आगरा । जहां मुख्यमंत्री की दिशा-निर्देशों के तहत बेटियों की सुरक्षा के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, वहीं शिक्षा का अधिकार एक्ट का उल्लंघन भी हो रहा है। हाल ही में, क्रिमसन वर्ल्ड स्कूल, शमशाबाद रोड, आगरा द्वारा इस एक्ट की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई हैं। शमशाबाद नौफरी के निवासी संजीव कुमार ने अपनी बेटी का दाखिला शिक्षा का अधिकार के तहत इस स्कूल में कराया था, लेकिन अब स्कूल संचालक ने फीस की मांग करते हुए उसकी बेटी को स्कूल आने से रोक दिया है। इस स्थिति ने न केवल पीड़ित पिता को बल्कि उनके परिवार को भी हताश और निराश कर दिया है।
पीड़ित पिता जब बेसिक शिक्षा अधिकारी जितेंद्र कुमार गोड के पास पहुंचे, तो उन्होंने स्कूल संचालक से संपर्क किया, लेकिन संचालक उनकी बात मानने को तैयार नहीं था। फिर भी, बीएसए ने आश्वासन दिया कि उनकी बेटी निशुल्क शिक्षा प्राप्त करेगी।
राइट टू एजुकेशन कानून के तहत, पात्रता का प्रमाण पत्र तहसील द्वारा आय प्रमाण पत्र के रूप में जारी किया जाता है। हालांकि, स्कूल संचालक ने पीड़ित पिता से कहा कि वह इस श्रेणी में नहीं आते और इसलिए उन्हें फीस जमा करनी पड़ेगी। संजीव कुमार, जो ज़ोमैटो कंपनी में ड्राइवर के पद पर कार्यरत हैं और जिनकी आय सीमित है, को यह अस्वीकार करने वाली बात सुनकर घबराहट हुई। स्कूल संचालक ने उच्च अधिकारियों से शिकायत करने पर भी चेतावनी दी कि यदि शिकायत की कोशिश की गई तो उनकी बेटी को स्कूल में नहीं पढ़ाया जाएगा।
हालांकि, पीड़ित पिता ने हिम्मत जुटाकर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में पहुंचकर अपनी समस्याओं को उठाया। बीएसए ने पीड़ित की बात सुनी और दो दिन के भीतर कार्रवाई का आश्वासन दिया।
यह मामला राइट टू एजुकेशन एक्ट के तहत एक पीड़ित पिता की कहानी है, लेकिन यह सवाल उठाता है कि इस एक्ट के तहत किए गए दाखिलों की वास्तविक स्थिति क्या है। क्या गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को स्कूलों में वाकई में शिक्षा मिल रही है, या उन्हें शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है?
अब देखना होगा कि पीड़ित पिता की बेटी को इस स्कूल में शिक्षा प्राप्त होती है या नहीं। फिलहाल, शिक्षा माफियाओं द्वारा राइट टू एजुकेशन एक्ट का उल्लंघन किया जा रहा है, जिससे सरकार और जनप्रतिनिधियों की भी किरकिरी हो रही है, जो मीडिया के सामने जनता की समस्याओं को हल करने का दावा करते हैं।
एलकेजी में पढ़ती है पीड़ित पिता की बेटी
पीड़ित पिता संजीव कुमार की बेटी एलकेजी में पढ़ती है, जो उसकी शिक्षा की पहली कक्षा है। अब, स्कूल संचालक ने उसकी पढ़ाई रोक दी है। मासूम बेटी बार-बार अपने माता-पिता से पूछ रही है कि वह कब स्कूल जाएगी, जबकि माता-पिता अधिकारियों के पास जाकर समाधान की कोशिश कर रहे हैं।
क्या ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ का नारा दिखावा है?
डबल इंजन की सरकार देश की आधी आबादी की सुरक्षा के लिए नए कानून बनाकर ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ का नारा दे रही है, लेकिन नन्ही बेटियों को उनके शिक्षा के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। सवाल यह है कि कौन सुनेगा और किसकी शिकायत की जाए, क्योंकि अधिकारी भी समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और केवल औपचारिकता निभाते नजर आ रहे हैं।
बेटियों की शिक्षा सरकार को करनी चाहिए निशुल्क
प्रदेश सरकार बदमाशों का सफाया कर रही है, लेकिन बेटियों की शिक्षा पर ध्यान नहीं दे रही। सरकार को एलकेजी से लेकर 12वीं कक्षा तक बेटियों की शिक्षा मुफ्त करनी चाहिए, ताकि वे भी पढ़ाई और प्रगति का लाभ उठा सकें। अन्यथा, ऐसे ही बेटियां उन्नति के मार्ग से वंचित रह जाएंगी।