तेसू झांझी दशहरा: उत्तर भारतीय संस्कृति और विरासत का उत्सव

Dharmender Singh Malik
5 Min Read

तेसू झांझी का दशहरा पर्व उत्तर भारत के कई क्षेत्रों, विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। यह एक लोकप्रिय परंपरा है जो कई शताब्दियों से चली आ रही है। इस पर्व के दौरान, बच्चे मिट्टी से बने तेसू और झांझी को घर-घर जाकर दिखाते हैं और इसके बदले में लोगों से दान लेते हैं।

तेसू एक छोटा सा मिट्टी का खिलौना होता है जिसकी गर्दन पर घंटी लगी होती है। झांझी एक गहरे रंग की मिट्टी से बनी एक गोल गेंद होती है। तेसू और झांझी को एक साथ जोड़ा जाता है और उन्हें एक दूसरे के साथ बजाया जाता है।

तेसू झांझी का दशहरा पर्व बच्चों के लिए एक बहुत ही मजेदार और रोमांचक समय होता है। वे इस अवसर का उपयोग अपने दोस्तों के साथ मस्ती करने और नए लोगों से मिलने के लिए करते हैं।

इस पर्व के साथ जुड़ी एक लोकप्रिय कहानी है। कहानी के अनुसार, एक समय में एक गरीब लड़का था जिसका नाम बर्बरीक था। वह एक बहुत ही कुशल योद्धा था। दुर्योधन ने बर्बरीक को अपने पक्ष में लड़ने के लिए कहा, लेकिन बर्बरीक ने कृष्ण को अपना आदर्श मानते हुए उनके पक्ष में लड़ने की बात कही।

See also  विरासत और अव्यवस्थित नियोजन के चौराहे पर खड़ा आगरा शहर !

कृष्ण ने बर्बरीक को एक ऐसी तलवार दी जो केवल एक बार इस्तेमाल की जा सकती थी। बर्बरीक ने तलवार का इस्तेमाल करके कौरवों के सभी योद्धाओं को मार डाला। अंत में, कृष्ण ने बर्बरीक का सिर काट दिया ताकि कौरवों की जीत सुनिश्चित हो सके।

बर्बरीक की मृत्यु के बाद, उसकी मां ने उसे एक तेसू और झांझी के रूप में पुनर्जन्म दिया। यह कहा जाता है कि तेसू और झांझी का विवाह दशहरा के दिन होता है। इस विवाह को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

तेसू झांझी का दशहरा पर्व एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजन है जो उत्तर भारत की समृद्ध लोक संस्कृति को दर्शाता है। यह पर्व बच्चों को मौज-मस्ती करने और अपनी संस्कृति को सीखने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है।

See also  धराली की घटना कहीं प्रकृति से खिलवाड़ तो नहीं, विनाश या विकास सब मानव हाथ

तेसू झांझी का दशहरा पर्व की कुछ विशेषताएं

  • इस पर्व के दौरान, बच्चे मिट्टी से बने तेसू और झांझी को घर-घर जाकर दिखाते हैं और इसके बदले में लोगों से दान लेते हैं।
  • तेसू झांझी को एक साथ जोड़ा जाता है और उन्हें एक दूसरे के साथ बजाया जाता है।
  • इस पर्व के साथ जुड़ी एक लोकप्रिय कहानी है जिसमें बर्बरीक की मृत्यु के बाद उसकी मां ने उसे एक तेसू और झांझी के रूप में पुनर्जन्म दिया।
  • तेसू झांझी का विवाह दशहरा के दिन होता है। यह विवाह एक बहुत ही सादे तरीके से किया जाता है।

तेसू झांझी का दशहरा पर्व की सांस्कृतिक महत्ता

तेसू झांझी का दशहरा पर्व उत्तर भारत की समृद्ध लोक संस्कृति को दर्शाता है। यह पर्व बच्चों को मौज-मस्ती करने और अपनी संस्कृति को सीखने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है।

इस पर्व के दौरान, बच्चे मिट्टी से बने तेसू और झांझी को घर-घर जाकर दिखाते हैं। यह एक पारंपरिक लोक कला है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। यह बच्चों को अपनी संस्कृति और विरासत के बारे में जानने का अवसर प्रदान करता है।

See also  ध्यान में छिपा है सांसारिक समस्याओं का हल 

तेसू झांझी के विवाह की परंपरा भी इस पर्व की एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विशेषता है। यह परंपरा प्रेम और विवाह के महत्व को दर्शाती है। यह बच्चों को प्रेम और विवाह के मूल्यों को सीखने का अवसर प्रदान करती है।

कुल मिलाकर, तेसू झांझी का दशहरा पर्व एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजन है जो उत्तर भारत की समृद्ध लोक संस्कृति को दर्शाता है। यह पर्व बच्चों को मौज-मस्ती करने और अपनी संस्कृति को सीखने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है।

See also  भारत के इन दो शहरों पर मड़राया बड़ा खतरा, नई स्टडी में जताई गई डरावनी आशंका
Share This Article
Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement