सांपों के बीच बंजारों के बच्चों का बचपन

Manisha singh
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ग्राम कुड़ी में सांपों के साथ खेल खेलते घुमंतू प्रजाति के बंजारों के बच्चे
  • पुश्तैनी काम की कमान अब बंजारों के बच्चों पर

  • खिलौने की तरह हाथों में खेलते हैं सांप

  • पापी पेट ने बना दिया खतरों का खिलाड़ी

दीपक शर्मा 

मैनपुरी/कुसमरा। जमीन पर रेंगते जहरीले सांपों को देखकर हर किसी के शरीर की रूह कांप जाती है। जिन सांपों की फुसकार मात्र से ही लोगों के पसीने छूटने लगते हैं। वही बंजारों की एक बस्ती ऐसी भी है जहां मासूम बच्चे विषैले सांपों के साथ ही जिंदगी बसर करते हैं। सुबह होते ही शुरू हो जाती है, इनकी सांपों के साथ जुगलबंदी। नन्हे हाथों में विषैले सांपों को नाचते देखकर कोई भी दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो सकता है। कच्ची उम्र में ऐसे खतरनाक पुश्तैनी शौक ने ही उन्हें बना दिया है खतरों का खिलाड़ी।

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इस संसार में सर्प को सबसे विषैला जीव बताया गया है। कहते हैं कि इनका डसा पानी भी नहीं मांगता। लेकिन इस भीड़ में बंजारों की एक ऐसी बस्ती भी है। जिसमें यह विषैला सांप भय खाते हैं। घुमंतू प्रजाति कहीं जाने वाली बंजारों की बस्तियां अधिकांश ग्रामीण इलाकों से बाहर ही होती है। खुद को जिंदा रखने की हर आवश्यक वस्तु यह बंजारे अपने डेरे के साथ ही रखते हैं। गुजर बसर करने के लिए इनका एकमात्र पैसा होता है।

सांपों को पकड़ना और उनके कर्तव्यों को दिखाकर लोगों का मन बहलाना। बंजारों की बीन पर अक्सर सर्वाधिक विषैले सांपों को आसानी से नाचते हुए देखा जा सकता है। सांपों को पालकर गुजर बसर करने वाले बंजारों के इन परिवारों की असल हकीकत को बेवर क्षेत्र के ग्राम कुड़ी और बरनाहल विकासखंड के गांव में करीब से महसूस किया जा सकता है।

कूड़ी में देखा अजीब नजारा

सांपों के बीच बंजारों के बच्चों का बचपन:  अग्र भारत की टीम जब इन बंजारों के डेरे पर पहुंची तो अजब ही नजारा देखने को मिला। जिन बच्चों के हाथों में खेल खिलौने और किताबें होनी चाहिए। वे सांपों और उनके बच्चों के साथ अपनी दिनचर्या की शुरुआत कर रहे थे। चार-पांच साल की कच्ची उम्र में इस तरह के खतरनाक शौक पालने वाले यह बच्चे समाज के अन्य बच्चों से बिल्कुल जुदा है।

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पूछने पर परिवार वालों ने बताया कि हम गरीब बमुश्किल दो वक्त की रोटियां जुटा पाते हैं। ऐसे में खिलौने कहां से लाएं। सांप ही हमारी जिंदगी का हिस्सा बने आ रहे हैं। हमारे अच्छे मित्र होने के कारण यह हमारे बच्चों को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते। सपेरे ने बताया कि उनका मुख्य पैसा है गांव- देहातों में घरों में निकलने वाले सांपों को पकड़ना और ढाक बजाकर सांपों के जहर को उतारना। पुरखों से यह काम करके हम बंजारे अपने बाल बच्चों का पेट पाल रहे हैं।

जड़ी बूटियां से करते हैं उपचार

सांपों के बीच बंजारों के बच्चों का बचपन:  जंगली जड़ी बूटियां में ऐसा प्रभाव होता है कि यह पलक झपकते ही सांपों के जहर को चूस लेती है। कहना चाहे कुछ भी हो लेकिन कच्ची उम्र में सांपों को अपना दोस्त बनाकर उनके साथ अठकेलियां करने वाले बंजारों के बच्चों को देखकर हर कोई दांतों तले अपनी उंगलियां दवा लेता है।

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जड़ी बूटियां के ज्ञान में माहिर बंजारे

सांपों के बीच बंजारों के बच्चों का बचपन: बात करते हुए बंजारा परिवार के बुजुर्ग डगरू ने बताया कि भले ही उन्हें समाज द्वारा तिरस्कार भरी नजरों से देखा जाता हो, लेकिन उनके पास सांपों का जहर चूसने और मरते आदमी को जिंदा करने की नायाब तरीका मौजूद है। उनका कहना था कि सांपों को पकड़ने के लिए अक्सर घने जंगलों में घूमते वक्त बे जीवन रक्षक बहुमूल्य जड़ी बूटियां को चुन लेते हैं। यह प्रकृति का वरदान ही है। अनपढ़ बंजारों को जड़ी बूटियां का पर्याप्त ज्ञान हो जाता है।

 

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Manisha Singh is a freelancer, content writer,Yoga Practitioner, part time working with AgraBharat.
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