प्रयागराज, जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम होता है.

महाकुंभ 2025 के पहले शाही स्नान के ऐतिहासिक क्षण का केंद्र बना।

संगम की पावन छटा - तीन पवित्र नदियों के मिलन स्थल संगम पर हजारों श्रद्धालु आस्था का दीप जलाए एकत्र हुए।

हर किसी की निगाहें उस दिव्य क्षण पर थीं,

जब सूरज की पहली किरणें गंगा की लहरों पर पड़कर उन्हें स्वर्णिम बना रही थीं। 

महाकुंभ में जूना, निरंजनी और महानिर्वाणी अखाड़ों ने अपनी शक्ति और परंपराओं का अद्भुत प्रदर्शन किया।

अखाड़ों की परंपराएँ

इन अखाड़ों की परेड और धार्मिक अनुष्ठानों को देखकर हर व्यक्ति प्रेरित महसूस कर रहा था।

धार्मिक महत्त्व बल्कि इन अखाड़ों की अटूट श्रद्धा और परंपराओं की भी गहरी छाप दिखती है

अखाड़ों के नागा साधुओं का संगम की ओर बढ़ता जुलूस दृश्य को अलौकिक बना रहा था।

नागा साधुओं की भव्यता

उनके भस्म से सजे शरीर, त्रिशूल और डमरू की आवाज, और उनके ओजस्वी जयघोष ने पूरे माहौल को दिव्यता से भर दिया।

ये एक आत्मीय अनुभव था।

इन अखाड़ों की परेड और धार्मिक अनुष्ठानों को देखकर हर व्यक्ति प्रेरित महसूस कर रहा था।

महाकुंभ 2025 का यह आयोजन गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम के अद्वितीय आकर्षण, नागा साधुओं की तपस्या और श्रद्धालुओं की अटूट आस्था की महिमा और गहराई को उजागर करता है।