वाशिंगटन डीसी: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को अपनी खुफिया प्रमुख तुलसी गबार्ड के आकलन को सिरे से खारिज कर दिया। गबार्ड ने कहा था कि ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा है, लेकिन ट्रंप ने इसे गलत बताते हुए दावा किया कि ईरान परमाणु बम बनाने के बेहद करीब है। यह बयान ट्रंप प्रशासन के भीतर ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बढ़ते आंतरिक मतभेदों को उजागर करता है।
गबार्ड का आकलन और ट्रंप की असहमति
तुलसी गबार्ड ने कांग्रेस के सामने अपनी गवाही में स्पष्ट रूप से कहा था कि ईरान कोई परमाणु हथियार नहीं बना रहा है, और यदि वह बना भी रहा था तो उसे 2003 में ही बंद कर दिया गया था। उन्होंने यह भी बताया कि ईरान के सर्वोच्च नेता ने भी 2003 में निलंबित किए गए परमाणु हथियार कार्यक्रम को दोबारा शुरू नहीं किया है। गबार्ड ने जोर दिया कि अमेरिका ईरान के यूरेनियम संवर्धन पर करीब से नजर रख रहा है, जो अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है।
हालांकि, जब एक पत्रकार ने ट्रंप से इस बारे में पूछा और बताया कि उनकी इंटेलिजेंस कम्युनिटी कह रही है कि ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा है, तो ट्रंप ने इंटेलिजेंस कम्युनिटी को ही गलत ठहरा दिया। उन्होंने पूछा, “ऐसा किसने कहा?” जब पत्रकार ने जवाब दिया कि उनकी इंटेलिजेंस चीफ तुलसी गबार्ड का ऐसा कहना है, तो ट्रंप ने सीधा जवाब दिया, “वह गलत हैं।”
‘मुझे फर्क नहीं पड़ता उन्होंने क्या कहा’: ट्रंप का पहले का रुख
राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले भी गबार्ड के बयानों को खारिज करते हुए कहा था, “मुझे फर्क नहीं पड़ता उन्होंने (गबार्ड) ने क्या कहा। मेरी नजर में ईरान परमाणु बम के बहुत करीब है।” इस बयान से ट्रंप ने खुद को इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के रुख के करीब रखा, जो ईरान को एक तत्काल परमाणु खतरा मानते हैं। यह दर्शाता है कि ट्रंप ईरान के परमाणु खतरे को लेकर एक सख्त रुख अपनाए हुए हैं, भले ही उनकी अपनी खुफिया एजेंसियां इससे सहमत न हों।
तुलसी गबार्ड की सफाई
इस विरोधाभास पर तुलसी गबार्ड ने सफाई देते हुए कहा कि मीडिया ने उनके बयान को “तोड़-मरोड़कर पेश किया” है। उन्होंने स्थानीय मीडिया से बातचीत में दावा किया, “राष्ट्रपति ट्रंप वही बात कह रहे हैं जो मैंने कही थी। हम एक ही पन्ने पर हैं।” उनके कार्यालय ने भी इसी बयान को दोहराया, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे सार्वजनिक रूप से मतभेद को कम करने का प्रयास कर रहे हैं।
गबार्ड ने मार्च में दिए अपने बयान में कहा था कि खुफिया एजेंसियों का आकलन है कि ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा है, लेकिन उसका यूरेनियम भंडार उस स्तर पर है जो आमतौर पर बिना परमाणु हथियारों वाले देशों में नहीं देखा जाता। यह बयान उनकी पिछली टिप्पणियों से मेल खाता है, लेकिन ट्रंप की सीधी अस्वीकृति के बाद विवाद गहरा गया है।
यूरोप की भूमिका और ट्रंप का बयान
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने खुफिया एजेंसियों की राय के खिलाफ बयान दिया है। अपने पहले कार्यकाल में भी उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ खड़े होकर अमेरिकी एजेंसियों की राय को नजरअंदाज किया था। इस बीच, ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल जारी है। यूरोपीय विदेश मंत्रियों ने शुक्रवार को जिनेवा में ईरान से अपील की कि वह अमेरिका से परमाणु कार्यक्रम को लेकर बातचीत शुरू करे।
हालांकि, ट्रंप ने यूरोप की भूमिका पर भी संदेह व्यक्त किया। उन्होंने कहा, “यूरोप इसमें ज्यादा मदद नहीं कर पाएगा।” यह बयान दर्शाता है कि ट्रंप अमेरिका के हितों की पूर्ति के लिए एकतरफा कार्रवाई करने में संकोच नहीं करते, भले ही इसमें सहयोगी देशों की भूमिका कम हो जाए।
ईरान-इजरायल संघर्ष के बीच अमेरिका के आंतरिक राजनीतिक मतभेद और कूटनीतिक रुख वैश्विक स्तर पर असर डाल रहे हैं, जो आने वाले दिनों में और गहराने की आशंका है। क्या यह मतभेद अमेरिकी विदेश नीति को प्रभावित करेगा, यह देखने वाली बात होगी।