच संबंध सुधरेंगे और पत्रकारों को अपने काम करने में आसानी होगी। सोशल मीडिया पर भी कई पत्रकारों ने इस पर खुशी जाहिर की है।
लेकिन, सवाल यह है कि क्या यह आदेश वाकई जमीन पर उतरेगा? ऐसा इसलिए क्योंकि अतीत में भी कई बार ऐसे बयान और निर्देश जारी हुए हैं, लेकिन पत्रकारों को अक्सर पुलिस से असहयोग का सामना करना पड़ा है। विष्णु नागर इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं, “इस प्रकार के बयान या आदेश आना कोई पहली बार नहीं हुआ। ऐसे आदेश पहले भी अनेकों बार आ चुके हैं, मगर धरातल पर उनको सही मायनों में अमली जामा नहीं पहनाया गया। इसके पीछे के कारण क्या रहे, कहा नहीं जा सकता।”
आज की पत्रकारिता: चुनौतियां और विष्णु नागर का बेबाक विश्लेषण
विष्णु नागर, जो लंबे समय से हाथरस में पत्रकारिता से जुड़े हैं, आज के दौर की पत्रकारिता के सामने खड़ी चुनौतियों पर खुलकर बात करते हैं। उनका मानना है कि आज की पत्रकारिता में पत्रकारों को वैसी राहत मिलने की संभावना कम है, जिसकी वे उम्मीद कर रहे हैं।
नागर पत्रकारिता के गिरते स्तर और उसमें आ रही गिरावट के लिए कई मुद्दों को जिम्मेदार ठहराते हैं:
- सोशल मीडिया का प्रभाव: सोशल मीडिया के बढ़ने से हर कोई “पत्रकार” बन गया है, भले ही उसके पास जरूरी योग्यता या नैतिकता न हो।
- निजी स्वार्थ और अनैतिकता: कुछ पत्रकारों द्वारा निजी स्वार्थों के लिए अनैतिक तरीकों को अपनाना और जल्द पैसा कमाने की लालसा ने पत्रकारिता के पेशे की साख को गिराया है।
- व्यावसायिक बनाम मिशनरी पत्रकारिता: नागर का मानना है कि जब तक पत्रकारिता एक व्यवसाय बनी रहेगी और उसे मिशनरी भावना से नहीं किया जाएगा, तब तक पत्रकारों को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता रहेगा। वह जोर देते हैं, “जब तक हम पत्रकार हैं और मिशनरी पत्रकारिता करेंगे, व्यावसायिक पत्रकारिता नहीं, तो हम और आपको हमारे अधिकारों से कोई वंचित नहीं कर सकता। अपितु यह आज जो पत्रकार साथी आदेश के बाद जश्न मना रहे हैं, वहीं मातम मनाएंगे।”
हाथरस में पत्रकारिता का भविष्य: एक गंभीर चिंतन
हाथरस सहित पूरे उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। डीजीपी का बयान यकीनन एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन विष्णु नागर जैसे अनुभवी पत्रकारों का आकलन हमें बताता है कि सिर्फ आदेशों से जमीनी हकीकत नहीं बदलती। पत्रकारों को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना होगा और पत्रकारिता के उच्च मूल्यों को बनाए रखना होगा।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाला समय डीजीपी के इस आदेश को कितनी गंभीरता से लेता है और क्या यह वास्तव में उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के लिए एक नई सुबह ला पाता है या यह भी अतीत के कई ऐसे बयानों की तरह महज एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा।