किसने मारा गांधीवाद को? महात्मा गांधी की प्रासंगिकता और विचारधारा घटी या बढ़ी ?

Dharmender Singh Malik
6 Min Read
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक बृज खंडेलवाल

वरिष्ठ पत्रकार बृज खंडेलवाल की कलम से

लाख कोशिशों के बावजूद महात्मा गांधी के जीवन आदर्श और गांधीवादी विचारधारा से, भारत की वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था के कप्तान, मुक्ति नहीं पा सके हैं।

कांग्रेसियों ने कभी गांधी को जीया ही नहीं, और हिंदुत्ववादी विचारकों को शुरू से ही गांधी नाम से ही घिन या चिढ़ रही है। गांधी का कद छोटा करने के लिए, तमाम पिग्मी साइज नेताओं को मार्केट किया गया, लेकिन दुनिया ने उन्हें नहीं स्वीकारा। अभी भी विदेश से कोई भी नेता आता है, उसे सरकार सबसे पहले राज घाट ले जाकर गांधी जी को दंडवत कराती है।हकीकत ये है कि वैचारिक सोच के स्तर पर विश्व दो भागों में विभाजित हो चुका है: प्रो गांधी और एंटी गांधी, यानी गांधी हिमायती और गांधी विरोधी।

पश्चिमी एशिया और उत्तरी यूरोप, युद्ध की विभीषिका से जूझ रहे हैं। बढ़ती हिंसा, प्रति हिंसा, नफरत, द्वेष, आतंकवाद, और भय के साए में कुलबुलाती मानवता की मजबूरी है गांधी। युद्ध और हिंसा से कभी कोई मसला स्थाई तौर पर हाल नहीं हुआ है।

“जितने भी राज नेता, धार्मिक गुरु अंबानी परिवार की शादी में शामिल हुऐ, उनको गांधीवाद से प्रेम प्रदर्शन करने का ढोंग नहीं करना चाहिए,” कहते हैं बाबा राम किशोर, लखनऊ वाले। गांधी को समझकर जिंदगी में ढालना आज के नेताओं के वश की बात नहीं! एक लिहाज से देखें तो अच्छा ही हुआ कि गांधी जी समय से पहले ही चले गए, वरना आजादी बाद के नेताओं के कुकर्मों को देखकर उनका आखरी वक्त बेहद तकलीफदायक हो सकता था।

See also  मूली के साथ भूल कर भी कभी न खाएं ये 4 चीजें, शरीर में लग जाएगी रोगों की झड़ी, करने पड़ सकते हैं यमराज के दर्शन

एक आरोप जो गांधी पर अक्सर लगाया जाता रहा है कि देश का विभाजन उनकी वजह से हुआ, अब खारिज हो चुका है।आज बहुत लोग मानते हैं कि पार्टीशन होने की वजह से ही हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान बचे हैं।

बहरहाल, दो अक्टूबर फिर आ गया है, आओ महात्मा गांधी को फिर एक दिन याद करें।

महात्मा गांधी, एक एतिहासिक महा पुरुष ही नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं जिन्हें न तो भुलाया जा सकता है और न ही दरकिनार किया जा सकता है। महात्मा गांधी की प्रासंगिकता के बारे में सवालों के बावजूद, एक राजनीतिक रणनीतिकार और अहिंसक प्रतिरोध तकनीकों के प्रवर्तक के रूप में गांधी का योगदान अद्वितीय है।

हालाँकि, हम अक्सर उन्हें केवल 2 अक्टूबर और 30 जनवरी को ही याद करते हैं, उनकी शिक्षाओं को चरखा चलाने, भजन सुनाने और खादी को छूट पर बेचने जैसे प्रतीकात्मक गतिविधियों तक सीमित कर देते हैं। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने एक बार कहा था कि आने वाली पीढ़ियों को यह विश्वास करने में कठिनाई होगी कि गांधी जैसा व्यक्ति जीता जागता कभी अस्तित्व में था। अपनी मृत्यु के दशकों बाद, गांधी अपने ही देश में एक किंवदंती और मिथक बन गए हैं, उनके शब्दों और कार्यों को काफी हद तक भुला दिया गया है।

See also  मुंह का स्‍वाद बिगाड़ रहा कोरोना, एक्सपर्ट ने बताई पहचान

आज आधुनिक भारत में पाखंड और झूठ ने जब अपनी जड़ें जमा ली हैं, तब गांधी की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह लगाने वालों की जमात में तेजी से इजाफा हो रहा है। दुनिया, खासकर गरीब देशों को सामाजिक-आर्थिक समस्याओं और मानव मनोविज्ञान के बारे में गांधी की अंतर्दृष्टि की जरूरत है। उनके अहिंसक प्रतिरोध के तरीकों ने कपट और धोखे पर निर्भर आधुनिक राज्यों की कमजोरी को प्रदर्शित किया है।
सत्याग्रह, उपवास और हड़ताल के उनके तरीकों को आगे बढ़ाने के लिए अहिंसक प्रतिरोध सहित गांधीवादी मूल्यों पर फिर से विचार करने का समय आ गया है, जो आज भी प्रासंगिक हैं। गांधी के विचार 21 वीं सदी के लिए हैं ।

See also  सदगुरु के विचार जो बच्चों के जीवन को बदल सकते हैं

दुर्भाग्य से, अहिंसक आंदोलनों का दायरा बढ़ाने में हम असफल रहे हैं, और गांधीवादी संस्थान, जिसे चर्च ऑफ गांधी, कहा जाने लगा है, बिना किसी नई सोच के हर जगह कुकुरमुत्तों के जैसे फैल गए हैं।

वर्तमान में उस भ्रामक तर्क का मुकाबला करने का समय आ गया है जो प्रचारित करता है कि किसी राष्ट्र की प्रतिष्ठा उसके लोगों की भलाई के बजाय उसकी सैन्य शक्ति से मापी जाती है।

वास्तव में, वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि अच्छी सेहत का निर्धारण स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रत्यक्ष नियंत्रण से बाहर के कारकों जैसे शिक्षा, आय और रहने की स्थिति से होता है। यह गांधी के कल्याण के प्रति समग्र दृष्टिकोण से मेल खाता है।

आइए गांधी की शिक्षाओं और मूल्यों पर फिर से विचार करें, प्रतीकात्मक इशारों से आगे बढ़कर सार्थक कार्रवाई करें। दुनिया को आज उनकी अहिंसा, प्रेम, भाईचारे की पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरत है।

 

 

 

 

See also  दो बच्चे और दो भाषा काफी हैं; तीसरी भाषा "विज्ञान" की हो
Share This Article
Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement