फांसी का प्रावधान, सत्ता बचाने का खेल

Dharmender Singh Malik
6 Min Read

कोलकाता रेप एंड मर्डर केस को लेकर पश्चिम बंगाल में बवाल थमने का नाम ले रहा है। पुलिस का काला कारनामा सामने आने के बाद सीबीआई मामले की तहकीकात कर रही है लेकिन अभी डॉक्टर बेटी को इंसाफ नहीं मिला है। न्याय की इस लड़ाई को तमाम लोग सडक़ों तक खींच लाए हैं। सोमवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा का विशेष सत्र शुरू हो रहा है, जिसमें ममता सरकार फांसी की सजा के प्रावधान वाला एंटी रेप बिल पेश कर रही है। लेकिन सवाल फिर भी उठता है कि क्या फांसी की सजा का प्रावधान करने से दुष्कर्म की घटनाएं नहीं होंगी? आज ही पश्चिम बंगाल के गर्वनर गृहमंत्री अमित शाह से भी मिले हैं। इससे पहले भी वह राज्य के हालात से केंद्र को अवगत करा चुके हैं। उस रिपोर्ट के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपनी चिंता कुछ इन शब्दों में जाहिर की थी- बस, अब बहुत हो चुका!

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जिला न्यायपालिका के राष्ट्रीय सम्मलेन को संबोधित करते हुए भी कहा कि “महाभारत में उच्चतम न्यायालय के ध्येय वाक्य ‘यतो धर्म: ततो जय:’ का उल्लेख कई बार हुआ है, जिसका भावार्थ है कि जहां धर्म है, वहां विजय है। लेकिन रेप के मामलों में इतने वक्त में फैसला आता है… देरी के कारण लोगों को लगता है कि संवेदना कम है। भगवान के आगे देर है अंधेर नहीं। देर कितने दिन तक, 12 साल, 20 साल? न्याय मिलने तक जिंदगी खत्म हो जाएगी, मुस्कुराहट खत्म हो जाएगी। इस बारे में गहराई से सोचना चाहिए।”
माननीय राष्ट्रपति की चिंता जायज है। लेकिन यह चिंता पहली बार नहीं सामने आ रही है।

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इससे पहले दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था, तब भी कई पत्रकार, सामाजिक चिंतक, समाजसेवी, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति अपनी चिंता जता चुके हैं। सरकार जागी, कई कानून संशोधित कर उनके प्रावधान कड़े किए गए। देश की पुलिस भी थोड़ी सख्त हुई, हजारों मुकदमें दर्ज किए गए, कुछ राज्यों में जिला अदालतों ने ऐसे मामलों पर त्वरित सुनवाई शुरू कर दी। उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए महज 77 दिन में अपना फैसला सुनाते हुए दुष्कर्म के आरोपी को सजा सुनाई। इसके बावजूद क्या लड़कियों के प्रति पुरुष की सोच में कोई सकारत्मक परिवर्तन आया? हमारा मानना तो यह है कि 21वीं सदी में भी लोगों की संक्रीण मानसिकता का ही नतीजा है कि देश सामाजिक बुराइयों, जैसे दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, बेमेल विवाह, घरेलू हिंसा व अन्य बढ़ते अपराध के मकडज़ाल से मुक्त नहीं हो पाया है। सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। आखिर लोगों के अंदर कानून का खौफ क्यों नहीं है?

दरअसल, कानून का पालन करने की जिसकी जिम्मेदारी है उन्हीं में से कुछ पुलिसकर्मी और अधिकारी भ्रष्ट हैं। उनकी वजह से जहां विभाग बदनाम होता है और सरकार पर भी ऊंगली उठती है, वहीं लोगों का कानून और अदालत से भरोसा उठ जाता है। देश में जितने भी कानून हैं, उनमें बहुत ताकत है। अगर उस कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाए तो कोई भी अपराधी बच नहीं सकता। लेकिन यहां पूरी ईमानदारी शायद ही किसी मामले में देखने को मिले। नतीजतन कई बार अपराधी होते हुए भी आरोपी अदालत से बरी हो जाते हैं। पुलिस की लापरवाही, उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार और अदालतों की देरी से आहत हो कई पीडि़ताएं मौत को गले लगा चुकी हैं। कुछेक रोजाना मरती हैं तो कितनी ऐसी भी हैं जिनका इस व्यवस्था से दम घुट रहा है। वे कहती हैं, कानून में 72 छेद हैं। कहीं से भी से अपराधी बच निकलता है। ऊपर से छोटे-बड़े नेता और संवेदनहीन मंत्री अपनी राजनीति चमकाने के लिए लाश पर सियासत करने से नहीं चूकते। उन्हें सत्ता पर काबिज सरकार को गिराने और बचाने का जुगाड़ मिल जाता है।

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यह सत्ता बचाने का तो ही खेल है कि ममता सरकार फांसी की सजा के प्रावधान वाला एंटी रेप बिल पेश कर रही है। ममता दीदी को पता है कि पश्चिम बंगाल राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा है। अगर उन्होंने यह बिल पेश नहीं किया तो देश को क्या जवाब देंगी। मानवाधिकार में और थू-थू होगी। शायद अगली बार टीएमसी के हाथ से सत्ता भी चली जाए। वरना इसकी क्या गारंटी है कि इस फांसी के प्रावधान से हैवानियत कम हो जाएगी? सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं नहीं होंगी? रेप और मर्डर होने बंद हो जाएंगे? योन शोषण के मामले रुक जाएंगे या नारी पर अत्याचार होने बंद हो जाएंगे?

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दरअसल, जब तक सामाजिक ताना-बाना नहीं बुना जाएगा, समाज का विकास नहीं होगा, हर हाथ को काम नहीं मिलेगा, धर्म, मजहब और सकारत्मक विचारों के माध्यम से लोगों को जागरूक नहीं किया जाएगा, जब तक सोशल मीडिया पर गंदी-अश्लील तस्वीरें और वीडियों जारी होते रहेंगे, सिनेमा की दुनिया में अश्लीलता परोसी जाती रहेगी, तब तक लोगों की संक्रीण विचारधारा को नहीं बदला जा सकता। सौ की सीधी एक बात- ‘जो दिखता है, अधिकतर लोग उसी का अनुशरण करते हैं।’ अगर पुलिस भ्रष्टाचार से मुक्त होकर काम करे, न्यायालय फास्ट कोर्ट में तब्दील हो जाएं और समाज को जागरूक करने के लिए हमारे देश के कर्णधार सत्ता का मोह छोड़कर पूरी ईमादार कोशिश करें तो निश्चित ही अपराध पर अंकुश लग सकता है।

जितेन्द्र बच्चन

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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