झांसी, सुल्तान आब्दी: माह-ए-जिलहिज्जा का चांद बुधवार को भारत में नजर आने के साथ ही ईद-उल-अजहा यानी बकरीद की तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। मुफ्ती अमान सिद्दीकी मंजरी पेश इमाम मदीना मस्जिद मरकज अहले सुन्नत वल जमात कपूर टेकरी कुरैश नगर ने जानकारी दी है कि 28 मई को माह-ए-जिलहिज्जा का चांद देखा गया है, जिसके साथ ही यह तय हो गया है कि माह-ए-जिलहिज्जा की 10 तारीख यानी शनिवार, 7 जून को देश भर में ईद-उल-अजहा का त्योहार मनाया जाएगा।
बकरीद और इसका ऐतिहासिक महत्व
माह-ए-जिलहिज्जा इस्लामी कैलेंडर का 12वां और अंतिम महीना है। इस महीने की 10 तारीख को ईद-उल-अजहा का त्योहार मनाया जाता है। इसी दिन सऊदी अरब के मक्का शहर में दुनियाभर से पहुंचे मुसलमान हज अदा करते हैं। वहीं, दुनिया भर में जो लोग हज पर नहीं जा पाते, वे अपने-अपने इलाके में बकरीद की नमाज अदा करने के बाद पशुओं की कुर्बानी देते हैं।
यह त्योहार पैगम्बर हजरत इब्राहीम, उनके बेटे हजरत इस्माइल और हजरत इब्राहीम की पत्नी हजरत हाजरा की याद में मनाया जाता है। इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, हजरत इब्राहीम ने एक ख्वाब देखा था जिसमें अल्लाह ने उन्हें अपनी सबसे अजीज चीज कुर्बान करने का हुक्म दिया था। सुबह उठकर, उन्होंने अपने बुढ़ापे में पैदा हुए सबसे अजीज बेटे हजरत इस्माइल को कुर्बान करने का फैसला किया। जब वे सऊदी अरब के एक मैदान में कुर्बानी देने जा रहे थे, तभी फरिश्ता हजरत जिब्रईल एक दुम्बा (बकरी जैसा जानवर) लेकर आए और बोले कि अल्लाह ने उनकी कुर्बानी कबूल कर ली है और बेटे की जगह इसकी कुर्बानी दी जाए। इसी अमल की याद में हर साल कुर्बानी की जाती है।
सोशल मीडिया और गाइडलाइन का पालन करने की अपील
मुफ्ती अमान सिद्दीकी मंजरी ने झांसी के नौजवानों को एक महत्वपूर्ण पैगाम भी दिया है। उन्होंने कहा है कि सोशल मीडिया पर किसी भी कुर्बानी के जानवर की फोटो या वीडियो न डालें और न ही नुमाइश करें। उन्होंने जोर दिया कि यह त्योहार मुसलमानों के बड़े इम्तिहान और कुर्बानी देने का है, जिससे हम सबको एक सीख लेनी चाहिए। मुफ्ती साहब ने प्रशासन के निर्देशों और गाइडलाइन का पालन करने की भी अपील की और कहा कि खुले में कुर्बानी न करें, बल्कि चिह्नित स्थान पर ही अपने जानवर को ले जाकर कुर्बानी करें।